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Updated: 12 मई, 2023 09:16 PM
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कितने भी नियम बना लें, स्कैमर्स और स्पैमर्स हैं कि तोड़ निकाल ही लेते हैं. जरुरत है यूजर्स कैसे जागरूक हों, उनकी अवेयरनेस कैसे बढ़ाई जाए ? क्यों ना अंधे प्यार सरीखी ऑनलाइन रहने की दीवानगी को ही हथियार बनाया जाये विकृत साइबर अनाचार के प्रति यूजर्स को जागरूक करने के लिए ? और ये काम फाइनेंसियल सिस्टम मसलन बैंक, निवेश सलाहकार, बीमा कंपनियां और अन्य सहयोगी बखूबी कर सकते है, आखिर कहीं न कहीं विक्टिम वे भी तो हैं. क्यों ना उन्हीं ऑनलाइन प्लेटफार्म मसलन यूट्यूब, ट्विटर , फेसबुक, व्हाट्सएप अदि पर जमकर इफेक्टिव अवेयरनेस क्रिएटिव वीडियो शेयर किए जाएं ? सौ फीसदी इंडियन स्मार्टफोन यूजर आज स्पैम कॉल से परिचित है, समझता है. बीमा खरीदने की वकालत करते फोन तो आम हैं ही, अब तो घर और बाकी चीजें बेचने के नाम पर पता नहीं कब फ्रॉड हो जाए, कहना मुश्किल है. ग्लोबल डाटा बताता है कि स्पैम से प्रभावित देशों में भारत का स्थान आज तीसरा है. क्यों ना हों, यूजर जो 66 करोड़ हैं जो की चीन के बाद दुनिया भर में सबसे ज्यादा हैं. और ये तब है जब तमाम विकसित और विकासशील देशों की तुलना में यूजरों का प्रतिशत काफी कम है. औसतन हर भारतीय स्मार्टफोन उपभोक्ता को कम से कम 10-15 स्पैम कॉल आते ही हैं.

Betray, Online, Conman. Banking, Cyber Crime, Crime, Criminal, Mobileये वाक़ई हैरान करने वाला है कि आज बड़े बड़े धुरंधर भी ऑनलाइन ठगों द्वारा की जा रही ठगी की चपेट में आ रहे हैं

कहने को तो ट्राई स्पैम कॉल समस्या का समाधान खोजने पर काम कर रहा है, उपभोक्ता डू नॉट डिस्टर्ब (DND) सर्विस के लिए खुद को रजिस्टर भी कर रहा है ; फिर भी स्पैम कॉल और मैसेज का सिलसिला रुका नहीं है. और अब तो स्पैमर्स और स्कैमर्स ने व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे लोकप्रिय इंस्टेंट मैसेजिंग एप्लिकेशन को भी एक्सप्लॉइट करना शुरू कर दिया है. आजकल तो इंटरनेशनल नंबर से कभी मिस्ड वीडियो कॉल आ जाता है तो कभी संदेहात्मक मैसेज जो निश्चित ही किसी स्कैम की मोडस ऑपरेंडी ही है फंसाने के लिए.

कभी एक मुस्कराते हुए चेहरे और इमोजी के साथ आपका हालचाल पूछता मैसेज फ़्लैश होता है, ‘हेलो डियर, हाउ आर यू टुडे’, आपने जवाब दिया नहीं कि आप स्कैमर के पोटेंशियल शिकार हो गए. कभी एक अनजाना मिस्ड कॉल आ जाएगा जिसके तुरंत बाद एक इरोटिक मैसेज और GIF भी मिल जाएगा. भेजने वाला शत प्रतिशत स्कैमर ही है जिसने जाल बिछाना चालू कर दिया है और पता नहीं कब वो कमजोर पल आ जाए जब आप फिशिंग के शिकार हो जाएंगे.

यदि इन मैसेजिंग एप्लीकेशन प्लेटफार्म से बात करें तो उनका 'एंड टू एंड इंक्रिप्टेड' वाला स्टैण्डर्ड जवाब होता है कि नियंत्रण ऐप के यूज़र्स के हाथ में हैं कि कौन उन्हें कॉल करे चूंकि ऐसा सेटिंग्स >प्राइवेसी और सुरक्षा>कॉल मेनू के माध्यम से किया जा सकता है.इसके अलावा वे कहेंगे कि उन्होंने अपने उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए एआई, अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, स्वचालित टूल और डेटा एक्सपर्ट्स लगा रखे हैं.

