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Updated: 11 जून, 2016 01:47 PM
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खेलों में डोपिंग का विषय एक बार फिर चर्चा में है. इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन (ITF)ने प्रतिबंधित दवा मेलडोनियम लेने की दोषी पाई गईं रूस की टेनिस स्टार मारिया शारापोवा पर दो साल का प्रतिबंध लगा दिया है. खेलों और खासकर एथलेटिक्स में डेपिंग और उससे जुड़े विवादों की कहानी नई नहीं है. इतिहास के पन्नों को उलटेंगे तो 100 साल या क्या पता उससे भी पीछे जाना पड़ जाए.

कई बार डोपिंग को लेकर सवाल खिलाड़ियों पर उठे हैं तो कई बार ऐसा भी हुआ कि वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (WADA) और खेल संघो के फैसले ही चौंकाने वाले रहे. चलिए, नजर डालते हैं खेलों में डोपिंग के इतिहास पर और उन चेहरों पर भी जो एक समय तो बुलंदी पर थे तो लेकिन डोपिंग के आरोपों ने उन्हें अर्श से फर्श पर ला पटका. लेकिन शुरुआत सबसे पहले शारापोवा से...

डोप टेस्ट में फेल शारापोवा- 17 साल की उम्र में जब मारिया शारापोवा ने अपना पहला ग्रैंड स्लैम, विंबलडन जीता तो वो किसी सनसनी से कम नहीं थी. तब फाइनल में सेरेना विलियम्स को 6-1, 6-4 से हराने वालीं शारापोवा ने न केवल टेनिस प्रेमियों का ध्यान खींचा बल्कि एडवरटाइजिंग और ग्लैमर की दुनिया को भी एक नया चेहरा मिल गया था. बला की खूबसूरत इस खिलाड़ी के पीछे स्पांसर्स की लाइन लग गई. दुनिया भर की मैगजीन के कवर पेज पर उनकी हॉट तस्वीर ने जगह बनाई.

यह भी पढ़ें- आखिर क्यों और कैसे डोपिंग में फंसीं मारिया शारापोवा

शारापोवा का जलवा ये रहा कि फोर्ब्स पत्रिका ने सबसे ज्यादा कमाई करने वाली महिला खिलाड़ियों की सूची में उन्हें लगातार 11 साल टॉप पर रखा. इसी साल सेरेना विलियम्स उन्हें पीछे करने में कामयाब हो सकीं.

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 शारापोवा पर दो साल का बैन

खैर, इसी साल ऑस्ट्रेलियन ओपन के दौरान हुए डोप टेस्ट में शारापोवा फेल रहीं. शारापोवा अब कह रही हैं कि उनसे अनजाने में बड़ी भूल हुई और उन पर जो बैन लगा है, इसके खिलाफ वे अपील करेंगी.

लांस आर्मस्ट्रॉन्ग- कभी दुनिया के सबसे सफलतम साइकलिस्ट माने जाने वाले आर्मस्ट्रॉन्ग जब डोपिंग के मामले में फंसे तो ये पूरी दुनिया के लिए चौंकाने वाली बात रही. उन पर जिंदगी भर का प्रतिबंध लगाया गया. यही नहीं, साइकल रेस में बेहद मुश्किल माने जाने वाली 'टूर डे फ्रांस' के सातों खिताब भी उनसे छीन लिए गए. 2000 में सिडनी ओलंपिक में जीता गया ब्रॉन्ज मेडल भी उनसे छीन लिया गया.

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 हीरो से बन गए विलेन

गौरतलब है कि 1996 में कैंसर से जंग और फिर साइकलिंग की दुनिया में दोबारा कदम रखने वाले आर्मस्ट्रॉन्ग की छवि खेलों की दुनिया में किसी सुपरहीरो से कम नहीं थी, लेकिन डोपिंग के खुलासे ने सबकुछ खत्म कर दिया.

थॉमस हिक्स- इसके कोई पुख्ता सबूत तो नहीं हैं लेकिन फिर भी ऐसा कहा जाता है कि 1904 के ओलंपिक खेलों में अमेरिका के धावक थॉमस हिक ने स्ट्रीकनिन का इंजेक्शन लिया था.

उस मैराथन इवेंट में फिनिश लाइन पर पहुंचने के बाद हिक बेसुध होकर जमीन पर गिर पड़े थे, हालांकि उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल जरूर किया. तब डोपिंग खेलों में कोई मुद्दा भी नहीं था. आज के दौर में स्ट्रीकनिन प्रतिबंधित है.

शोएब अख्तर और शेन वॉर्न- अमूमन क्रिकेट की दुनिया में डोपिंग की बात कम ही देखने को मिलती है. लेकिन कहानियां यहां भी हैं. 2003 का वर्ल्ड कर शुरू होने से ठीक एक दिन पहले शेन वॉर्न प्रतिबंधित दवा डि्यूरेटिक पाने के दोषी पाए गए. इसके बाद आस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड ने उन पर एक साल का बैन लगाया. वहीं, कभी दुनिया के सबसे तेज गेंदबाजों में शुमार रहे अख्तर को 2006 में डोपिंग का दोषी पाए जाने के बाद दो साल के लिए निलंबित किया गया. हालांकि, अपील के बाद उन पर लगा यह निलंबन वापस ले लिया गया.

