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Updated: 28 नवम्बर, 2017 04:02 PM
मनीष जैसल
मनीष जैसल
  @jaisal123
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दिल्ली में फिल्म प्रमोशन के एक कार्यक्रम में चालीस पचास लोगों की भीड़ में एक अभिनेत्री के साथ छेड़खानी हो जाए और वह अभिनेत्री उसका सीधा संबंध फ़िल्म मेकर्स से जोड़ दें तो समझिए कहानी में ट्विस्ट है. बोल्ड एक्ट्रेस का खिताब अपने नाम कर चुकी जरीन ख़ान बीते दिनों भीड़ में छेड़छाड़ का शिकार हो गयी. मामला बढ़ते हुए उनकी ही फिल्म अक्सर 2 की कहानी से जुड़ गया जहां बक़ौल ज़रीन उन्हे हर सीन में कम कपड़े पहनने को मजबूर किया गया. यह भी एक प्रकार का शोषण ही है. लेकिन कोई कलाकार बिना सहमति के कैसे इतनी बोल्ड फिल्म कर सकता है?

फिल्म शोले में धर्मेंद्र ने भी लाइटबॉय को मैनेज करके हेमा के साथ रोमांटिक सीन का लुत्फ उठाया था. प्रति रीटेक 100 रुपये धर्मेंद्र ने उसे दिया भी, बाद में धर्मेंद्र और हेमा की दोस्ती शादी में भी बदली. फ़िल्मकार राजा नवाथे ने अपनी फिल्म अंजाना सफर में भी रेखा और विश्वजीत को बिना बताए एक किसिंग शूट कर लिया था. ज़रीन ख़ान ने अक्सर- 2 के निर्माताओं पर भी बिना जानकारी फिल्म में लंबे किसिंग सीन और बिना किसी वजह हर फ्रेम में उनसे छोटे कपड़े पहनाने का आरोप लगाया है. यहां बड़ा सवाल यह है कि फिल्म शूट होने से लेकर रिलीज होने तक में किसी प्रकार की कोई अड़चन नहीं आई. ज़रीन के साथ छेड़खानी की खबरों के बाद यह पूरा सिनेरिओ दर्शकों, पाठकों तक आ पाया नहीं तो एक और शोषण की कहानी दबी रह जाती.

जरीन खान, बॉलीवुड, शोषण   बॉलीवुड में फिल्म की रिलीज के वक़्त अभिनेत्रियों के यौन शोषण की बात कोई नई नहीं है

ज़रीन ने शायद हिन्दी सिनेमा में काम करते हुए ही उन फिल्मों को नहीं देखा जहां स्त्री शोषण को कूट कूट कर भरा हुआ दिखाया गया है. मधुर भंडारकर की फिल्मों से लेकर अविनाश दास तक, स्त्री पक्ष को उकेरते आए हैं. इनमें यह बताने की कोशिश होती रही है कि कैसे पुरुष समाज महिला का शोषण करता आया है. इसके बावजूद 2010 में सलमान ख़ान अभिनीत फिल्म वीर से सिनेमाई पर्दे पर आई जरीन ने ऐसी बोल्ड विषय वाली फिल्म करने का निर्णय कैसे कर लिया. हालांकि फिल्म का चयन उनका व्यक्तिगत मामला है लेकिन एक दर्शक के तौर पर मैं भी यह सकता हूं फिल्मों में काम करते हुए अभिनेत्री स्क्रिप्ट जरूर पढ़ती होंगी. उनके दिमाग में पूरी फिल्म का खांका जरूर बन जाता होता.

अक्सर 2 की कहानी ही स्वार्थ पर टिकी हुई है. व्यक्तिगत स्वार्थ फिल्म का मूल चरित्र है. सभी प्रमुख पात्र फिल्म में एक दूसरे का यूज करते हुए ही दिखते हैं. कभी सेक्सुअल फायदा तो कभी आर्थिक. यहां ध्यान देना होगा कि वीर फिल्म के बाद ज़रीन ने हेट स्टोरी 3 और अक्सर 2 जैसी एडल्ट सर्टिफिकेट वाली फिल्मों का चयन किया है. इन फिल्मों को अपने बोल्ड अवतार,सस्पेंस पर आधारित कहानी, सेक्स, हिंसा की अधिकता के सहारे बेचा जाता है. इनका अपना दर्शक समूह है जो 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग का है. ऐसे में ज़रीन ख़ान को काफी कुछ सोचते समझने की जरूरत थी. अगर वो यह कह रही हैं कि फिल्म को शूट करते हुए बताया नहीं गया कि इसमें आपत्तीजनक और अश्लील दृश्य है तो वह उनका बचकाना जवाब है.