ठीक है वे अपडेट हो रहे हैं लेकिन स्कैमर्स और स्पैमर्स भी पूरी तन्मयता से अपडेटेड होने में कोई कोर कसर बाक़ी नहीं रख रहे हैं. वो कहावत है ना, 'तू डाल डाल मैं पात पात' ! सवाल है क्या FAQ में ये कहकर कि, 'उपयोगकर्ता किसी भी ऐप पर अप्रत्याशित लाभ, नौकरी की पेशकश, धन योजना, आदि के विवरण के साथ संदेश प्राप्त कर सकते हैं.'  वे पिंड छुड़ा सकते हैं या बरी हो सकते हैं ?

बड़ा आदर्श सा लगता है उनका उपदेश कि बेहतर निर्णय लें, सावधानी से जांच कर लें क्योंकि ये स्कैम हो सकते हैं, ऐसे सेंडर से आगे बात ना बढ़ाते हुए तुरंत ब्लॉक कर दें.हर रोज मिलती असंख्य शिकायतों का निचोड़ निकालें तो इंडिया के व्हाट्सप्प यूजर्स को फ़िशी से लगने वाले अधिकांश सन्देश फाइनेंसियल सर्विसेज, रियल एस्टेट, नौकरी या कमाई के अवसर, पैथोलॉजी सर्विसेज और हेल्थ बीमा बेचने वालों के होते हैं.

सवाल है अचानक से देश में स्पैम और धोखाघड़ी कॉल्स की बाढ़ सी क्यों है ? एक वजह बढ़ती डिजिटल लिटरेसी और स्मार्टफोन के उपयोग हैं जिससे स्कैमर्स के लिए हंटिंग ग्राउंड विशालकाय जो हो गया है. फिर डाटा और कॉल प्लान भी खूब सस्ते हो गए हैं. और फिर कोविड 19 जनित सामाजिक वित्तीय प्रभावों ने स्कैमर्स को मौका दे दिया एक्सप्लॉइट करने का.

कमजोर डाटा प्रोटेक्शन नियमों ने कस्टमर्स डाटा बेस में सेंधमारी आसान कर दी है, प्रमुख कंपनियां भी डाटा नियमों का उल्लंघन करती पाई गई हैं. ये स्कैमर्स ग्राहक का विश्वास हासिल करने के लिए उससे जुड़ी कुछ व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग करते हैं, जैसे कि वे आपका सही नाम बताते हुए आपकी डेट ऑफ़ बर्थ, जन्म स्थान आदि इस प्रकार बताएँगे कि आप उस धोखेबाज का विश्रास कर बैठेंगे.

फिर वे ग्राहक के समक्ष कुछ इमरजेंसी सरीखी सिचुएशन रखते हुए, मसलन अनधिकृत लेनदेन रोकने, पेनल्टी से बचने, डिस्काउंट की आखिरी तारीख आदि, उनके पासवर्ड, ओटीपी, पिन और सीवीवी जैसी संवेदनशील जानकारी लेने के लिए ऐसा माहौल क्रिएट कर देंगे कि ग्राहक जानकारी शेयर करने को तत्पर हो जाएगा. और एक बार जब वे इन क्रेडेंशियल्स को प्राप्त कर लेते हैं, तो वे उनका उपयोग यूजर्स को धोखा देने के लिए कर सकते हैं.

और मान लीजिये किसी ग्राहक का सिक्स्थ सेंस जग गया या उसे सद्बुद्धि ही आ गई तो स्कैमर का क्या बिगड़ा ? तू नहीं कोई और सही, एक बुद्धू ढूंढो, दस मिलते हैं ! आजकल एक नायाब तरीका है घोटाले को अंजाम देने का 'केवाईसी घोटाला' जिसकी मोडस ऑपरेंडी के तहत जालसाज बैंक या डिजिटल पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर यूजर्स से अपनी जेनुइनिटी का बखान इस तर्ज पर करते हैं कि वे आरबीआई की अनिवार्यता के अनुरूप केवाईसी ले रहे हैं.

और हम इंडियन हैं कि समझ बैठे हैं केवाईसी मांगना ही कंपनी की प्रामाणिकता की कसौटी है, कभी किसी के बहकावे में आकर आपने एक रिमोट एक्सेस एप डाउनलोड किया नहीं कि आप भी पोटेंशियल विक्टिम डेटाबेस में आ गए और अंततः बैंक खाते से , कार्डों या डिजिटल मोबाइल वॉलेट से पैसे कब कट जाएंगे, पता ही नहीं चलेगा.

कभी लालच दे दिया जाता है लॉटरी या प्राइज जीतने का जिसके मिलने के लिए थोड़ा तो शुल्क देना बनता ही है ! और अब तो एआई बेस्ड डीपफेक टेक्नोलॉजी भी है जिसका उपयोग हो सकता है तो दुरुपयोग भी होगा ना ओटीपी हासिल करने के लिए ! मिस्ड वीडियो कॉल को कॉल बैक किया तो सामना होगा किसी न्यूड पर्सन या किसी अश्लील वीडियो से और हो गया सेक्स चैट करता बंदा कैप्चर और फिर ब्लैकमेल किया जाएगा.