बेन जॉनसन- डोपिंग के इतिहास में बेहद चर्चित किस्सा जमैका के इस धावक का भी है. बेन जमैकन जरूर थे लेकिन 70 के दशक में कनाडा आ गए. 1988 में हुए सियोल ओलंपिक में उन्होंने कनाडा की ओर से हिस्सा लिया. 24 सितंबर, 1988 को 100 मीटर के फाइनल से पहले सबकी नजरें अमेरिकी एथलीट कार्ल लुईस पर थीं. लेकिन जॉनसन ने केवल 9.79 सेकेंड में दौड़ पूरी कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया.

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 इंतिहास की सबसे गंदी दौड़ (साभार-AP)

हालांकि, तीन दिन बाद ही डोप टेस्ट के नतीजे में पाया गया कि जॉनसन ने डोपिंग की है. उनसे मेडल छीन लिया गया और वर्ल्ड रिकॉर्ड भी नकार दिया गया. कार्ल लुइस विजेता घोषिक किए गए.

मार्टिना हिंगिस- पूर्व नंबर एक खिलाड़ी और हाल के वर्षों में सानिया मिर्जा और फिर लिएंडर पेस के साथ मिलकर वुमेंस डबल और मिक्सड डबल में धमाल मचा चुकी मार्टिना पर 2008 में डोपिंग के कारण दो साल का बैन लगाया गया. वह 2002 और 2013, दो बार संन्यास के बाद कोर्ट पर वापसी कर चुकी हैं. हाल में उन्होंने लिएंडर पेस के साथ फ्रेंच ओपन का मिक्सड डबल्स खिताब अपने नाम किया था.हालांकि, तीन दिन बाद ही डोप टेस्ट के नतीजे में पाया गया कि जॉनसन ने डोपिंग की है. उनसे मेडल छीन लिया गया और वर्ल्ड रिकॉर्ड भी नकार दिया गया. कार्ल लुइस विजेता घोषिक किए गए.

जस्टिन गैटलिन- अमेरिका का यह तेजतर्रार धावक अपने करियर में दो बार डोपिंग के कारण प्रतिबंधित हो चुका है. पहले 2001 में उन्हें दो साल के लिए और फिर 2006 में चार साल के लिए बैन किया गया. गैटलिन हमेशा कहते रहे हैं कि दोनों बार उन्होंने प्रतिबंधित दवाएं अनजाने में ली.

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 नजरें रियो पर

बहरहाल, 2010 में ही ट्रैक पर वापसी कर चुके गैटलीन की नजर फिलहाल रियो ओलंपिक पर हैं. गैटलिन ने एथेंस में हुए 2004 के ओलंपिक खेलों के 100 मीटर वर्ग में गोल्ड मेडल जीता था.

डिएगो माराडोना- फुटबॉल का यह बेहद चर्चित नाम अपने ड्रग्स के लत के कारण बहुत बदनाम भी रहा है. 1991 में उन्हें कोकीन का इस्तेमाल के कारण 15 महीने का प्रतिबंध झेलना पड़ा. इसके बाद 1994 के फीफा वर्ल्ड कप के दौरान भी वह दोषी पाए गए और उन्हें दोबारा बैन किया गया.

ली चोंग वी- मलेशिया के बैडमिंटन खिलाड़ी ली चोंग वी भी डोपिंग की बदनाम गली का हिस्सा रह चुके हैं. 2014 में जब उनका नाम उभरा तब वो बैडमिंट रैंकिंग में शीर्ष पर थे. उन पर आठ महीने का प्रतिबंध लगा. वी 2008 और 2012 के ओलंपिक खेलों में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं और तीन बार विश्व चैंपियन भी रहे हैं.

ये उदाहरण बताते हैं कि अपने खेल से करोड़ो लोगों का दिल जीतने वाले कई खिलाड़ियों ने उन रास्तों का सहारा लिया, जो खेल भावना के खिलाफ हैं. वैसे ज्यादातर मामलों में खिलाड़ी ये दलील ही देते रहे हैं कि उन्होंने जो किया वह अंजाने में हुआ. कई बार ऐसा होता भी होगा लेकिन फिर भी ये बात गले नहीं उतरती. जिन बड़े-बड़े खिलाड़ियों के पास फिटनेस का ख्याल रखने के लिए पर्सनल डॉक्टर और फीजियो तक होते होंगे, वे ऐसी चूक कैसे कर जाते हैं. कई बार देश के खेल संघ भी अपने खिलाड़ियों का बचाव करते नजर आए हैं.

उदाहर के लिए चीन के सुन यांग को ही ले लीजिए. सुन यांग 2012 के ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले यांग मई-2014 में डोप टेस्ट में फेल हो गए थे. चीन ने तब इसे सार्वजनिक नहीं किया और उन पर तीन महीने का प्रतिबंध लगा दिया गया. जबकि उसी साल एशियन गेम्स भी हुए और यांग ने उसमें हिस्सा भी लिया. उदाहरण रूस का भी, जहां खेल संघों में भ्रष्टाचार का विवाद खासा गर्म है. कई मामलों के खुलासे और वहां के एंटी-डोपिंग एजेंसी और एथलेटिक्स फेडरेशन के अधिकारियों की मिलीभगत की बात सामने आने के बाद रूस को नवंबर-2015 में वर्ल्ड एथलेटिक्स से निलंबित कर दिया गया था.

तब रूस के खेल मंत्रालय ने सुधार की बात कही थी. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन (IAAF) ने हाल में एक टीम भी बनाई है जो रूस के सुधार के दावों पर नजर रख रही है. अगर रूस पर से प्रतिबंध नहीं हटता तो हो सकता है कि उसके एथलीटों को इस साल ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने से वचिंत रहना पड़े.

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