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Updated: 12 दिसम्बर, 2022 08:37 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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आखिरकार शाहरुख़ की अपकमिंग फिल्म पठान का पहला गाना बेशरम रंग लॉन्च हो ही गया. गाने को जैसा ट्रीटमेंट दिया गया है, चाहे वो शाहरुख़ के फैंस हों. या फिर दीपिका के चाहने वाले दोनों के ही होश उड़ गए हैं. शाहरुख़ और दीपिका के बीच जैसी केमिस्ट्री गाने में देखी जा रही है तमाम मूवी बफ और क्रिटिक्स इस गाने की शान में कसीदे पढ़ने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं. गाने को लेकर तमाम बातें हो सकती हैं. भांति भांति के तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन गाना देखने के बाद ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि गाना ठीक वैसा ही है जैसा आज के युवा को चाहिए. मतलब गाने में समुंदर है. बीच है, लड़कियां है, शराब है, डीजे है और बेयर चेस्ट में शाहरुख़ खान और गोल्डन मोनोकिनी बिकनी में दीपिका पादुकोण हैं. ऊपर से कमर को थिरकने के लिए मजबूर करने वाला म्यूजिक...

Pathan, Besharam Rang Song, Shah Rukh Khan, Deepika Padukone, Yashraj Films, Bollywood, Songपठान के पहले गाने बेशर्म रंग में नए के नाम पर सिर्फ दीपिका की बिकनी और शाहरुख़ की बॉडी है

हमारे बीच ऐसे तमाम लोग होंगे जिनके होश इतने एलिमेंट्स देखने के बाद उड़ गए होंगे और वो इस गाने को हिट मान लेंगे. तो क्या ऐसा है? क्या गाना हिट है? आगे कुछ बात करने से पहले आइये शाहरुख़- दीपिका की फिल्म पठान के अभी अभी लांच हुए गाने के बोल पर नजर डाल ली जाए. क्या पता विषय में समझने में आसानी हो. गाने में सांग राइटर की कल्पना कुछ यूं है कि

... हमें तो लूट लिया मिलके इश्क़ वालों ने

बहुत ही तंग किया अब तक इन ख्यालों ने

नशा जो चढ़ा शरीफी का उतार फेंका है

बेशर्म रंग कहां देखा दुनिया वालों ने.

अब जबकि ये गाना हमारे सामने है और इसे लेकर सोशल मीडिया पर तमाम किस्म का बज है. तो जब हम गाने के बोल पर गौर करते हैं तो इसमें हमें कहीं भी कुछ नया नहीं दिखाई दे रहा है. मतलब शाहरुख़ की फिल्म थी. बड़ा बजट था. गाने में बिकनी में सिजलिंग दीपिका थीं और गाने का सांग राइटर मानसिक रूप से इतना गरीब था की उसे इस गाने के लिए नए शब्द ही नहीं मिले.

गाना सुनने और उपरोक्त बातें पढ़ने के बाद हैरान होने जैसा कुछ है ही नहीं. दरअसल जैसा कि हालिया दौर में बॉलीवुड का दस्तूर रहा. ये गाना भी कॉपी ही हुआ है. हम ऐसा बिलकुल नहीं कह रहे कि गाने को लिखने वालों ने गाने के एक एक शब्द को कॉपी किया गया है. लेकिन इस गाने को लिखने के लिए सॉन्ग राइटर ने इस्माइल आज़ाद कव्वाल पार्टी की दशकों पुरानी उस कव्वाली 'हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने. गोरे गोरे गलों ने काले काले बालों ने ' को चुना जिसके बोल ओरिजिनल से लेकर रीमिक्स तक किसी भी रूप में हमारे सामने क्यों न आ जाएं हम अपने को थिरकने से नहीं रोक पाते.

ठीक है कि पठान के मेकर्स और शाहरुख़ और दीपिका को भी इस गाने को हॉट ट्रीटमेंट देना था लेकिन क्या उसके लिए एक बेहतरीन कव्वाली का कबाड़ा करना और उसे इस रूप में पेश करना जरूरी था? क्या गाना लिखने से लेकर गाने वाले तक अब इतने क्रिएटिव नहीं रह गए हैं कि वो अपनी कलम कुछ ऐसी चलाएं कि उनका लिखा गाना 'हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों ने. गोरे गोरे गलों ने काले काले बालों ने ' की तरह अजर अमर हो जाए.

बॉलीवुड से हमें इन सवालों का जवाब मिल गया तो बहुत अच्छी बात और अगर इतने अहम मसले पर बॉलीवुड चुप हो जाता है या फिर उसे सांप सूझ जाता है तो फिर स्थिति कई मायनों में वाक़ई गंभीर है.

हम ये बिलकुल नहीं कह रहे हैं कि अपकमिंग पठान का चर्चित गाना बेशर्म रंग अच्छा है कि ख़राब है. हम बस यही सवाल कर रहे हैं कि जब इतनी बड़ी फिल्म का गाना बन रहा था तो चाहे वो इस गाने को लिखने वाले रहे हों या गाने वाले किसी ने खुद आगे आकर इसकी निंदा क्यों नहीं की.

विषय बहुत सीधा है अगर हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों के जरिये हमें स्माइल आज़ाद कव्वाल पार्टी की चर्चित कव्वाली ही सुननी थी तो कई विकल्प हमारे पास मौजूद थे. हम उसी कव्वाली को दोबारा सुन सकते थे. कई रीमिक्स इंटरनेट पर मौजूद हैं, उन्हें देख सकते थे ऐसे में इस गाने की कोई जरूरत ही नहीं थी.

वाक़ई ये चीज समझ से परे है कि जिस हिसाब से इन दिनों गाने आ रहे हैं कोई भी निर्माता निर्देशक कुछ नया क्यों नहीं कर रहा? आखिर क्यों हम आज भी अपनी फिल्मों को चमकाने के लिए पुरानी फिल्मों और उन फिल्मों में दिखाए गए गानों के मोहताज हैं?

पठान के नए गाने बेशर्म रंग के सामने आने के बाद एक बड़ा वर्ग संस्कारों की दुहाई दे रहा है. संस्कृति की बात करते हुए इस गाने को गाने के नाम पर फूहड़ता बता रहा है और बॉयकॉट की मांग कर रहा है. ऐसे में हम इतना जरूर कहेंगे कि अगर पठान के बॉयकॉट के लिए जनता इतनी ही आतुर है तो फिर उसे किसी और चीज से पहले गाने को मुद्दा बनाना चाहिए.

हो सकता है कि जनता का मूड देखकर पठान और इसके इतर फिल्म मेकर्स को इस बात का एहसास हो कि फिल्म के साथ अब वो वक़्त आ गया है जब उन्हें गाने पर भी मेहनत करनी होगी. अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि पठान में बेशर्म रंग के जरिये मेकर्स और शाहरुख़ ने दिल ततोड़ा है और इसकी जितनी निंदा हो कम है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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