यही होता है सेक्सटॉर्शन ! और ऑडियो मिस्ड कॉल तो जानबूझकर किया जाता है . 'वन रिंग एंड कट' एक प्रकार से प्रॉम्प्टिंग है कॉल बैक के लिए. उद्देश्य होता है यूजर से ज्यादा शुल्क लेने का या फिर उसकी व्यक्तिगत जानकारी निकालने की. वर्तमान में, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर प्राप्त होने वाले अनचाहे कॉल और मैसेज की समस्या को दूर करने के लिए कोई विशिष्ट नियम नहीं हैं.

जहां तक स्पैम कॉल की बात है, ट्राई या अन्य एजेंसियों के नियंत्रण के तमाम प्रयास फलीभूत नहीं हो पा रहे हैं. तभी तो ट्रेडिशनल अनचाहे कमर्शियल मैसेज परेशान कर ही रहे हैं. कहने को तो कह दिया जाता है, नियमों की दुहाई भी दे दी जाती है कि स्पेसिफिक टाइम और दिनों पर प्रचार संदेशों का ट्रांसमिशन ग्राहकों की सहमति लेकर ही किया जाता है. सहमति कैसे ली जाती है, जिन पलों में जिस प्रकार से "I agree" पर allow करा लिया जाता है, जगजाहिर है.

एक प्रकार से ट्रैप ही है, अनेकों फंस ही जाते हैं. अब तो हैंडल ही फर्जी होते हैं मसलन VM-BANK या JM, AD सरीखे प्रीफिक्स कोई भी सच्चा है या फर्जी, ग्राहक कैसे जाने ? संबंधित बैंक या संस्था को कांटेक्ट करो तो स्टैंडर्ड जवाब है हमारा वेरिफाइड हैंडल नहीं है. कहने का मतलब कस्टमर तो है ही दोहन के लिए. या फिर 'राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट' कहा ही जाता रहा है चिरकाल से ! अब तो स्पैम कॉल दस डिजिट के नंबरों से भी आने लगे हैं, जबकि कहने को ये नियमों का उल्लंघन है.

दरअसल दस अंकों की संख्या से स्पैम में बहुत अधिक वृद्धि हुई है. और भी बहुत कुछ अनवांटेड, अनर्गल है जो इन दस अंकों की संख्या के नंबरों से आ रहा है. सवाल है नंबर कैसे लीक हो रहे हैं ? हम आप ही देते हैं मोबाइल रिचार्ज पॉइंट्स पर, कूरियर कंपनियों को , ऑफिस बिल्डिंग और अपार्टमेंट बिल्डिंग में एंट्री के लिए. और हमें अंदाजा ही नहीं है नंबरों के इस फ्री फ्लो से कितनी जायंट लिस्ट तैयार हो जा रही है स्पैमर्स और स्कैमर्स के लिए. कहने को नियम हैं, शायद अच्छे भी हैं लेकिन लागू करना मुद्दा है.

तकनीकी रूप से, स्कैमर अक्सर अपनी पहचान और स्थान छिपाने के लिए कॉलर-आईडी-स्पूफिंग तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिससे उन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है और जिस नंबर को एक्सप्लॉइट किया गया, वास्तव में तो उस नंबर से कॉल या मैसेज किया ही नहीं गया था. अंततः रोकथाम और सुरक्षा के लिए यूजर्स का जागरूक होना आवश्यक है. लेकिन यूजर्स क्या करे ?

To do और Not to do, मसलन उसे कभी भी व्यक्तिगत डेटा नहीं देना चाहिए, हमेशा फोन नंबर सत्यापित करना चाहिए, कभी भी अपना ऑनलाइन एक्सेस शेयर नहीं करना चाहिए, कैसे संभव है इस विकृत डिजिटल वर्ल्ड में ? कितना भी सतर्क रहे, सतर्कता गई और दुर्घटना घटी !

फिर भी एक आदर्श स्थिति तो यही होगी कि हम अपनी डिजिटल लाइफ को रेगुलेट करें, अनावश्यक ऑनलाइन क्यों रहें, क्योंकि जब रहेंगे तो चंचल मन भिन्न भिन्न एप्प और सोशल मीडिया प्लेटफार्म खंगालेगा और पता नहीं कब फ़िशी रूपी डेंजर जोन में प्रवृत हो जाएंगे और बॉट से लैस स्कैमर के हत्थे चढ़ अपनी आइडेंटिटी, अपनी रूचि, अपनी चाहत उसके साथ शेयर कर देंगे. भूल जाइये या उस मुगालते को छोड़ दें कि 'On the internet nobody knows you are a dog.'

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लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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