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Updated: 26 अक्टूबर, 2017 06:13 PM
सिद्धार्थ हुसैन
सिद्धार्थ हुसैन
  @siddharth.hussain
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फिल्म इंडस्ट्री का नाम आते ही पहले ज़हन में आते हैं, स्टार्स, सुपर स्टार्स और उनका स्टारडम. ग्लैमर की दुनिया जितनी चमकीली बाहर से लगती है हक़ीक़त में उतनी ग्लैमरस नहीं है. एक वर्ग ज़रूर स्टारडम का लुत्फ़ उठाता है लेकिन बहुत बड़ी संख्या में नौजवान लड़के-लड़कियों के हालात कुछ और ही बयां करते हैं. यही वजह फिल्म इंडस्ट्री के साथ कास्टिंग काउच जैसा शब्द भी आसानी से जुड़ जाता है.

हाल ही में कास्टिंग काउच की चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई जब हॉलीवुड के बड़े निर्माता हार्वे विंस्टीन का नाम सामने आया. ऐश्वर्या राय जिस दौर में हॉलीवुड में काम कर रही थीं, तब हॉलीवुड में उनकी मैनेजर सिमोन शेफ़ील्ड ने ख़ुलासा किया हार्वे, ऐश्वर्या से अकेले में मिलना चाहते थे. जो सिमोन ने होने नहीं दिया. ऐश्वर्या ने तो इस बात पर कुछ नहीं कहा, लेकिन आज की सुपर स्टार प्रियंका चोपड़ा ने ज़रूर ट्वीट के ज़रिये अपने खयाल व्यक्त किये. प्रियंका ने कहा "हॉलीवुड हो या बॉलीवुड हर जगह हार्वे जैसे लोग मौजूद हैं" इसके बाद एक बार फिर बहस छिड़ गयी कास्टिंग काउच को लेकर.

फिल्म इंडस्ट्री का एक बड़ा वर्ग मानता है कास्टिंग काउच होता है वहीं एक वर्ग का मानना है, जो लडिकियां या लड़के इसका शिकार होते हैं वो ज्यदातर अपनी ग़लतियों की वजह से होते हैं. किसी के साथ रात गुज़ारने से रोल नहीं मिलता और मिल भी जाये तो आपका भविष्य आपका टैलेंट तय करेगा. कुछ लड़के लड़कियाँ इसलिये भी ख़ामोश रहते हैं कि बाद में उन्हें काम मिलना बंद ना हो जाये और यही वजह है जो बहुत सारे नामचीन लोग आज भी आज़ाद घूम रहे हैं.

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80 के दशक के सुपर स्टार निर्माता निर्देशक का मुंबई में मलाड इलाक़े के पास, मड आइलैंड इलाक़े में बंगला मशहूर ही इसलिये था. जो हीरोइन उस बंगले में गयी मतलब उसके साथ बड़ी फिल्म का ऐलान सुनाई पड़ता था. ऐसे बहुत से लोग हैं जो इन बातों को जानते हैं लेकिन फिर भी ख़ामोश रहते हैं. कुछ साल पहले बीबीसी ने एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी जिसमें कुछ अभिनेत्रियों ने इस बात को माना कि कास्टिंग काउच होता है लेकिन बहुत से लोग अपनी मर्ज़ी से भी जाते हैं.

कुछ एक्‍ट्रेस का मानना है कि ये एक प्रोफ़ेशनल मजबूरी है और अगर रोल अच्छा है तो उन्हें किसी निर्माता निर्देशक के साथ रात गुज़ारने में ऐतराज़ नहीं. वहीं दूसरी तरफ़ मशहूर लेखिका शोभा डे का मानना है इस क़िस्म की सोच रखनेवालों को ज्यादातर सफलता नहीं मिलती. निर्देशक महेश भट्ट ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में या माना कि ये एक कड़वी सच्चाई है जिसे लोग मानना नहीं चाहते, लेकिन ऐसे लोग फिल्म इंडस्ट्री में हैं जो दूसरों की मजबूरी का फ़ायदा उठाने के लिय झूठे सपने दिखाते हैं. शोभा डे ने उस डॉक्यूमेंट्री में ये भी कहा "अक़्लमंद लड़की समझ जाती है अगर उसे रात 11 बजे कोई निर्माता या निर्देशक मीटिंग के लिये बुलाये, ऐसे में जो जाती हैं वो अपनी मर्ज़ी से जाती हैं, टैलेंट के बल पर ही काम मिलता संख्या कम हो सकती है, लेकिन यही सच है ".

सिनेमा, बॉलीवुड, हॉलीवुड, कास्टिंग काउचरणवीर सिंह ने माना था कि उनका सामना भी इस सच्चाई से हुआ था.

आज के सुपर स्टार रणवीर सिंह ने भी एक इंटरव्यू में माना उन्हें भी कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा था. जब वो एक कास्टिंग डायरेक्टर से मिले तो उन्हें एहसास हो गया कि काम के अलावा वो शख्‍स हर बात कर रहा था. रणवीर को गुस्सा ज़रूर आया लेकिन वो उस शक्स को बतौर एक्टर ऑब्ज़र्व करने लगे, लेकिन रणवीर ने किसी क़िस्म का कोई समझौता नहीं किया, वैसे ये वो दौर था जब रणवीर सिंह स्ट्रगल कर रहे थे.

मशहूर फिल्म एक्ट्रेस सुचित्रा कृष्‍णमूर्ति ने भी एक इंटरव्यू में ये माना कास्टिंग काउच है लेकिन ये सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री तक सीमित नहीं है. ये हर जगह हैं, हर क्षेत्र में हैं. लेकिन उन लोगों की ज़िंदगी में दिलचस्पी ज्यादा होती है जो बॉलीवुड से जुड़े होते हैं. वरना आज के दौर में ये बार्टर सिस्टम की तरह है- एक हाथ ले, एक हाथ दे. 60 और 70 के दशक में भी ये होता था लेकिन आज हर चीज़ खुली किताब की तरह है आज मीडिया और कैमरे से बच पाना नामुमकिन है और यही वजह है बंद कमरे की बात बाहर तभी आती है जब कोई खुद चाहे और ज्यदातर लोग चुप रहना पसंद करते हैं.

जूहू इलाक़े में आज भी एक पांच सितारा होटल में 70 और 80 के दशक के कुछ सितारे मिलते हैं, और देखने वालों के मुताबिक़ उनके बच्चों से भी कम उम्र की लड़कियाँ उनके साथ देखी जाती हैं. ऐसे सितारों का मानना है "हम कोई ज़बरदस्ती नहीं कर रहे हैं, जो आती हैं अपनी मर्ज़ी से आती हैं". इसलिये ये बहस और उलझ कर रह जाती है कि आखिर ग़लत कौन है? जो समझौता करवाने का लालच दे रहा है वो, या जो समझौता करने के लिये तैयार हो गया है वो. मगर ये भी सच है बिना समझौते किये लोग भी अपना मक़ाम बनाते हैं. तय खुद करना होगा कि रास्ता कौनसा इख़्तियार किया जाये क्योंकि बात सिर्फ जिस्म की नहीं ज़मीर की भी है.

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लेखक

सिद्धार्थ हुसैन सिद्धार्थ हुसैन @siddharth.hussain

लेखक आजतक में इंटरटेनमेंट एडिटर हैं

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