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Updated: 21 नवम्बर, 2022 09:24 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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दुनिया का सबसे मशहूर खेल कौन सा है? अगर ये सवाल भारत में पूछा जाए, तो बहुत से लोग क्रिकेट का नाम लेंगे. लेकिन, फुटबॉल इकलौता ऐसा खेल है. जिसके प्रशंसक पूरी दुनियाभर में करोड़ों की संख्या में पाए जाते हैं. और, फुटबॉल विश्वकप इन तमाम फैन्स के महाकुंभ की तरह होता है. आसान शब्दों में कहें, तो फुटबॉल विश्वकप एक ऐसा मेला या कार्निवल है. जिसमें पूरी दुनिया से फुटबॉल के लिए जुनून की हद तक जाने वाले प्रशंसकों का जमावड़ा लगता है. ये प्रशंसक अपनी अलग-अलग संस्कृतियों के रंगों को समेटकर फुटबॉल के खेल का जश्न मनाने इकट्ठा होते हैं. लेकिन, इस बार फीफा विश्वकप (FIFA World Cup) का आयोजन खाड़ी देश कतर में हो रहा है. और, फुटबॉल के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि किसी मुस्लिम देश में फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन किया जा रहा हो.

FIFA World Cup in Qatar real purpose is to promote Islam with Ban and Strict Lawकतर में फीफा विश्व कप के लिए बनाए गए नियम-कायदे उसके कट्टरपंथी होने का सबूत हैं. बावजूद फीफा चुप है.

दरअसल, कतर में फुटबॉल विश्वकप के आयोजन को लेकर फीफा का तर्क था कि 'दुनिया के अन्य हिस्सों को भी इसके आयोजन कराने का अधिकार है. क्योंकि, यहां भले ही थोड़ा-बहुत ही फुटबॉल खेला जाता हो. लेकिन, इन इस्लामिक देशों को भी फीफा विश्वकप के आयोजन का मौका दिया जाना चाहिए.' लेकिन, इतना तार्किक यानी Rational होकर सोचने के बाद भी फीफा को फुटबॉल विश्वकप में छोटी-छोटी सी उन सामान्य बातों के लिए भी कतर के सामने झुकना पड़ रहा है. जो अब तक आयोजित होने वाले किसी भी फुटबॉल मैच में बहुत आम सी चीजें कही जाती थीं. आसान शब्दों में कहें, तो फीफा और कतर के बीच लंबे समय से कई पहलुओं पर चल रही खींचतान को लेकर फुटबॉल विश्वकप लगातार सुर्खियों में रहा है.

और, ये तमाम मुद्दे सिर्फ और सिर्फ कतर के इस्लामिक देश होने की वजह से ही उठे हैं. हाल ही में खबर आई थी कि भारत में भगोड़ा घोषित किया जा चुका विवादित मुस्लिम उपदेशक जाकिर नायक भी कतर का मेहमान बनकर फुटबॉल विश्वकप के दौरान ज्यादा से ज्यादा लोगों का इस्लाम में धर्मांतरण कराने के लिए पहुंच चुका है. बताया जा रहा है कि जाकिर नायक फीफा विश्वकप के दौरान इस्लाम का प्रचार करने के लिए कई मजहबी तकरीरें करेगा. और, लोगों को फुटबॉल जैसे दुनियावी मकसदों से इतर मजहबी मकसदों की ओर मोड़ने की कोशिश करेगा. वैसे, जाकिर नायक पर ज्यादा शब्द खर्च करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि, सबको पता है कि इन्हीं इस्लामिक देशों से मिलने वाली फंडिंग के दम पर जाकिर भारत में क्या गुल खिला रहा था.

खैर, फुटबॉल विश्वकप पर वापस आते हैं. तो, महिलाओं को रेफरी बनाने के मुद्दे पर एक लंबी जद्दोजहद के बाद कतर की सहमति पर फीफा तीन महिला रेफरी के नाम 36 आधिकारिक रेफरियों की लिस्ट में जोड़ पाया था. हालांकि, महिला रेफरी मैदान पर आ सकेंगी. और, उन पर अचानक ही कोई रोक नहीं लगा दी जाएगी. इसकी कोई गारंटी नहीं कही जा सकती है. क्योंकि, स्टेडियम में बियर परोसने को लेकर भी कतर ने ऐन वक्त पर फीफा को ठेंगा ही दिखा दिया. जबकि, फीफा के सबसे बड़े प्रमोटरों में से एक बडवाइजर कंपनी है. इतना ही नहीं, एलजीबीटीक्यू समुदाय के समर्थन में चलने वाले कैंपेन के तहत 'वन लव' बैंड पहनने पर कतर ने रोक लगा दी है. आसान शब्दों में कहें, तो तमाम दबाव के बावजूद फीफा की कतर के सामने एक न चली.

कतर में फीफा विश्वकप देखने आ रहे प्रशंसकों पर लगाई जा रही तमाम बंदिशों पर दुनियाभर में चर्चा छिड़ी है. लोग इस पर अपनी अलग-अलग राय दे रहे हैं. कोई कह रहा है कि एक इस्लामिक देश में अगर फुटबॉल विश्वकप का आयोजन हो रहा है. तो, वहां के नियमों को मानने में क्या बुराई है? लेकिन, अहम सवाल ये है कि क्या कतर को वैश्विक भावनाओं का सम्मान नहीं करना चाहिए था? क्योंकि, वहां आ रहे अधिकांश फुटबॉल प्रशंसकों का इस्लाम से कोई लेना-देना ही नहीं है. वैसे, अव्वल सवाल तो यही है कि फीफा को इस कदर तार्किक होने की जरूरत ही क्या थी? खुद ही सोचिए कि कतर ने न केवल इस्लामिक कायदे-कानूनों के हिसाब से प्रशंसकों के लिए नियम बनाए हैं. इस्लामिक देश ने धार्मिक आधार पर यहूदियों की पूजा पर पाबंदी जैसे नियम भी बना रखे हैं.

वैसे, इन तमाम बातों को मद्देनजर रखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि कतर में FIFA WC केवल बहाना है. बल्कि, उसका असली मकसद इस्लाम का प्रचार है. जिसकी तैयारी जाकिर नायक जैसों को बुलाकर कतर ने पहले से ही कर ली है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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