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Updated: 15 नवम्बर, 2017 01:40 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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नागरिकता के लिहाज से हम हिन्दुस्तानी हैं. हममें कुछ हो या न हो मगर हममें, हमारे मन में, हमारे विचारों में भावना की अधिकता और उसका वास बड़ी गहराई तक है. अक्सर देखा गया है कि अभी बात पूरी भी नहीं होती कि उसे सुनने मात्र से ही प्रायः खुश रहने वाली हमारी भावना आहत हो जाती है और उदास होकर कहीं किनारे बैठ जाती है. मौजूदा वक़्त में ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि अब वो दौर आ चुका है जब अमूमन शांत रहने वाली हमारी भावना आहत, बहुत आहत है.

फिलहाल भावना के आहत या कहें कि बहुत ज्‍यादा आहत होने का कारण निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली की आने वाली फिल्म पद्मावती है. भंसाली, पद्मावती को हिस्टॉरिकल फिक्शन बता रहे हैं जबकि जो लोग फिल्म के विरोध में हैं, उनका तर्क है कि इसमें एक ऐसी घटना को प्रेम कहानी बनाया गया है जो इतिहास में एक काला अध्याय है. और जिसने सिर्फ और सिर्फ हमारी भारतीय संस्कृति का भक्षण किया है.

पद्मावती, संजय लीला भंसाली, इतिहास, फिल्म    रानी पद्मावती हमारी संस्कृति से जुड़ी हैं, और संस्कृति के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा

सच और झूठ के बीच एक बड़ी बारीक रेखा रहती है. हो सकता है कि जो चीजें पहले व्यक्ति के लिए सत्य हो वो दूसरे के लिए झूठ हों या फिर दूसरे का सच पहले को झूठ लगे. बातें बहुत सी हैं और इन बहुत सी बातों के बीच ये केवल हमारा विवेक होता है जो हमें सही और गलत के बीच अंतर करना या फिर उसका विरोध करना बताता है. यदि भंसाली अपनी फिल्म को मनोरंजन का नाम देकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता रहे हैं तो वो गलत हैं और जो लोग उनका विरोध कर रहे हैं वो सही हैं.

जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. हम भंसाली और पद्मावती के विरोध में और उन लोगों के समर्थन में हैं जिन्हें ये फिल्म भारतीय संस्कृति के साथ एक मजाक लग रही है. आप ये बिल्कुल भी मत सोचिये कि इस विषय पर अपना समर्थन साबित करने के लिए हम इतिहास की मोटी-मोटी किताबों या फिर बड़े-बड़े रिफ्रेंसों का हवाला देंगे. इस बात के पक्ष में हम आपको जो भी वजह बताएंगे वो हैं तो बहुत साधारण, मगर कहीं न कहीं वो वजहें आपको अवश्य ही प्रभावित करेंगी.

विषय को आगे बढ़ाने से पहले हम पद्मावती पर बात करेंगे. भंसाली और इस विषय पर भंसाली के समर्थकों ने बड़ी ही प्रमुखता से इस बात को बताने का प्रयास किया है कि 'पद्मावती का भारतीय इतिहास में दूर-दूर तक कोई वर्णन नहीं है. ये हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि मलिक मोहम्मद जायसी की रचना है जिसे हम वास्तविकता से हरगिज नहीं जोड़ सकते".

पद्मावती, संजय लीला भंसाली, इतिहास, फिल्म    कह सकते हैं कि पद्मावती पर लड़ाई सम्मान से जुड़ी लड़ाई है

ठीक है साहब, हमनें मान लिया कि रानी पद्मावती एक काल्पनिक पात्र हैं. तो इसका मतलब ये नहीं कि उसका उपहास करा जाए या फिर बाजार में उसे बेचने के नाम पर, उस पर अपने विचार थोपे जाएं और उसके साथ खिलवाड़ किया जाए. बात बहुत साधारण सी है हिन्दू से लेकर मुसलमान तक जब हमारे अलग-अलग धर्मों का आधार ही कल्पना और पौराणिक मान्यताएं हैं तो फिर ऐसे कैसे हम अपनी आंखों के सामने अपने इतिहास से जुड़ी चीजों का मजाक बनने दें.

इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आज के दौर में एक मुसलमान ने अपने पैगम्बर को नहीं देखा, हिन्दुओं ने राम और कृष्ण को नहीं देखा. किसी ईसाई ने येशु के दर्शन सिर्फ बाइबल में किये. बौद्ध धर्म के किसी अनुयायी ने भगवान बुद्ध की कहानियां और शिक्षाएं किताबों में ही पढ़ीं, किस्सों के जरिये ही जानी. ये चीजें चली आ रही हैं और हम इन्हें फॉलो कर रहे हैं. अब कोई इसे माने या नहीं माने मगर एक बड़ी सच्चाई यही है कि हमें अपनी मान्यता पर किसी की भी दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं है.

पद्मावती, संजय लीला भंसाली, इतिहास, फिल्म   बात जब गौरव की आएगी तो लोगों का आहत होना स्वाभाविक है

भंसाली और उनकी फिल्म पद्मावती का विरोध ये साफ बता रहा है कि देश के लोग अपनी संस्कृति का हनन किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करेंगे और बात जब अपनी संस्कृति के संरक्षण और उसे बचाने की आएगी तो जज्बाती हो जाएंगे. भले ही रानी पद्मावती एक काल्पनिक पात्र रही हों, भले ही उनका इतिहास में कहीं कोई वर्णन न हो. मगर वो जायसी की कल्पना में ही सही भारत की पहचान हैं. वो पहचान जिसने खिलजी के खिलाफ, सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए चित्तौड़ की महिलाओं के साथ आग में कूदकर जौहर कर लिया था.

अंत में बस इतना ही कि राम से लेकर कृष्ण तक, बुद्ध से लेकर महावीर तक हमारी किंवदंतियों से जुड़े कई पात्र हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं. ऐसे में अगर कोई उन पात्रों का उपहास कर रहा है तो गुस्सा आना और आहत होना स्वाभाविक है साथ ही ये भी स्वाभाविक है कि हम भावना में बहकर प्रतिक्रिया देंगे. कहा जा सकता है कि आज जो लोग भी भंसाली और उनकी पद्मावती का बहिष्कार कर रहे हैं ये वही लोग हैं जिन्हें अपना इतिहास और अपनी किवदंतियां बहुत प्यारी हैं. हां, वो किवदंतियां जिसको सुन या पढ़कर ये बड़े हुए हैं, जिनसे इनका अस्तित्व जुड़ा है, जो इन्हें दिलों जान से प्यारी हैं. 

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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