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Updated: 21 जून, 2017 10:10 PM
एस कन्नन
एस कन्नन
 
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अनिल कुंबले ऐसे इंसान हैं जिनके लिए हमेशा से ही पैसा और पोजिशन से ज्यादा जरूरी आत्मगौरव और आत्म सम्मान होता है. मंगलवार को टीम इंडिया के कोच के पद से कुंबले के इस्तीफे की घोषणा ने हर किसी को हैरान कर दिया.

हैरान हों भी क्यों ना, कोच के रूप में अपने एक साल से भी कम के छोटे से कार्यकाल में कुंबले ने टीम इंडिया को अच्छी ट्रेनिंग दी और टीम ने घरेलु मैदान पर वनडे और टेस्ट में मेहमान टीमों के खिलाफ बहुत ही अच्छा प्रदर्शन भी किया था.

कुंबले ने कोच के पद से हटने का फैसला क्यों लिया ये समझ पाना तो मुश्किल है लेकिन कुंबले के इस्तीफे को चैंपियंस ट्राफी फाइनल में मिली हार से जोड़कर नहीं देखना चाहिए. रविवार को ओवल के मैदान में चिरप्रतिद्वंदी पाकिस्तान से मिली करारी हार का दोषी अगर कोई है तो वो विराट कोहली है.

kumble, kohliकुंबले को गुगली देने के लिए कोहली जिम्मेदार

टीम के साथ कुंबले के पिछले कुछ हफ्ते कैसे रहे हैं ये अपने आप में अजीब है. चैंपियंस ट्राफी के लिए टीम इंडिया के इंग्लैंड रवाना होने के समय से ही कई तरह की बातें और कहानियां सुनने को मिल रही थी. किसी का नाम लिए बगैर मीडिया में छपी खबरें लगातार बता रहीं थीं कि टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. टीम के कुछ सीनियर प्लेयर कुंबले से नाराज हैं.

आज ये किसी को बताने की जरुरत नहीं है कोहली और कुंबले दो अगल-अलग पर्सनालिटी के लोग हैं और ये दोनों कभी एक-दूसरे के साथ मिल ही नहीं पाए. इनके बीच की खाई इतनी ज्यादा थी कि किसी एक को बलि का बकरा बनना ही था. ये बहुत दुखी करने वाला है.

इस मामले में कुंबले ने अपने पद का बलिदान दिया. हालांकि ये अच्छा होगा अगर वो खुद अपने फैन्स और क्रिकेट प्रेमियों को बताएं कि कोच के पद के लिए दोबारा आवेदन करने के बाद आखिर किस कारण से उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया.

हाल के दिनों में बाहर आने वाली भारतीय क्रिकेट की कहानी ये बयान करती है कि टीम और मैनेजमेंट में चीजों को किस तरह गलत तरीके से हैंडल किया जा रहा है. लेकिन फिर भी क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के अधिकारियों को इससे कोई परेशानी नहीं है. उनके लिए ज्यादा जरूरी खुद के अस्तित्व को बचाना है.

अगर कमिटि ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (CoA) के बारे में बात करते हैं, तो एक तरफ जहां रामचंद्र गुहा ने नाराज होकर समिति से इस्तीफा दे दिया वहीं दूसरी तरफ समिति के फाइनेंशियल ब्रेन विक्रम लिमये भी अब बाहर का रास्ता नापने की कगार पर हैं. सीओए को सुप्रीम कोर्ट का समर्थन प्राप्त था लेकिन फिर भी वो अपना काम करने में नाकाम रही है. और क्योंकि इन्हें क्रिकेट कोच के चुनाव का भी अधिकार मिला हुआ था तो टीम इंडिया के अंदर फैले इस कचरे के लिए उन्हें भी दोष स्वीकार करने की जरुरत है.

वहीं सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे महारथियों से भरी क्रिकेट सलाहकार समिति ने भी कोच की भर्ती कराने के मामले में बहुत लंबा समय ले लिया. टीम के कोच के लिए कुंबले और कोच पद की दौड़ में शामिल और कई नामों पर कहीं से कोई पारदर्शिता नहीं थी. इस बात से कुंबले आहत हो गए.

kumble, kohliकोहली को इतना सिर चढ़ना भी अच्छा नहीं

कप्तान को सिर पर चढ़ाकर रखना और उसे तवज्जो देना अच्छी बात है, लेकिन कोहली को इस तरह के अनलिमिटेड पावर दे देना खतरनाक हो सकता है. कोहली एक डिमांडिंग कप्तान हैं और उन्होंने अपनी टीम को अपने हिसाब से ढाल भी लिया है लेकिन दिक्कत ये है कि कोच के साथ मिलकर चलना इनके लिए दुष्वार हो रहा है. एक तरह से कहें तो कोहली ऐसे बच्चे की तरह पाले जा रहे हैं जिसने कह दिया कि मुझे चांद चाहिए तो उसे चांद ही मिलेगा. वो भी अपनी पसंद का मिलेगा.

इसके पहले कोहली ने रवि शास्त्री के साथ भी काम किया है लेकिन उन दोनों के बीच में ऐसे किसी मतभेद की कोई खबर नहीं आई थी. हालांकि कोहली और कुंबले के बीच खराब हुए रिश्तों को फिर से संवारने की कोशिश की जा रही है लेकिन नतीजा सिफर ही साबित हुआ. अफसोस की बात ये है कि कुंबले-कोहली की इस गाथा में, लोग कोहली को ही दोष देंगे और सारी उंगलियां उनपर ही उठेंगी.

किसी टीम के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि टीम के सारे लोगों को एक साथ बांधकर रखना एक मुश्किल काम है. और भारतीय क्रिकेट टीम के मामले में सीओए, सीएसी और बीसीसीआई का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए.

kumble, kohliदेखें क्या कमाल ये दिखाएंगे

नए कोच के नाम की जल्द ही घोषणा की जाएगी और अटकलें हैं कि वीरेंद्र सहवाग इस रेस में सबसे आगे चल रहे हैं. अपने बैटिंग के बिंदास अंदाज और सोशल मीडिया पोस्ट की बेबाकी के लिए मशहूर सहवाग को तो सबने देखा है. लेकिन अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सहवाग और कोहली के बीच की कैमिस्ट्री कैसी रहेगी साथ ही सीरियस रोल को सहवाग कैसे निभा पाएंगे.

2019 का आईसीसी विश्व कप दो साल दूर है. लेकिन ये रिकॉर्ड रहा है कि अपने बेस्ट टाइम में बीसीसीआई ने कभी भी स्मार्ट प्लानिंग नहीं की. अब समय आ गया है कि बीसीसीआई ध्यान देना शुरू करे. अगर कुंबले जैसे अच्छे कोच को भी 'रिटायर हर्ट' होना पड़ रहा है तो फिर कोहली की भी जवाबदेही बनती है. आज से ही बनती है.

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लेखक

एस कन्नन एस कन्नन

लेखक मेल टुडे में स्पोर्ट्स एडीटर हैं

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