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Updated: 25 अक्टूबर, 2017 08:45 PM
धर्मेन्द्र कुमार
धर्मेन्द्र कुमार
  @dharmendra.k.singh.167
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चाहने वालों के लिए क्रिकेट धर्म है. मगर हकीकत तो ये है कि ये धर्म तो कब का टूट चुका है. देखते ही देखते क्रिकेट का जुनून पैसा कमाने का जरिया बन चुका है . इसका अहसास क्रिकेट प्रेमियों को भी हो चुका है. असली रोमांच अब नहीं रहा. तो यहां पैसा बनाने के लिए नकली रोमांच पैदा किया जाता है. इसलिए क्रिकेट एक खेल नहीं, बल्कि रियल्टी शो है! सब पहले से स्क्रिप्टेड है.

भारत और न्यूजीलैंड के बीच होने वाले पुणे वनडे के ठीक पहले आजतक के खुफिया कैमरे पर पिच क्यूरेटर पांडुरंग सलगांवकर का ये कबूलनामा कि वो पिच को लेकर न्यूजीलैंड के 2 खिलाड़ियों से संपर्क में हैं. पिच को फिक्स करने की इस घटना से मुझे कोई हैरानी नहीं हुई. आपको हुई क्या?

Pitch fixingफिक्सिंग अब कोई नई बात नहीं है

क्रिकेट के जुनून की फिक्सिंग!

मैं यानी एक क्रिकेट प्रेमी. क्रिकेट पर लगातार उड़ रहे छींटों को कई सालों से देख रहा हूं. 20-25 साल पहले तक तो क्रिकेट में सबकुछ ठीक चल रहा था. अचानक पैसा, फिक्सिंग, स्पॉट फिक्सिंग, पिच फिक्सिंग और ना जाने क्या-क्या आ गया...

इस तरह की बात आई कहां से? शारजाह से?

'शेखी' क्रिकेट, पैसा और फिक्सिंग : आपको शारजाह तो याद ही होगा. भारत और पाकिस्तान के बीच कई दिलचस्प मुकाबले, जिनकी याद आपके जेहन में ताजा होंगी.

- चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर जावेद मियांदाद का वो छक्का.

- भारत के खिलाफ आकिब जावेद की वो हैट्रिक.

- और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सचिन के दो जबरदस्त शतक.

ये सब शारजाह में ही हुआ.

अब्दुल रहमान बुखातिर और क्रिकेट की दोस्ती इसी शारजाह में 80 के दशक में हुई. दरअसल अमीर शेख को क्रिकेट से प्यार कहां था? उसे तो पैसे से प्यार और शोहरत बनाने का जूनून था. और इसके लिए शेख ने क्रिकेटरों के बीच पैसों की चकाचौंध पैदा की. क्रिकेटरों के अंदर पैसों की भूख भी शायद इसी शारजाह में डाली गई. क्रिकेटरों की जेबें गरम तो होने लगी मगर इसकी कीमत क्रिकेट को चुकानी पड़ी.

 

90 का दशक आते-आते मैच फिक्सिंग की बातें भी सतह पर आने लगीं. 90 के दशक के आखिरी सालों में मैच और मैच फिक्सिंग को लेकर जो दबी जुबान में बातें होती थी, वो 2000 आते-आते हकीकत में बदल गई. इसी साल क्रिकेट मैच फिक्सिंग का सबसे बड़ा कांड पूरी दुनिया के सामने आया. क्रिकेट की दुनिया के बड़े नामों का चेहरा बेनकाब होने से क्रिकेट को बहुत बड़ा धक्का लगा. भारत ने तो बदनामी से बचने के लिए शारजाह में खेलने से ही तौबा कर लिया. तब मेरे मन में ये बात आई कि क्या क्रिकेट के सारे मैच ही फिक्स होते हैं? और ऐसा लगने के पीछे वजहें भी कोई कम नहीं हैं.

वर्ल्ड कप 2011 फाइनल भी फिक्स था?

2011 वर्ल्ड कप के फाइनल में भारत से श्रीलंका की हार पर किसी और ने नहीं, बल्कि श्रीलंका के ही पूर्व कप्तान अर्जुन राणातुंगा मैच फिक्सिंग का संगीन इल्जाम लगाया...

फिक्सिंग से पाकिस्तान ने जीता चैंपियंस ट्रॉफी?

इंग्लैंड में इसी साल चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में जब पाकिस्तान की एंट्री हुई तो पूर्व कप्तान आमिर सोहैल ने यह कहकर सनसनी फैलाई की पाकिस्तान को फाइनल में बाहरी ताकतों ने पहुंचाया. तो आखिकार वो बाहरी ताकतें हैं कौन? कहीं ये वो तो नहीं जो दो टीमों के बीच रोमांच पैदा कर दुनिया का ध्यान खींचते हैं और रोमांच से पैसा बनाते हैं?

जब 2015 वर्ल्ड कप फाइनल भी ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच खेला गया, तब भी ये बात सामने आई कि दो देशों के बीच पारंपरिक स्पर्धा के जरिए पैसा बनाने की कोशिश हुई. क्योंकि वो मुकाबला ऑस्ट्रेलिया में हो रहा था और पड़ोसी देश न्यूजीलैंड के साथ उनकी स्पर्धा उस क्षेत्र के लोगों का ध्यान खींचती है.

आईपीएल से आया पैसा, क्रिकेट के नाम को लगा बट्टा

2008 में आईपीएल का जन्म हुआ. जिसमें दुनिया का हर क्रिकेटर खेलना चाहता है. वजह क्रिकेट नहीं बल्कि पैसा है. आज की तारीख में आईपीएल का ब्रैंड वैल्यू 5.3 बिलियन डॉलर है. स्टार स्पोर्ट्स ने आईपीएल के अगले 5 साल के टीवी और डिजिटल राइट्स के लिए 6,347.5 करोड़ रुपए खर्च किए. अब जरा सोचिए इतना ज्यादा पैसा लगा है तो रिटर्न कहां से आएगा? आईपीएल को लेकर क्रिकेट प्रेमियों की दिलचस्पी दिनों दिन घटती जा रही है मगर पैसा बढ़ता जा रहा है? 

इसीलिए मुझे लगता है कि आईपीएल में सब फिक्स है!

एस श्रीशांत, अजित चंडिला और अंकित चव्हाण का नाम तो याद तो होगा आपको. इन सबको स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में पकड़ा गया. राजस्थान और चेन्नई की टीम को 2 साल के लिए सस्पेंड किया गया. मगर अब 2 साल बाद उनकी वापसी भी हो रही है.

तो आखिरकार क्रिकेट में हो क्या रहा है?

फिक्सिंग को लेकर कई पकड़े गए, तो जाहिर है उनसे ज्यादा बच भी गए होंगे. जो पकड़े गए उनमें कुछ सजा काटकर मैदान में वापसी भी कर चुके हैं. मगर क्या इससे क्रिकेट पर लगा धब्बा धुल गया? इसलिए पुणे से जब पिच फिक्सिंग की बात आई तो मैं हैरान नहीं हुआ, बल्कि फिक्सिंग की एक और कहानी का इंतजार करने लगा हूं. क्योंकि ये क्रिकेट है. और इसमें सब फिक्स!

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लेखक

धर्मेन्द्र कुमार धर्मेन्द्र कुमार @dharmendra.k.singh.167

लेखक आजतक स्पोर्ट्स डेस्क में एसोसिएट एक्‍जीक्‍यूटिव प्रोड्यूसर हैं.

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