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Updated: 14 अगस्त, 2021 09:09 AM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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टोक्यो ओलंपिक में कुछ खिलाड़ियों (Vinesh phogat) ने हार का मुंह देखा तो कुछ ने जीत हांसिल की. भले ही खेल में हार-जीत लगी रहती है लेकिन जीतने वाले और हारने वाले खिलाड़ियों के साथ कितना अलग व्यवहार किया जाता है, यह किसी से भी छिपा नहीं है. भला कौन खिलाड़ी ऐसा होगा जो दिन-रात मेहनत करने के बाद यह चाहता होगा कि वह हार जाए.

जीतने वाले को इनाम मिलता है, सम्मान मिलता है तो हारने वाले को ताने और इल्जाम. अब देखिए ना टोक्यो ओलंपिक में जीतने वाले भारतीय खिलाड़ियों का देश में कितना सम्मान और स्वागत हुआ. उन पर इनाम के रूप में पैसों की बारिश हो रही है लोग उन्हें बधाइयां दे रहे हैं, यह होना भी चाहिए...

वहीं दूसरी तरफ हारे हुए खिलाड़ियों के कमरों में खामाशी एक शोर है. वे सोच रहे होंगे कि मैंने कहां गलती कर दी, कैसे में चूक गया. मैं क्यों हार गया. वे अफसोस मना रहे होंगे. हारे हुए खिलाड़ी कितना बेचैन होंगे, उनको कितनी भी तसल्ली दे दो लेेकिन उनका दिल तो टूटा ही होगा, जो कब जुड़ेगा पता नहीं.

Vinesh phogat, Tokyo Olympic, wrestling federation of india, tokyo 2020 मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जैसे मैं मरी हुई चीज हूं

अब भारत की शीर्ष महिला पहलवान विनेश फोगाट को ही देख लीजिए. जिन्हें भारतीय कुश्ती संघ (डब्ल्यूएफआई) ने अनुशासनहीनता की वजह से अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया. अब जाकर इस इस महिला पहलवान ने अपनी चुप्पी तोड़ी है और अपने दर्द को साझा किया है. इसके साथ ही विनेश ने फेडरेशन पर भी सवाल उठाए हैं.

क्या है विनेश की कहानी

विनेश ने अपनी भावना को जिन शब्दों बयां किया है वह आपको भी भावुक कर सकती है. 'ऐसा लग रहा है कि मैं सपने में सो रही हूं. पिछले एक हफ्ते से मेरे अंदर काफी कुछ चल रहा है. मैं एकदम खाली महसूस कर रही हूं.' वो कहती हैं कि मुझे नहीं पता कि मेरी जिंदगी में क्या हो रहा है. मैंने कुश्ती को सब कुछ दिया है लेकिन एक पदक हारते ही लोगों ने मुझे निर्जीव समझ लिया.

विनेश कहती हैं कि मेरे दिमाग में फिलहाल दो तरीके के ख्याल चल रहे हैं. एक ख्याल कहता है कि मैं अब कुश्ती से दूर हो जाऊं तो वहीं दूसरा ख्याल कहता है कि बिना लड़े दूर जाना मेरी सबसे बड़ी हार होगी. अभी, मैं सच में अपने परिवार पर ध्यान देना चाहती हूं लेकिन बाहर हर कोई मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है जैसे मैं मरी हुई चीज हूं.

मैं जानती थी कि भारत में आप जितनी तेजी से उठते हैं उतनी ही तेजी से गिरते हैं. एक पदक खोने के साथ ही मेरा सब कुछ खत्म हो गया. कुश्ती को भूल जाइए, कम से कम इंसान को तो सामान्य रहने दीजिए. मेरे साथी एथलीट यह नहीं पूछते कि आपके साथ क्या गलत हुआ बल्कि वे यह बताते हैं कि आपने क्या गलत किया. वे आपसे कुछ पूछे बिना ही अपना नजरिया खुद बनाते हैं. कम से कम मुझसे कोई पूछो तो सही कि मैट पर मेरे साथ क्या हुआ. ओलंपिक में कोई भी एथलीट दबाव में नहीं होता है. मैं टोक्यो में, रियो में भी दबाव में थी लेकिन मुझे पता है कि मुझे इसे कैसे संभालना है. विनेश ने डब्ल्यूएफआई के आरोपों पर भी पलटवार किया है.

