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Updated: 22 फरवरी, 2023 04:04 PM
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तकनीक में होने वाली उल्लेखनीय प्रगति अक्सर समृद्धि के द्वार खोलती है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता है. विकास, चाहे राष्ट्र का हो या व्यक्तिगत हो या सामजिक ही हो, अनेक तरीकों से तकनीकों की उचित वृद्धि और उनके विकास से जुड़ा हुआ है. मानव जीवन के अस्तित्व और प्रगति के लिये जरूरी है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान और तकनीक का इस्तेमाल हो. यह तकनीक ही है जिसने मानव जीवन को अत्यंत सहज, सरल और रोचक बना दिया है. इसके साथ ही सच यह भी है जहां एक ओर तकनीक ने सदैव विकास की राह प्रशस्त की है, वहीं दूसरी ओर कुछ नैतिक दुविधाएं भी तकनीक की राह में आती रही हैं. एआई में हो रही द्रुत प्रगति से मचे कोलाहल के बीच बड़ा सवाल है कि इससे किसको फायदा होगा और कितना?

एक बात तो समझ आ रही है कि उद्यमियों के लिए शायद एआई उतना फायदेमंद ना हो और हो सकता है उनके लिए मंदी की वजह बन जाए. लेकिन हर हाल में कंज़्यूमर्स के हित में ही रहेगा, यहां ये कंडीशंस अप्लाई है कि आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस दुनिया को कितना बदल पाता है. एक बात यह भी तय है कि इसके शुरुआती मेकर्स भी इससे कोई ख़ास समृद्धि हासिल नहीं कर पाएंगे. थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड सा है समझना और समझाना भी. एक मूल बात में निहित है इस उलझन को सुलझाने की कवायद.

वह शाश्वत बात है कि वास्तविक मूलभूत परिवर्तनों का असर अर्थव्यवस्था के हर हिस्से पर पड़ता है. क्योंकि ये परिवर्तन विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर आसानी से उपलब्ध होते हैं. इंटरनेट आधारित तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने, मसलन गूगल, फेसबुक, ट्विटर और अन्य, खूब धनार्जन किया और करते जा रहे हैं, लेकिन इंटरनेट बनाने वालों के हिस्से क्या आया? कहने से कोई गुरेज नहीं है कि सोशल मीडिया के सर्वाधिक सफल उद्यमियों ने खूब नाम और दाम कमाया, जबकि इंटरनेट बनाने वालों ने नहीं.

650x400_022123103357.jpgतकनीक में होने वाली उल्लेखनीय प्रगति अक्सर समृद्धि के द्वार खोलती है.

थोड़ा पास्ट ट्रेवल कर 1992 में आते हैं. तब सभी कहते थे आने वाले समय में इंटरनेट एक क्रांति लाएगा, लेकिन वे अनजान थे कि आने वाले समय में पैसा कमाने का आसान जरिया इंटरनेट होगा. ऐसा सिर्फ़ इंटरनेट के आविष्कारकों के साथ ही नहीं हुआ, प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कारक गुटेनबर्ग के साथ भी यही हुआ. अब एक सवाल उठता है क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के मौजूदा आविष्कार यानी लार्ज लैंग्वेज मॉडल वाली सर्विसेज जैसे चैट्जीपीटी, इंटरनेट और प्रिंटिंग प्रेस के समकक्ष है या सोशल मीडिया से ज्यादा मेल खाती है? अब तक जितनी भी टेस्टीमोनीज़ पब्लिक डोमेन में हैं, उनके मुताबिक़ तो ये सर्विसेज दोनों के बीच कहीं ठहरती है. तो सोशल मीडिया के समकक्ष तौल लें बड़ी एआई कंपनियों को.

फेसबुक क्यों निहाल हो रहा है? हम अपने मित्रों और परिवार के साथ संपर्क में रहना चाहते हैं, कौन कब कहां कैसे क्या कर रहा है, जानना ज़रूरी जो है रियल टाइम में. इसी का लाभ फेसबुक जैसी एक बड़ी और प्रमुख सोशल नेटवर्किंग सर्विस को बाजार में मिलेगा ही मिलेगा. इन दिनों मास्टोडॉन खूब चर्चा में है, खासकर तब से जब से ट्विटर के मालिक एलन मस्क ने कहा है कि ब्लू टिक के लिए चार्ज भी किया जाएगा, लेकिन कितने लोग हैं जिन्होंने इस स्वचालित निःशुल्क क्राउडफंडिंग सपोर्टेड सॉफ्टवेयर के लिए ट्विटर को छोड़ दिया? अनेकों जानी-मानी हस्तियों ने ट्विटर की आलोचना करते हुए घोषणा जरूर कर दी, परंतु कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि वे ही शुल्क देने वालों में अग्रणी हों. कहने का तात्पर्य यही है कि आकार और प्रमुखता मायने रखती हैं.

