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Updated: 30 अगस्त, 2021 04:23 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
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डिजनी प्लस हॉटस्टार की वेब सीरीज द एम्पायर (The Empire web series) पर खासी चर्चा है. सीरीज का पहला सीजन स्ट्रीम हो रहा है जिसकी कहानी मुगलिया सल्तनत के संस्थापक जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर (Babur) पर केंद्रित है. बाबर ने ऐसा क्या किया कि हिंदुस्तान उसकी मुट्ठी में आ गया मगर मध्य एशिया में वो लंबे समय तक संघर्ष करने के बावजूद पूरी तरह से वर्चस्व नहीं बना पाया. मुट्ठीभर लड़ाकों की फ़ौज लेकर उसने पानीपत के जंग और उसके तीन साल बाद दिल्ली, आगरा और उसके आसपास मौजूद तत्कालीन क्षत्रपों को असहाय कर दिया. द एम्पायर में बेहद ताकतवर सुल्तान-ए-हिंद इब्राहिम लोदी के खिलाफ पानीपत की जंग वाले सीक्वेंस में इसकी झलक दिखती है. उस जंग में मिली जीत ने मुग़ल साम्राज्य के तख़्त के पायों को हिंदुस्तान में मजबूती से टिका दिया.

पानीपत की पहली जंग में जब बाबर, लोदी के सामने खड़ा था- उसकी क्षमता आंकड़ों में तिनके के बराबर ही थी. अप्रैल 1526 में पानीपत की जंग हुई थी. इतिहासकारों का मानना है कि बाबर की सेना में मात्र 15 हजार सैनिक थे. लोदी की सेना में लगभग 40 हजार सैनिक और कम से कम एक हजार से ज्यादा हाथियों का दस्ता था. मुगलों के मुकाबले लगभग तीन गुना सैनिक. पर्याप्त साजो-सामन और अथाह रसद. बावजूद बाबर की दो रणनीतियों ने उसकी विजय का मार्ग प्रशस्त किया. और उसके बाद जो कुछ हुआ वो इतिहास है. कई सौ साल तक मुगलों को दिल्ली से डिगाया नहीं जा सका. मुगलों का सितारा युद्ध कौशल में ज्यादा एडवांस और दक्ष अंग्रेजों के आने के बाद ही अस्त होता दिखता है. आखिर बाबर ने पानीपत और उसके बाद हिंदुस्तान की जंग में किन तरीकों को आजमाया था?

फरगना-समरकंद और आस पड़ोस में वर्चस्व को लेकर बाबर ने जितने संघर्ष किए वहां जय पराजयों से सबक सीखता गया. ये सबक उसके काम आए जिसे उसने हिंदुस्तान की जंगों में आजमाया. कहते हैं कि पानीपत की जंग में उसने मोहम्मद शयबानी खान के युद्ध कौशल से प्रेरणा लेकर रणनीति बनाई थी. शयबानी, बाबर का दुश्मन था. जब तक शयबानी जिंदा रहा, बाबर चाहकर भी उसपर वर्चस्व नहीं बना पाया था. हो भी क्यों ना, शयबानी की गिनती मध्य एशिया के उस दौर में सबसे खूंखार योद्धाओं में की जाती है. शयबानी की जिद्दी सेनाएं दुश्मन पर बिजली की तरह गिरती थीं. पलक झपकते ही विरोधी खेमा उनके आगे हताश और विवश नजर आता था. दरअसल, मोहम्मद शयबानी "तुलुगमा" रणनीति से युद्ध करता था.

the-empire-panipat-f_082921080125.jpgबाबर भूमिका में कुणाल कपूर. फोटो- डिजनी हॉटस्टार से साभार.