दरअसल, संघ ने कहा था कि विनेश ने अपने साथी पहलवानों के साथ रहने और ट्रेनिंग करने से इंकार किया था. इस पर फोगाट ने कहा, कि 'भारतीय खिलाड़ियों की लगातार टेस्टिंग हो रही थी और मेरी टेस्टिंग नहीं हुई थी. मैं सिर्फ उन्हें सुरक्षित रखना चाहती थी. क्या मैं उनके पा जाकर उन्हं संक्रमित कर देती...इसमें बड़ी बात क्या है, दो-तीन दिनों बाद तो मैं उनके साथ थी और मैंने सीमा के साथ ट्रेनिंग भी की थी. ऐसे में उन्होंने कैसे आरोप लगा दिया कि मैं टीम के साथ नहीं रहना चाहती थी.

विनेश ने खुलासा किया कि मुकाबले से एक दिन पहले मैंने कुछ नहीं खाया था और मुझे उल्टियां हो रही थीं. मेरे पास नमक के कैप्सूल थे, मैंने इलेक्ट्रोलाइट्स पिया. मुझे लो बल्ड प्रेशर की परेशानी है. मैने कोशिश की मेरा रक्तचाप सामान्य रहे, लेकिन कुछ काम नहीं कर रही था. ‘मुझे दूसरे मैच में पता था कि मैं हार रही हूं, लेकिन मैं कुछ कर नहीं पा रही थी. मेरा दिमाग पूरी तरह बंद हो गया था कि मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी.'

मुझे शूटिंग टीम से एक फिजियो सौंपा गया था. वह मेरे शरीर को नहीं समझती थी. मेरे खेल की बहुत अलग मांगें हैं. वह मेरी मदद नहीं कर सकती थी. उसे नहीं पता था कि आखिरी दिन जब मैं अपना वजन कम कर रही होती हूं तो क्या मुझे किन चीजों की जरूरत पड़ती है. वह शूटिंग की फिजियो थी वह कुश्ती की चीजों को कैसे समझती? यह हम दोनों के साथ अन्याय था. बाउट के दिन वजन घटाने के बाद, मेरे शरीर का तापमान गर्म हो गया था, मैं दर्द में थी.

बस से स्टेडियम जाते समय मैंने मेरी फिजियो पूर्णिमाको फोन किया और उनसे पूछा कि मैं क्या कर सकती हूं. मैंने सांस लेने के कुछ व्यायाम किए लेकिन कोई असर नहीं हुआ. मैं नियंत्रण में महसूस नहीं कर रही था और कांप रही थी.

मुझे पहली बार अगस्त 2020 में COVID हुआ, इसलिए मैं प्रोटीन को पचा नहीं पा रही हूं. एक साल से मेरे शरीर में प्रोटीन नहीं है. एशियन चैंपियनशिप के बाद जब मैं कजाकिस्तान से आने के बाद मैं फिर से बीमार पड़ गई. मेरा फिर से कोरोना का परीक्षण किया गया. आप जरा कल्पना कीजिए कि मैं ओलंपिक के इस चरण में कैसे पहुंच सकी हूं.

मैं एक भावुक व्यक्ति हूं. जब 2019 में मैंने अपना वजन बदला तो मुझे तीन महीने अवसाद की समस्या थी. मैं सो नहीं पा रही, शायद कई दिनों तक मैं जागता ही रहूंगी. अगर कोई कोच थोड़ा भी ऊंचे स्वर में बोलता है तो मैं रोने लगती थी. एक एथलीट के रूप में मानसिक दबाव बहुत अधिक होता है.