हां, मस्टडॉन को भी थोड़े बहुत यूजर्स मिल जाएंगे. बहुतेरे कॉमन ही होंगे जो ट्विटर भी नहीं छोड़ेंगे; फिर भी ट्विटर के समकक्ष आना बोले तो असंभव ही है. लेकिन बड़ी आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस कंपनियों को ऐसा लाभ मिलता दिखाई नहीं देता है. फर्ज कीजिए राम ओपन एआई के चैट्जीपीटी का इस्तेमाल करता है और श्याम एंथ्रोपिक के क्लाड का. तब भी दोनों किसी और माध्यम के जरिए एक दूसरे के साथ आसानी से संवाद कर सकते हैं. यह भी संभव है कि किसी तीसरे मध्यस्थ के जरिए 'टेक्स्ट' का उपयोग कर दोनों एक सर्विस को दूसरी सर्विस से जोड़ ले. कालांतर में कुछेक एआई सेवाएं ही, यहां तक कि सिर्फ एक ही, अन्य तमाम सेवाओं से बेहतर साबित होगी होगी चूंकि वे या वह मल्टीपर्पस होंगी यानी विविध उद्देश्यों के लिए बनाई गई होगी. फिर ये कुछेक कंपनियां सर्वोत्तम हार्डवेयर खरीद सकती हैं, बेस्टेस्ट प्रतिभाओं को हायर कर सकती हैं.

इसके साथ ही अपने ब्रांड को बेहतर तरीके से प्रबंधित भी कर सकती है. लेकिन उन्हें कम कीमत पर कम (लेकिन फिर भी अच्छी) सेवाएं देने वाली अन्य कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का सामना करना ही पड़ेगा. बात जब लार्ज लैंग्वेज मॉडल की आती है तो पहले से ही कई सर्विसेज मौजूद हैं, मसलन बाइडू, गूगल और एंथ्रोपिक के प्रोडक्ट्स मार्केट में आने को तत्पर हैं. एआई इमेज जनरेशन अब भी बहुत भरा पड़ा है. आर्थिक लिहाज से देखें तो अग्रणी एआई कंपनी 'सेल्सफोर्स' सरीखी तो बन सकती है, लेकिन तकनीकी क्षेत्र की 1 ट्रिलियन डॉलर मूल्यांकन वाली अन्य कंपनियों के आस पास पहुंचना उसके लिए दूर की कौड़ी ही रहेगी. सेल्सफ़ोर्स एक बड़ी लोकप्रिय संस्थागत सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट्स की कारोबारी और विक्रेता कंपनी है तब भी कंपनी की वैल्यूएशन तक़रीबन 170 अरब डॉलर ही है. आज की तारीख में बाजार की अग्रणी कंपनी ओपनएआई का निजी मूल्यांकन 29 अरब डॉलर आंका गया है. पर ऐसी कई कंपनियां हैं, जिनका नाम भी बहुतों ने ना सुना हो, लेकिन मूल्य कहीं अधिक है.

बतौर उदाहरण बायो फार्मास्युटिकल कंपनी एबवी का मूल्य 271 बिलियन डॉलर है, ओपनएआई से करीब दस गुना ज्यादा. जिक्र करने का मतलब किसी को कमतर बांटने का कदापि नहीं है. ना ही ये मतलब है कि एआई धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा. बल्कि एआई सेवाएं हर व्यक्ति के कामकाज का हिस्सा बनेगी और पूरी अर्थव्यवस्था में पसर जायेगी. यहां तक कि सामाजिक व्यवस्थाएं और संस्थान भी इससे अछूते नहीं रहेंगे. संयोग ही है कि लिखते-लिखते सुन रहा हूं. देश की शीर्षस्थ न्यायालय में आज पहली बार आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर सुनवाई की लाइव ट्रांसक्रिप्शन की प्रक्रिया शुरू हुई है.

हर कोई अधिक संपन्न होगा, सबसे अधिक वे कर्मचारी और उपभोक्ता जो उपयोग करेंगे. एआई से जुडी नित नई आईडिया आएंगी, बातें होंगी, साकार होंगी और दोहराई भी जाएंगी. भविष्य की बड़ी एआई कंपनियों को कड़ी स्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनका लाभ सीमित हो जाएगा. बाजार के लिहाज से देखें तो एआई का सर्वव्यापी होना इसका मूल्य कम कर सकता है. निःसंदेह एआई में उछाल है, लेकिन इसका शिखर पर पहुंचना बाकी है. लेकिन इसके लिए सट्टा बाजार सरीखा उत्साह साफ़ नजर आ रहा है. बज़फीड के शेयरों में पिछले महीने एक दिन में 150 फीसदी की वृद्धि हुई थी क्योंकि कंपनी ने घोषणा जो कर दी थी कि वह कंटेंट जेनेरेट करने के लिए एआई का उपयोग करेगा.

क्या ऐसा होना चाहिए था? समझ के परे है खासकर तब जब बज्जफील्ड के कई प्रतिस्पर्द्धी मौजूद हैं. दरअसल यही तो आहट है कि वाकई में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस क्रांति आ चुकी है. शेयर बाजार प्रभावित जो होने लगे हैं. अंत में यही कह सकते हैं कि एआई का सबसे बड़ा प्रभाव इसके उपयोगकर्ताओं पर हो सकता है, न कि इसके निवेशकों या इसके आविष्कारकों पर. (इकोनॉमिस्ट टाइलर कोवेन के विश्लेषण से प्रेरित)

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लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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