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Updated: 07 दिसम्बर, 2022 04:40 PM
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मध्यकालीन भारत के बेहद उथल-पुथल वाले दौर में हिंदवी सम्राज्य की स्थापना करना मामूली बात नहीं थी. जाहिर सी बात है कि हिंदवी साम्राज्य स्थापित करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज स्वयं भी बेहद असाधारण व्यक्तित्व रहे होंगे. वह लोगों के जेहन में जिस तरह जिंदा हैं, और रह-रहकर जैसे उनका नाम लिया जाता है- वह साबित कर देता है कि सैकड़ों साल बाद भी लोग उनके हासिल को याद करते हैं. उन्हें प्यार करने वाले बेशुमार मिल जाएंगे. उनसे नफ़रत करने वालों की भी कमी नहीं है. तमाम बहानों के जरिए शिवाजी महाराज के खिलाफ नफ़रत दिखती रहती है. ताजा बहाना बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार हैं. असल में अपनी पहली मराठी फिल्म में अक्षय छत्रपति शिवाजी महाराज का किरदार निभा रहे हैं.

फिल्म है- वेदत मराठे वीर दौड़े सात. इसका निर्देशन दिग्गज अभिनेता-निर्देशक महेश मांजरेकर निभा रहे हैं. मंगलवार को मुंबई में मराठी पीरियड ड्रामा की शूटिंग शुरू हुई और अक्षय का शिवाजी लुक सामने आया तो हर तरफ इसकी चर्चा होने लगी. हालांकि सोशल मीडिया को देखकर लगता है कि कुछ लोगों के पेट में शिवाजी महाराज पर बन रही फिल्म को लेकर भारी मरोड़ हो रहा है. और अब नाना प्रकार से आलोचना की जा रही है. मजाक उड़ाया जा रहा है. निशाने पर अक्षय हैं, बावजूद कि असल निशाना तो शिवाजी महाराज ही हैं. लोग मजाक उड़ाने के बहाने खोज रहे हैं, मसलन एक फानूस के जरिए मजाक उड़ाया जा रहा. अक्षय के कथित कमजोर लुक की शरद केलकर के शिवाजी लुक से तुलना की रही. जबकि इधर अकबर पर काफी काम कर चुका बॉलीवुड शिवाजी पर संकोच करता दिखता है.

akshay kumarशिवाजी महाराज के किरदार में अक्षय कुमार.

औरंगजेबी ताकतें भला कैसे बर्दाश्त करेंगी शिवाजी महाराज को

अक्षय के विरोधियों को तो खुश होना चाहिए. अगर उनका लुक सही नहीं है, या फिल्म की दूसरी चीजें ठीक नहीं हैं तो दर्शक उन्हें खारिज कर देंगे. अक्षय की फिल्म फ्लॉप हो जाएगी. फिर इतना हाय तौबा मचाने की भला क्या जरूरत है. लेकिन हायतौबा मचाने की जरूरत है. जरूरत इसलिए है कि विरोध अक्षय का नहीं, बल्कि शिवाजी महाराज का किया जा रहा है. और उसके पीछे शायद 'औरंगजेबी' ताकतें ही हैं. क्योंकि शिवाजी महाराज भारतीय समाज के एकीकरण के प्रतीक पुरुष हैं. कभी महाराष्ट्र में जाकर उनकी समाधि को देखिएगा. इस समाधि का जीर्णोद्धार महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने किया था जब किसी अंग्रेज अफसर ने संरक्षण की जरूरत नहीं समझी. बाल गंगाधर तिलक ने भी किया. उनकी समाधि हमारे इतिहास पुरुषों की कोशिशों से संरक्षित होते चली आई है. महाराष्ट्र का हर छोटा-बड़ा व्यक्ति उनकी समाधि पर शीश झुकाता है. उनके संघर्ष को याद करता और समाधि उसके लिए तीर्थ से कम नहीं है.

औरंगजेब में हीरो तलाश करने वालों के लिए शिवाजी पर बन रही फिल्म से तकलीफ तो होगी ही. मुगलिया इतिहास में सबसे आततायी और सबसे ताकतवर शासक औरंगजेब को माना जाता है. एक अकेले शिवाजी महाराज की मौजूदगी से इतिहास में औरंगजेब का महिमागान झूठ का पुलिंदा नजर आता है. साधनहीन पर पराक्रमी और बुद्धिमान शिवाजी महाराज ने उसे घुटनों पर बैठने को विवश कर दिया था. इतना विवश किया कि औरंगजेब चाहकर भी दक्षिण और पश्चिम में हिंदू शासकों के उभार को दबा नहीं पाया. जो सिलसिलेवार विदेशी हमलों की वजह से पूरी तरह बिखर चुके थे. शिवाजी की वजह से आगे एक ऐसी जमीन और चेतना तैयार हुई कि औरंगजेब के मरते ही मुगलिया ताकतें, स्वतंत्रता के लिए बेचैन भारतीय प्रतिरोधों को दिल्ली के आसपास तक पहुंचने से रोक नहीं पाई.

शिवाजी पर आधारित नाटक से ज्यादा मंचित कोई दूसरा नाटक नहीं हुआ होगा देश में

शिवाजी महाराज को देश में ईश्वर की तरह पूजा जाता है. महाराष्ट्र में उन्हें भगवान शिव का अवतार तक माना जाता है. मराठी साहित्य और सिनेमा में शिवाजी महाराज पर दर्जनों काम हैं और लगातार होते ही रहते हैं. महेश मांजरेकर पर फिल्म भी उसी का हिस्सा है. शिवाजी की हस्ती क्या है- इसे मराठी नाटक 'जाणता राजा' से समझा जा सकता है. यह शायद देश में सबसे ज्यादा बार मंचित किया गया नाटक हो. बॉलीवुड ने जरूर शिवाजी महाराज या मध्यकालीन के दूसरे भारतीय लड़ाकों पर फिल्म बनाने से गुरेज किया है. जब भी कोई फिल्म बनाने का प्रयास होता है तो किसी ना किसी बहाने विरोध करने की कोशिशें होती हैं.

औरंगजेब तक जिनका बाल ना बांका कर सका, उनके महिमागान को जन जन तक पहुंचने से कोई क्या रोक पाएगा. मौखिक, किस्सों-कहानियों, नाटकों के जरिए शिवाजी भारतीय चेतना में जिंदा हैं. डिजिटल दौर के बावजूद महाराष्ट्र में जाणता राजा देखने लोग भर-भरकर पहुंचते हैं.

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