जब मैं एशियाई चैंपियनशिप में चोटिल हो गया थी तभी मुझे लगा कि यह मुझे यह सब छोड़ देना चाहिए. मैंने एक मनोवैज्ञानिक से बात की क्योंकि मुझे तब भावनात्मक समर्थन की जरूरत थी.

परिवार में सभी ने मेरी मदद की लेकिन अंदर क्या चल रहा है, मैं सब कुछ व्यक्त नहीं कर सकती. क्या आपको लगता है कि मेडिटेशन करना और मनोवैज्ञानिक से बात करना काफी है? कुछ भी काफी नहीं है. हमारे साथ क्या हो रहा है यह केवल हम ही जानते हैं.

अब मुझे रोना मुश्किल लगता है. मेरे पास अब शून्य मानसिक शक्ति है. उन्होंने मुझे अपने नुकसान का पछतावा तक नहीं होने दिया. सभी मुझपर हमला करने को तैयार बैठे थे. मानसिक और शारीरिक रूप से इतनी मेहनत करने वाले पहलवान से ज्यादा दर्द कौन महसूस कर सकता है...

मैंने किस टीम के साथ प्रशिक्षण नहीं लिया? मुझसे किसी ने नहीं पूछा कि मैंने क्या...अगर आप सच में गोल्ड मेडल की उम्मीद कर रहे थे तो मेरे साथ मेरी फिजियो पूर्णिमा होनी चाहिए थी?

मेरे कोच वोलर ने मेरी मदद करने के लिए मेरे साथ यात्रा की. मेरे साथ लखनऊ में रहे जब उनका एक साल का बेटा बुडापेस्ट में था. COVID हिट होने के बाद उन्होंने प्रशिक्षण जारी रखा और ओलंपिक स्थगित होने पर मुझे प्रेरित किया. उन्होंने अपने निजी जीवन की भी परवाह नहीं की, आप उस व्यक्ति को कैसे दोष दे सकते हैं?

वोलर ने सब कुछ किया. मेरे हारने पर उन्होंने रोना बंद नहीं किया. उनकी पत्नी ने रोना बंद नहीं किया. वह 4 बार की ओलंपियन है और उच्च भार वर्ग से होने के कारण मेरे प्रशिक्षण में केवल मदद की थी. मैंने पिछले तीन सालों से उसी सपोर्ट स्टाफ के साथ जी रही थी.

मैं किसी दबाव में नहीं थी बल्कि यात्रा करने की वजह से भावुक थी. आप यह कह सकते हैं कि अभी तुम कुश्ती के लिए तैयार नहीं हो. यह तो मत कहें कि तुम कुश्ती से ही बाहर चली जाओ. आप कल्पना करें कि खाली हाथ लौटने वाले एथलीट्स को कैसा महसूस होता होगा और खासकर अगर वह मजबूत नहीं है तो…

मैं मानसिक रूप से ठीक नहीं हुई हूं. घर पहुंचने के बाद से मैं सिर्फ एक बार सोई हूं. मैं गांव में पैदल घूमती रहती हूं. मैंने कभी नहीं कहा कि मुझे सोने का दावेदार बना दो. मैं अपने लिए कुश्ती करती हूं और हारने के बाद सबसे पहले मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन मुझे अकेला छोड़ दो.

मुझे नहीं पता कि मैं कब मैट पर लौटूंगी...शायद कभी नहीं. मुझे लगता है कि मैं मेरे टूटे पैर के साथ बेहतर थी. अब मेरा शरीर तो नहीं टूटा है, लेकिन मैं अब सचमुच में पूरी तरह टूट चुकी हूं…

किसी खेल में हारने के बाद एक खिलाड़ी का क्या हाल होता है, यह विनेश ने बता दिया है...गलत को गलत कहने में कोई बुराई नहीं है लेकिन किसी बात को कहने का एक सलीका होता है...

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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