जहां तक निर्माता निर्देशक की बात है वह हॉलीवुड से लिए क्राइम थ्रिलर जोनर में भारतीय मसाला भरने में इन दिनों आतुर दिख रहे हैं. थ्रिलर के नाम पर सेक्सुअल कंटेन्ट को पेश करने में ये निर्माता माहिर हैं. लेकिन दर्शकों की पसंद ने ही इन्हे यह हिम्मत दी है कि फिल्मों की सीरीज तैयार करें. फौरी तौर पर अपने आस पास के सिनेमाघरों को नज़र दौड़ाइए तो आपको पता चलेगा कि अक्सर 2 टाइप फिल्में और किसी सामाजिक मुद्दे पर बनी फिल्मों को देखने वाले में भीड़ आपको किस ओर ज्यादा दिखेगी. इन्टरनेट बुकिंग एप से भी इस तरह का आंकड़ा निकाला जा सकता है.

जरीन खान, बॉलीवुड, शोषण   जरीनका कहना है कि फिल्म में उन्हें छोटे कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया गया है

आइये अब फिल्म का एक गाना सुने जहां हिन्दी सिनेमा के धुरंधरों ने स्त्री के शोषण में भी रोमांस को पेश किया है. ज़रीन को ये तो पता ही रहा होगा कि फिल्म की कहानी में उनका शोषण हो रहा है फिर भी आपका रोमांस रोके नहीं रुक रहा. आपने गाने की शूटिंग के बाद कभी कुछ नहीं बोला.

ज़रीन ख़ान का पूरा मामला मात्र पब्लिसिटी स्टंट हो सकता है, हो सकता है ये उनकी पीआर टीम की स्ट्रेटजी हो. इसे स्त्री अस्मिता से जोड़ कर देखना मुझे कहीं से भी ठीक नहीं लगता. क्योकि ज़रीन ने खुद अपने साथ हो रहे अन्याय को पहचानने के मापदंड नहीं बनाए हैं. उन्होंने अपनी फिल्म अक्सर 2 के जरिये 5 साल बाद वापसी की है, तो लाज़मी है विवादों में रह कर दो चार साल और रहा जा सकता है. स्त्री विमर्श और अस्मिता के सवाल पर बॉलीवुड का लंबा इतिहास बताता है कि यहां बहुत सी कहानियां दफन हैं. लेकिन उन पर ज़रीन खान जैसी अभिनेत्री पब्लिसिटी स्टंट लेकर अपना फिल्म तो बेंच कर चली जाएगी लेकिन असली लड़ाई फिर भी नहीं लड़ी जा पाएगी.

यह सच है कि बॉलीवुड में महिलाओं के साथ शोषण हो रहा है, वरना लंबे समय से चलता भी आ रहा है. पर इस पर महिलाओं में ही एकमत नहीं है. कभी स्वरा भाष्कर अपने साथ हुए अन्याय को उठाती हैं तो कभी कंगना. लेकिन एक साथ एकबारगी कभी बड़ा आंदोलन इस ओर हमें नहीं दिखता.

फिल्मी समाज से ज्यादा प्रेक्टिकल तो हमारा दर्शक समाज है जो अपने साथ हुए अन्याय से मिलकर लड़ते हैं, उनकी खिलाफत करते हैं. मगर फिल्म उद्योग की महिलाएं अपने कैरियर और व्यक्तिगत रिलेशन के चलते कभी एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर कभी नहीं उतर पायीं. ऐसा ही रहा तो हर कोई स्त्री अस्मिता को प्रमोशनल टूल्स के तौर पर इस्तेमाल करते देखे जा सकेंगे.

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लेखक

मनीष जैसल मनीष जैसल @jaisal123

लेखक सिनेमा और फिल्म मेकिंग में पीएचडी कर रहे हैं, और समसामयिक मुद्दों के अलावा सिनेमा पर लिखते हैं.

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