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Updated: 22 नवम्बर, 2016 04:22 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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बचपन में स्कूल में जब 'छुक-छुक करती रेल चली' कविता सुनते थे तो उसी लय में टीचर के साथ गाने में भी बड़ा मजा आता था. अब जमाना बदल गया है, बच्चे हाईटेक हो गए हैं और रेल चली वाली कविता पुरानी हो गई है. रेल की छुक-छुक के बीच भी अब कानों में हेडफोन लगाए बच्चे दिखेंगे. देखिए बच्चे भी अपग्रेड हो गए हैं, लेकिन हमारी ट्रेन नहीं. भारतीय रेलवे अभी भी सबसे ज्यादा हादसों का शिकार होने वाले नेटवर्क की लिस्ट में शामिल है.

इसके बाद भी जापान से पीएम बुलेट ट्रेन की मांग कर रहे हैं. अगर जापान से कुछ लेना ही है तो हमें उस तकनीक को समझना चाहिए जिससे तेज चलने वाली ट्रेन में भी हादसा नहीं होता है.

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 सांकेतिक फोटो

जापान का नेटवर्क 'बुलेट'-

जापान में बुलेट ट्रेन नेटवर्क जिसे शिनकैनसन (shinkansen) कहा जाता है दुनिया का सबसे बेस्ट नेटवर्क माना जाता है. ये सबसे तेज स्पीड वाली ट्रेन का नेटवर्क अब नहीं रहा, लेकिन आज भी सबसे सेफ नेटवर्क है. ये नेटवर्क पांच रेलवे ग्रुप कंपनियों द्वारा चलाया जाता है और मजाल है जो यहां कोई हादसा हो जाए.

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50 साल बाद भी नहीं हुई हादसे की वजह से एक भी मौत-

जापान टुडे के डेटा के अनुसार 1964 जबसे इस नेटवर्क की शुरुआत हुई है तबसे एक भी पैसेंजर की जान किसी हादसे की वजह से नहीं हुई. ये तब है जब जापान में भूकंप आम हैं. मार्च 11, 2011 के ईस्ट जापान भूकंप (जिसे महाविनाशकारी माना जा रहा था) के बाद भी ट्रेन में हादसे की वजह से किसी की जान नहीं गई.

ये तकनीक है इसके पीछे-

जापान में चीन और बाकी देशों की तरह सीधी जमीन कम है. इसलिए सीधी रेल की पटरियां भी नहीं हैं. जापान में रेल की पटरियों में मोड़ ज्यादा हैं इसलिए इन्हें ऐसी तकनीक चाहिए थी जिससे ट्रेन तेज होने के साथ-साथ आसानी से मुड़ सके.

इसके कारण जापानियों ने खास सेंसर अपनी ट्रेन में लगाए जिससे ट्रेन आसानी से मुड़ सके. इसके अलावा, इन ट्रेनों का ऑटोमैटिक ब्रेकिंग सिस्टम किसी आर्ट से कम नहीं है. ये सिस्टम इतना ताकतवर है कि 320 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही ट्रेन को भी 300 मीटर के अंदर रोक सकता है. जैसे ही भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं वैसे ही ट्रेन के सेंसर अलार्म हो जाते हैं और ट्रेन रुक जाती है.

ये अलार्म तब भी एक्टिव हो जाता है जब एक ट्रेन किसी दूसरी ट्रेन के पास चली जाती है. ऐसे में दोनों अपनी जगह पर रुक जाती हैं.

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 सांकेतिक फोटो

बाकी देशों में हुए हैं हादसे-

बाकी देशों में भी हादसे हुए हैं. जैसे चीन में 2011 के बुलेट ट्रेन हादसे में 40लोगों की मौत हो गई थी. इसके अलावा, जापान की TGV बुलेट ट्रेन में भी एक्सीडेंट्स होते रहते हैं. 2013 में स्पेन में ट्रेन के पटरी से उतरने पर 79 लोगों की मौत हो गई थी.

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सेकंड के हिसाब से तय होती है ट्रेन की टाइमिंग-

जापान का रेल नेटवर्क अपनी टाइमिंग के लिए भी लोकप्रिय है. वहां ट्रेनें मिनट ही नहीं सेकंड तक भी टाइम पर रहते हैं. अगर एक मिनट से ज्यादा ट्रेन लेट हुई तो यात्रियों से माफी भी मांगी जाती है.

एक ओर ऐसी ट्रेन है जहां 50 सालों में एक भी जान नहीं गई और एक तरफ हमारी रेलवे ही जहां मौतों की गिनती ही नहीं की जा सकती है. ऐसे में अगर हमें जापान से कुछ लेना चाहिए तो वो तकनीक जिसकी वजह से लोगों की जान बचती है. उम्मीद है कि हमारी ट्रेनों को सुरक्षित बनाने के लिए 2022 तक का इंतजार सरकार नहीं करेगी.

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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