तुलुगमा अचूक उज्बेकी युद्ध रणनीति

मध्यकालीन उज्बेकी लड़ाके इसी रणनीति के तहत दुश्मनों पर धावा बोलकर उन्हें तहस-नहस कर देते थे. सामरिक रूप से तुलुगमा रणनीति को छोटी सेनाओं के लिए माकूल माना जाता है. गुरिल्ला लड़ाइयां, एक हद तक तुलुगमा जैसी दिखती हैं. मगर इनमें फौरी अंतर ये है कि गुरिल्ला योद्धा अचानक हमला करते हैं, दुश्मन खेमे में अफरा-तफरी मचाते हैं और पलक झपकते ही भाग खड़े होते हैं. गुरिल्ला इकाइयां संख्याबल में भी बहुत मामूली होती हैं और दुश्मन की छोटी टुकड़ियों को निशाना बनाती हैं. गुरिल्ला लड़ाकों का मकसद हार या जीत की बजाय दुश्मन में खौफ पैदा करना और उन्हें नुकसान पहुंचाना ज्यादा होता है. गुरिल्ला तकनीकी आमने सामने जंग के मैदान में नहीं आजमाई जाती. बेपरवाह दुश्मन फ़ौज की यात्राओं और उनकी कैम्पिंग के दौरान इस्तेमाल किया जाता है. फिलहाल दुनियाभर के तमाम आतंकी संगठन इस तरह छापामार गुरिल्ला पद्धति का इस्तेमाल करते हैं.

तुलुगमा नीति में क्या होता है?

तुलुगमा रणनीति युद्ध के मैदान के लिए है जिसमें गुरिल्ला पद्धति का भी समावेश होता है. असल बड़ी फौजों को घेरने के लिए उनके खिलाफ यह पद्धति बहुत सटीक, कम नुकसानदेह और नतीजा देने वाली होती है. तुलुगमा रणनीति के तहत सेनाओं को तीन बड़े हिस्सों में बांट दिया जाता है. फ़ौज का दायां और बायां हिस्सा और बाकी फ़ौज पीछे के हिस्से में होती है. आमने-सामने की जंग में एक हिस्सा सामने से हमला करता है, और बाकी हिस्से उसे चारों तरफ से घेरकर खूंखार हमला करते हैं. हमला कारगर रहा तो उसे नतीजे तक जारी रखा जाता है और नुकसानदेह साबित हुआ तो तुलुगमा पद्धति में पीछे से ही मैदान छोड़कर भाग जाना सुरक्षित विकल्प है. बाबर ने इसे शैबानी के खिलाफ लड़ी जंगों में सीखा.

पानीपत में कैसे लोदी पर मौत बनकर टूट पड़ी थी बाबर की मुट्ठीभर फ़ौज

पानीपत की जंग में जब लोदी की विशाल सेना उसके सामने थी उसने इसी तरीके का इस्तेमाल कर लोदी की भारीभरकम पलटन में अफरातफरी मचा दी थी. उसमें तुलुगमा के साथ अरबा पद्धति का भी इस्तेमाल किया जिसमें बैलगाड़ियों पर तोपों को रखकर भीषण हमले किए गए. बारूदी हमले से भड़के हाथियों के दस्ते ने लोदी की सेना को ही नुकसान पहुंचाया. अफरा-तफरी ऐसी मची कि बाबर की मुट्ठीभर सेना चारों तरफ से लोदी की फ़ौज पर टूट पड़ी. लोदी के मरते ही उसकी फ़ौज के सरदारों ने हथियार डाल दिए. पानीपत की लड़ाई वो जंग है जब बाबर ने पहली बार बारूद और तोपों का इस्तेमाल किया. इतिहासकार कहते हैं कि पानीपत की जंग में बाबर की सेना मरने या मारने पर उतारू थी. बाबरनामा में उसने लिखा भी है कि जंग से पहले आत्मघाती हमले के लिए उसने अपने मुट्ठीभर सैनिकों में जोश भरा था. बाबर ने जंग से पहले कहा था- जो भी इस दुनिया में आया है उसे मरना है. जीवन खुदा के हाथ में है, इसलिए मृत्यु से नहीं डरना चाहिए. तुम अल्लाह के नाम पर क़सम खाओ, मौत को सामने देखकर भी मुंह नहीं मोड़ोगे और जब तक जान बाक़ी है तब तक लड़ाई जारी रखोगे. पानीपत के नतीजों ने इतिहास की नई धारा का सूत्रपात किया.

बाबर यहीं नहीं रुका. लोदी को हराने के बावजूद राणा सांगा, दूसरी राजपूत रियासते और लोदी का भाई उसकी सल्तनत के लिए बड़ा खतरा थे. राणा सांगा के पास भी विशाल फ़ौज थी. मगर खानवा की जंग में उसने फिर से एक साल बाद पानीपत के तरीकों को ही दोहराया. चंदेरी और घग्गर की जंग में भी उसने ऐसा ही किया. पानीपत के बाद की इन तीनों जंगों ने मुगल सल्तनत को मजबूती दे दी. शयबानी का युद्ध कौशल हिंदुस्तान में बाबर के काम आया.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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