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Updated: 28 अगस्त, 2021 07:08 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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इतिहास को किस तरह देखा जाए? ये एक ऐसा सवाल है जिसमें तर्क वितर्क की गुंजाइश हमेशा मौजूद रहती है. दरअसल, इतिहास में तथ्य तो होते हैं मगर हवा हवाई और काल्पनिक चीजें भी कम नहीं होतीं. इन्हीं के आधार पर इतिहास को लेकर अलग-अलग तरह का नैरेटिव तैयार होता है. डिजनी प्लस हॉटस्टार वेब शो के रूप में मुग़ल साम्राज्य की दास्तान "द एम्पायर" का पहला सीजन लेकर आया है. पहले सीजन की कहानी मध्यकालीन इतिहास का वही हिस्सा है जिसने ना सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीति और सत्ता समीकरण को पलटकर रख दिया था बल्कि राजनीतिक लिहाज से आजतक प्रासंगिक बना हुआ है. पहला सीजन फरगाना के "मासूम बच्चे" जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर की कहानी है जो तमाम झंझावातों से दो चार होता हुआ फरगाना, समरकंद, काबुल और आखिर में हिंदुस्तान में दिल्ली के तख़्त तक पहुंच जाता है. बाबर को हिंदुस्तान का ख्वाब शेरो शायरी में दिलचस्पी रखने वाले पिता से मिला है.

इतिहास दिखाने के लिए कितनी छूट ले सकता है कोई  

यह तथ्य है कि तख्तों के लिए इतिहास में व्यापक रूप से खून बहाए गए. ताजोतख्त के पाए निजी रिश्तों के क़त्ल की बुनियाद पर खड़े नजर आते हैं. द एम्पायर में लगभग वैसा ही है. सीरीज में एक जगह काबुल की शहजादी और बाबर की दूसरी बेगम कहती भी हैं कि कोई भी रिश्ता सल्तनत से बड़ा नहीं होता. हिंदुस्तान का बादशाह बनने तक बाबर के साम्राज्य के लिए किस तरह निजी रिश्तों का क़त्ल, फरेब, धोखा, और साजिशें हुईं उसे देखा जा सकता है. आप इसे महिमामंडन, इतिहास के साथ छेड़छाड़ या कुछ भी कह लें मगर बाबर के व्यक्तित्व से जितनी भी अच्छी और मानवीय चीजें हो सकती हैं उसे दिखाने की भरपूर छूट ली गई है.

छूट भी लगभग फैसला देने वाले अंदाज में ली गई है. द एम्पायर में बाबर एक मासूम बच्चे के तौर पर दिखता है. बड़ी बहन और पिता से बेहद प्यार करने वाला. अपने समुदाय के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार एक ऐसा लड़ाका, हालात की वजह से जिसका बचपन मर गया. नर्म दिल इंसान के रूप में दिख रहा बाबर हमेशा एक लड़ाके या बादशाह की जगह एक जज्बाती इंसान के रूप में फैसले लेता है और परिवार समुदाय की भलाई के लिए सत्ताओं का त्याग करता रहता है.

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क्या बाबर रहम दिल था, गलतियां तो उसकी बहन और नानी ने की?

स्वाभाविक रूप से ये चीजें द एम्पायर में बाबर को नायक बनाने के काम आती हैं. बाबर को नायक बनाए रखने के लिए तख़्त, परिवार और समुदाय के लिए तमाम साजिशें, वादा खिलाफी दूसरों के सिर डाला गया है. मसलन फरगाना तख़्त को बाबर जैसा अच्छा और मजबूत वारिश तैयार करने के लिए नानी दौलत बेगम दामाद की मौत चुनती हैं. समरकंद जीतने से पहले बाबर वादा करता है और उसे तोड़ देता है. लेकिन वादाखिलाफी की वजह उसकी नानी को ही बनते दिखाया जाता है जो बाबर को यह मानने पर मजबूर करती हैं कि तख़्त के लिए यही सही है. शयबानी, खानजादा के बदले उसके भाई बाबर समेत पूरे परिवार को बख्श देता है. खानजादा से निकाह के बाद वो बाबर से संघर्ष को ख़त्म करना चाहता है मगर बाबर के लिए उसकी बहन साजिश करती है और शयबानी को भागना पड़ता है. धोखे में बेमौत मारा जाता है. और जब बाबर हिंदुस्तान में सल्तनत बना लेता है इस बात को लेकर फिक्रमंद है कि उसके दो होनहार बेटों हुमायूं मिर्जा और कामरान मिर्जा में किसे अपना उत्तराधिकारी बनाए? यहां बेमतलब की आपसी लड़ाइयों के लिए हिंदू-मुस्लिम विवाद के संघर्ष को लेकर भावुकता दिखाता है. संभवत: ये सीक्वेंस मौजूदा दौर में इतिहास से अलग बाबर की छवि को संभालने की कोशिश है. कामरान को नजरअंदाज कर हुमायूं की ताजपोशी होती है लेकिन यहां भी खानजादा ही बाबर के हवाले से झूठे तथ्य गढ़ती हैं- "तख़्त के सुरक्षित भविष्य के लिए."

