New

होम -> टेक्नोलॉजी

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 09 नवम्बर, 2015 05:40 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
  • Total Shares

बढ़ते प्रदूषण के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के संकट ने पूरी दुनिया की नींद उड़ा रखी है. विकास की सरपट दौड़ में भागते देश चाहकर भी पेट्रोल, डीजल और कोयले के बढ़ते हुए उपयोग पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं. ऐसे में यही सवाल उठता है कि एनर्जी की जरूरतों को बिना प्रदूषण के कैसे पूरा किया जाए, तो इस मामले में ऑस्ट्रिया ने दुनिया को दिखाया है कि कैसे रिन्यूएबल एनर्जी का प्रयोग करके इस समस्या से आसानी से निपटा जा सकता है.

ऑस्ट्रिया के छोटे से शहर गसिंग ने दिखाई राहः

रिन्यूएबल एनर्जी के मामले में दुनिया के लिए मिसाल बने 27 हजार की आबादी वाले ऑस्ट्रिया के एक छोटे से शहर गसिंग की कहानी बेहद रोचक है. 1988 तक कृषि पर निर्भरता वाला यह शहर बेहद गरीब था. उस समय इस शहर के लिए अपनी कुल ईंधन की जरूरतों का सलाना खर्च (47 लाख डॉलर) भी वहन कर पाना मुश्किल था. इसके नीति निर्माताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इसकी आर्थिक समस्या का प्रमुख कारण बाहर से खरीदी जाने वाली एनर्जी (बिजली, तेल और कोयला) है. जिसके बाद इसने एनर्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का फैसला किया. उनका मानना था कि इसके पास उपलब्ध 45 फीसदी जंगल की भूमि का उपयोग ही नहीं किया जा रहा था. 1990 में एक नीति बनी और फॉसिल्स ईंधन के प्रयोग को पूरी तरह से बंद करने का प्रस्ताव रखा गया. इसका मकसद गसिंग में मौजूद प्राकृतिक स्रोतों की मदद से एनर्जी उत्पादन को बढ़ावा देना था.

1992 में गसिंग के मेयर पीटर वाद्स्ज ने इस दिशा में काफी प्रयास किए. सबसे पहले सभी सार्वजनिक भवनों और स्ट्रीट्स की लाइट्स को कम ऊर्जा खर्च करने वाले बल्ब से बदला गया और सभी सार्वजनिक भवनों को फॉसिल्स ईंधन का प्रयोग न करने का आदेश दिया गया. गसिंग में ज्यादा विंग मौजूद नहीं है इसलिए शहर के 328 एकड़ में फैले जंगलों से ही एनर्जी एकत्र करने का फैसला हुआ. जिसके बाद लकड़ी से जलने वाला एक प्लांट बनाया गया जोकि 6 घरों को गर्मी प्रदान करता था. इसकी सफलता के बाद ऐसे ही और छोटे हीटिंग प्लांट लगाए गए. 1996 में हीटिंग प्लांट को पूरे शहर में लगाया गया. इन हीटिंग प्लांट्स का उपयोग बिजली पैदा करने के लिए भी किया जाने लगा.

2001 में गसिंग में जैव ईंधन गैस प्लांट स्थापित किए गए, जिन्हें चलाने के लिए जंगल की लकड़ियों के टुकड़ों और लकड़ी के फ्लोर बनाने वाली कंपनियों की बेकार लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया. यह अपनी तरह का दुनिया में एकमात्र प्लांट है जो भाप का प्रयोग कार्बन और हाइड्रोजन को अलग करने के बाद इन अणुओं को एकत्र करके एक प्राकृतिक गैस का निर्माण करता है, जिससे शहर के बिजली प्लांट्स को ईंधन मुहैया कराया जाता है. साथ ही शहर में सफेद सरसों के तेल को बायोडीजल में बदलने वाला प्लांट स्थापित किया गया. जिसका उपयोग शहर के सभी ईंधन भरने वाले स्टेशनों में किया जाता है. आज गसिंग अपनी जरूरत से ज्यादा रिन्यूएबल एनर्जी पैदा करता है. इतना ही नहीं ऑस्ट्रिया के बाकी के शहरों ने भी रिन्यूएबल एनर्जी में भारी निवेश किया. साथ ही इको-इलेक्ट्रिसिटी से लेकर सोलर पार्क और हाइड्रोइलेक्ट्रिक स्टेशनों की स्थापना के लिए अरबों डॉलर निवेश किए गए.

इसके कारण कभी गरीबी की मार झेलने वाले इस शहर में आज 60 नई कंपनियां हैं और 1500 से हजार नौकरियां पैदा हुई हैं. गसिंग को आज एनर्जी बेचकर 1.7 करोड़ डॉलर का सलाना राजस्व प्राप्त होता है. गसिंग से मिली सीख से आज ऑस्ट्रिया के 15 से ज्यादा क्षेत्र ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर बन गए हैं, यहां तक कि लोवर ऑस्ट्रिया तो अपनी एनर्जी की जरूरत का 100 फीसदी रिन्यूएबल एनर्जी से ही पूरा कर रहा है.

भारत को क्या करने की जरूरत हैः

2012 में भारत ने 1.7 टन, चीन ने 6.9 टन और अमेरिका ने 16.3 टन कार्बन का उत्सर्जन किया. लेकिन फॉसिल्स ईंधनों के जबर्दस्त प्रयोग के कारण भारत 2040 तक ग्रीन हाउस यानी खतरनाक गैसों के उत्सर्जन के मामले में अमेरिका और चीन को भी पीछे छोड़ देगा. ऐसे में अपनी बढ़ती हुई आबादी को बिना प्रदूषण पैदा किए एनर्जी उपलब्ध कराने के लिए भारत के पास भी ऑस्ट्रिया की राह पर चलने का विकल्प मौजूद है. भारत भी रिन्यूएबल एनर्जी यानी कि विंड मिल, हाइड्रोपावर और सोलर पावर को अपनाकर कार्बन उत्सर्जन जैसी समस्याओं से बच सकता है.

#ऑस्ट्रिया, #रिन्यूएबल एनर्जी, #प्रदूषण, ऑस्ट्रिया, रिन्यूएबल एनर्जी, प्रदूषण

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय