वेस्टइंडीज के महान खिलाड़ियों को क्यों लगता है कि उनका नाम मिट्टी में मिल गया
पहले टेस्ट मैच और दूसरे के अधिकांश मैच के दौरान ऐसा लगा कि इसमें सिर्फ एक टीम ही खेल रही है और वह भारत है. ये मानना है वेस्टइंडीज के उन तमाम वेटरन खिलाड़ियों का जिनका खौफ पूरी दुनिया पर छाया था.
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वेस्टइंडीज क्रिकेट की दुर्दशा सामने है और भारत के खिलाफ जारी टेस्ट सिरीज इस कड़वी सच्चाई का खुलासा कर रही है. यह न सिर्फ वेस्टइंडीज के लोगों के लिए बुरा है बल्कि दुनियाभर में फैले वेस्टइंडीज के फैन्स के लिए निराशा की बात है.
भारत के खिलाफ सिरीज में वेस्टइंडीज टीम की स्थिति को देखकर उन फैन्स को ज्यादा दर्द हो रहा है जो क्लाइव लॉयड, माइकल होल्डिंग, विवियन रिचर्ड और ब्रायन लारा के शानदार क्रिकेट को देखकर बड़े हुए हैं.
पहले टेस्ट मैच और दूसरे मैच के अधिकांश भाग में ऐसा लगा कि इसमें सिर्फ एक टीम ही खेल रही है और वह है भारत. हालांकि रोस्टन चेज की जुझारू सेंचुरी और ब्लैकवुड, डाउरिच और जेसन होल्डर के योगदान ने करेबियाई टीम के घावों पर मरहम का काम किया.
लेकिन क्या ऐसा वाकई हुआ? बिलकुल नहीं, कम से कम ऐसा वेस्टइंडीज टीम के कुछ ऐसे महान खिलाड़ियों का मानना है जिनका खौफ कभी विरोधी टीम के दिलो-दिमाग पर हावी रहता था.
जब जमैका टेस्ट को वेस्टइंडीज किसी तरह ड्रा कराने में सफल हुई तब गॉर्डन ग्रीनिज, माइकल होल्डिंग, एंडी रॉबर्ट्स, डेस्मंड हेंस और जेफ डुजॉन ने ड्रिंक्स पर मुलाकात कर टीम की इस गिरावट के कारणों पर चर्चा की.
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होल्डिंग: किसने सोचा था कि एक दिन वेस्ट इंडीज मैच ड्रा कराने का जश्न मनाएगी? मैं बता दूं कि वेस्टइंडीज बहुत बुरे दौर से गुजर रही है.
हेंस: सचमुच, भारतीय टीम पूरी तरह से हम पर हावी रही. उन्होंने हमें बुरी तरह रौंद दिया. यह बहुत ही बुरा हुआ. माइकी (माइकल होल्डिंग) तुम्हें पिच पर दोबारा आना चाहिए. हमारे गेंदबाज बहुत कमजोर हैं.
(हेंस के सुक्षाव पर माइकल होल्डिंग मुस्कुराए)
भारत को 1976 में पार्क सबीना टेस्ट में वेस्टइंडीज के हाथों करारी हार |
रॉबर्ट्स: डेसमंड की बात में दम है. आपको 1976 का सबीना पार्क याद है? मैच खत्म होने के बाद भारतीय ड्रेसिंग रूम किसी अस्पताल की तरह लग रहा था. माइकी तुमने उस मैच को खेला था. तुम्हारे बाउंसर बेहद खतरनाक थे.
होल्डिंग: हां, भारतीय टीम को इस मैच में कठिनाई का सामना करना पड़ा था. बेचारे, पहली इनिंग में महज 6 विकेट गिरने के वाबजूद उन्हें डीक्लेयर करना पड़ा और दूसरी पारी में तो महज 12 रन की बढ़त और पांच विकेट गिरने पर ही उन्हें पारी घोषित करनी पड़ी थी.
रॉबर्ट्स: लेकिन उन्होंने अच्छी शुरुआत की थी. नहीं?
होल्डिंग: हां जरूर, उनकी शुरुआत अच्छी थी. अगर मुझे याद है तो पहले दिन के खेल के बाद वह एक विकेट पर लगभग 170 रन के स्कोर पर थे. उसके बाद दूसरे दिन अंशुमन गायकवाड चोटिल हो गए. बेचारा. उन्हें दो रात अस्पताल में गुजारना पड़ा. उसके बाद उनका अगला खिलाड़ी (ब्रिजेश पटेल) घायल हुआ. गुडंप्पा विश्वनाथ की उंगलियों में भी फ्रैक्चर हुआ था.
रॉबर्ट्स: ये तीनों खिलाड़ी फिर चोट के चलते मैच में दोबारा नहीं खेल पाए.
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होल्डिंग: यकीनन. लेकिन मुझे लगा कि भारतीय कप्तान ने अपने लोअर ऑर्डर को हमसे बचाने के लिए पारी घोषित कर दी.
डुजॉन: इस तरह पारी घोषित करने के लिए मैं उन्हें जिम्मेदार नहीं मानता. ऐसे मूड में कौन भला होल्डिंग का सामना करना चाहता. होल्डिंग उस मैच में तुम्हें कितने विकेट मिले, 6 या 7?
होल्डिंग: 7
रॉबर्ट्स: विकेट और मिलते अगर भारतीयों को पारी घोषित करने की जल्दी न होती. (इस बात पर सभी को हंसी आ गई).
1976 के सबाइना पार्क में खेले गए टेस्ट में वेस्ट इंडीज की 'जानलेवा' गेंदबाजी के चलते ऐसा रहा भारत की दूसरी पारी का स्कोरकार्ड. |
ग्रीनिज: माइकी तुमने इंग्लैंड को भी रुला दिया था. है ना? उस समय तुम युवा थे, अपनी ट्वन्टीज में रहे होगे शायद?
होल्डिंग: हां, मैं 22 साल का था. ओवल में सीरीज का पांचवा टेस्ट था. मैं सिर्फ दौड़ रहा था और बॉल फेंक रहा था...तेज और फुल लेंथ.
ग्रीनिज: हां, और टेस्ट के पहले टोनी ग्रेग (इंग्लैंड के कप्तान) ने दावा किया था कि वह वेस्टइंडीज को धराशाई कर देंगे. मुझे लगता है कि उनके बयान से ही हमें प्रेरणा मिली थी.
होल्डिंग: बिलकुल ठीक.. उस मैच में मुझे 14 विकेट मिले लेकिन विवियन रिचर्ड ने शानदार पारी खेली थी. उन्होंने लगभग ट्रिपल सेंचुरी लगा दी थी.
लेकिन गॉर्डन तुम भी कम खतरनाक नहीं थे. तुम और डेसमंड दोनों और फिर हमारे साथ विवियन थे.
हेंस: इंग्लैंड के खिलाफ 1984 में गॉर्डन की डबल सेंचुरी भी बेहद खास थी. जरा सोचो, पांचवें दिन हमें 342 रनों का लक्ष्य मिला था और गॉर्डन ने अकेले दम पर हमें जीत दिला दी थी. फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 1991 में बारबाडोस टेस्ट में 226 रनों की पारी. इस पारी ने गॉर्डन को महान खिलाड़ी बना दिया. इसके बाद एक टेस्ट और खेलकर वे रिटायर हो गए.
ग्रीनिज: शुक्रिया डेसमंड. मैं बताना चाहूंगा कि तुम्हारे साथ बैटिंग करना मुझे हमेशा अच्छा लगा है.
रॉबर्ट्स: तुम दोनों शायद सदी के महानतम ओपनिंग प्लेयर्स हो.
डुजॉन: हां, वह भी क्या दिन थे. सत्तर और अस्सी के दशक में बेहद खतरनाक टीम थी हमारी. माइकल होल्डिंग, एंडी रॉबर्ट्स, जोएल गार्नर, कॉलिन क्रॉफ्ट, मैल्कम मार्शल और उसके बाद बॉल के साथ कर्टनी वाल्श और कर्टले अंब्रोज. और कितने महान बैट्समैन गॉर्डन ग्रीनिज, डेसमंड हेंस, विवियन रिचर्ड्स, क्लाइव लॉयड, एल्विन कालीचरण, रिची रिचर्डसन और अंत में ब्रायन लारा और कार्ल हूपर.
रॉबर्ट्स: (डुजॉन को) और तुम्हारे जैसा शानदार विकेट कीपर.
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डुजॉन: और इसलिए वेस्टइंडीज की आज की हालत पर यकीन करना बेहद मुश्किल हो जाता है. महज इसलिए नहीं कि टीम लगातार हार का सामना कर रही है बल्कि जिस तरीके से वह हार रही है वह बेहद दुखद है.
होल्डिंग: काफी हद तक इसके लिए वेस्ट इंडीज क्रिकेट बोर्ड जिम्मेदार है. यह इसलिए नहीं कि एक झटके में वेस्टइंडीज एक खराब टेस्ट टीम बन गई. जब आपके टॉप खिलाड़ी टेस्ट मैच की जगह करेबियन प्रिमियर लीग खेलें और दूसरे दर्जे के खिलाड़ियों को एक बेहतरीन टेस्ट प्लेइंग देश के सामने उतार दिया जाए तो नतीजे का अंदाजा कोई भी लगा सकता है.
जिस तरह से बोर्ड ने इस खेल को संचालित किया है उससे उम्मीद बेहद कम है. टेस्ट मैच के लिए खिलाडियों का चयन महज इस आधार पर करना कि वह 4 दिवसीय घरेलू मैच के लिए उपलब्ध हैं कि नहीं का कोई मतलब नहीं है. इसके चलते क्रिस गेल और कीरॉन पोलार्ड जैसे महान खिलाड़ी आईपीएल और बिग बैश जैसे टूर्नामेंट में शामिल नहीं हो सके.
इस टीम में गेल, पोलार्ड, जॉनसन चार्ल्स, लेंडल सिमन्स, आंद्रे रसल और सुनील नारायन जैसे खिलाड़ियों को शामिल कर दें तो यह एक शानदार टीम बन जाती. हालांकि तब भी टीम में तेज गेंदबाजी का खेमा थोड़ा कमजोर ही रह जाता है. उसे तेज गेंदबाज तैयार करने की खास जरूरत है. काश टीम से जिरोम टेलर रियायर न हुए होते.
रॉबर्ट्स: और ड्वेन ब्रावो भी रिटायर न हुए होते.
होल्डिंग: हां, बेचारे. बोर्ड ने उनके साथ कड़ा व्यवहार किया. और ये भी तय है कि बोर्ड और खिलाडि़यों के बीच लंबा खिंचता झगड़ा वेस्टइंडीज क्रिकेट को गर्त में ले जा रहा है.
इसका नतीजा ये रहा कि बड़े मैच के लिए हम अपनी सबसे मजबूत टीम सामने करने में अक्सर चूक जाते हैं. दूसरी पारी में भारत के खिलाफ रोस्टन चेज का शतक अहम था लेकिन मुझे नहीं लगता कि इस सीरीज में इस टीम से और ज्यादा कुछ उम्मीद की जा सकती थी. मुझे हैरानी तब होगी जब भारत इस सीरीज को 3-0 से नहीं जीत पाता.
(अपने ड्रिंक्स की आखिरी बूंद खत्म करते हुए इस पर सभी सहमत थे और उनकी बातचीत खत्म हुई. लेकिन सभी वहां से एक उदासी भरे भाव के साथ गए कि किस तरह उन्हें अपने समय की एक महान टीम के महान पतन का गवाह बनना पड़ा.)
(यह पूरा लेख लेखक की कल्पना है, लेकिन मुद्दे वास्तविक हैं. इस लेख का अनुवाद राहुल मिश्रा ने किया है)
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