द एम्पायर में बाबर इतना जज्बाती दिखता है कि शयबानी के पास जबतक बहन है बदले और आत्मग्लानि की आग में धधककर जल रहा होता है. उसे जब पिता के मौत की असल वजह चलती है तो नानी दौलत बेगम के अंतिम रस्म तक में शामिल नहीं होता. बाबर का इंसानी पक्ष इतना ईमानदार है कि गैरशाही लड़की महम बेगम से मोहब्बत के बाद शादी करता है. भले ही शहजादी गुलरुख बेगम से शादी के बदले उसे काबुल का तख़्त मिला है मगर पटरानी महम को बनाता है. कुल मिलाकर पहले सीजन की कहानी हुमायूं की ताजपोशी, हुमायूं के खिलाफ उसके भाई कामरान (गुलरुख का बेटा) की बगावत तक केंद्रित है. अब निर्माताओं ने बाबर को चित्रित करने के लिए तथ्यों के साथ कितनी सिनेमाई आजादी ली है इसे इतिहासकार ही साफ़ करेंगे.

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आयाम मेहता और डिनो दिल जीतकर ले जाते हैं 

लेकिन जहां तक वेब सीरीज की बात है- उसे काफी हद तक मनोरंजक बनाए रखने की कोशिश की गई है. इस वक्त बाबर को लेकर बहस को छोड़ दिया जाए तो मुगलों के इतिहास पर विस्तृत जानकारी मिलती है. द एम्पायर मध्यकालीन इतिहास के महत्वपूर्ण कालखंड पर आधारित बड़े स्केल का पहला शो है. कुणाल कपूर ने बाबर की भूमिका निभाई है. कुणाल का काम बढ़िया है. दौलत बेगम की भूमिका में शबाना आजमी प्रभावित करती हैं. खानजादा के रूप में दृष्टि धामी, वजीर खान की भूमिका में राहुल देव भी ठीक लगते हैं. अभिनय के लिहाज से दूसरे सपोर्टिंग एक्टर्स ने भी अपने हिस्से का काम ठीक ही किया है.

दो किरदार खासतौर पर प्रभावित करते हैं. इनमें से एक हैं आयाम मेहता. आयाम ने खानजादा के सेवक की भूमिका निभाई है. एक ऐसा सेवक जिसने अमानवीयता की हद तक यौन और शारीरिक उत्पीड़न को झेला है. सालों से उसके रोम रोम में दर्द समाया हुआ है. आयाम का किरदार शयबानी के हरम में सेवक की भूमिका है और बाबर की बहन खानजादा का सेवक, हमसाया और हमराज है. शयबानी से बदला लेना चाहता है. आयाम की भूमिका कहानी के केंद्र में नहीं है बावजूद उन्होंने किरदार को दिल से जिया है. उनके किरदार की सारी पीड़ा दुःख और संघर्ष एक्ट के दौरान संवाद अदायगी, उनके हावभाव और खामोशियों में दिखते हैं. भले ही भूमिका दूसरे किरदारों की अपेक्षा छोटी है मगर हकीकत में अभिनय के हर पहलू में आयाम समूची स्टारकास्ट पर अकेले भारी नजर आते हैं.

आयाम के अलावा डिनो मोरियो भी प्रभावित करते दिखते हैं. डिनो ने क्रूर शयबानी की भूमिका निभाई है. पहले सीजन का विलेन शयबानी ही है. उनका किरदार भले ही पद्मावत के रणवीर सिंह की याद दिलाता है, पर द एम्पायर की सच्चाई यह है कि डिनो जब तक फ्रेम में दिखते हैं प्रभावित करते हैं. उनका असर ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब उनका एक्ट ख़त्म हो जाता है, द एम्पायर का एक जादू भी वहीं ख़त्म होता दिखता है और आखिर तक उनके किरदार की मौजूदगी ध्यान खींचती है.

तकनीकी पक्ष ने निराश किया 

मीताक्षारा कुमार का निर्देशन, लिखावट और सवांद भी बेहतर ही कहे जाएंगे. वीएफएक्स कमजोर हैं. एनिमेशन की कमियां खटकती हैं. सेट नकली लगते हैं. इब्राहिम लोदी के साथ 1526 में पानीपत की जंग इतिहास की सबसे खौफनाक जंगों में शुमार है. लेकिन युद्ध के सीन में वो भयावहता दिख ही नहीं पाती. हालांकि इंटीरियर, कॉस्टयूम प्रभावित करता है. निजी नैरेटिव के दायरे में शो देखने वालों को कई चीजें जरूर खटकेंगी. मगर द एम्पायर को एक बार देखने लायक शो कहा जा सकता है.

हालांकि किसी भी लिहाज से गेम ऑफ़ थ्रोंस के साथ द एम्पायर की तुलना करना बेइमानी है.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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