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Updated: 30 जुलाई, 2021 08:32 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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घर में जब हम किक बॉक्सिंग की एक्टिंग भी करते हैं तो तुरंत पीछे से मम्मियों की आवाज आती है कि खबरदार जो दोबारा ऐसा किया तो... भाई बहन अगर लड़ाई में भी बॉक्सिंग करते दिख गए तो उनके उपर बेलन का गिरना तो तय है. इससे यह तात्पर्य निकलता है कि लवलीना बोरगोहेन (Lovlina Borgohain) की मम्मी कितनी अलग होंगी जिन्होंने अपनी तीनों बेटियों को किकबॉक्सिंग करने दिया. जिसमें लात-मुक्का सब चलता है. दो जुड़वा बहनें लिचा और लिमा तो नेशनल लेवल तक किकबॉक्सिंग में खेल चुकी हैं लेकिन छोटी वाली लवलीना बोरगोहेन तो सबसे तेज निकली. इसने तो किकबॉक्सिंग भी खेली और बॉक्सर भी बन गई. चलिए अब लवलीना की कहानी भी जान लीजिए.

असल में कभी-कभी हमारी जिंदगी में कुछ ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं होती हैं जिसका हमारे उपर बड़ा गहरा असर पड़ता है. हमनें सोचा कुछ और होता है और हो कुछ और जाता है. ऐसा ही कुछ सालों पहले महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन के साथ हुआ. एक दिन लवलीना के पिता अखबार में लपेट कर मिठाई लाए. उस अखबार में दिग्गज मुक्केबाज मोहम्मद अली (Muhammad Ali) की एक तस्वीर छपी थी. इसके बाद लवलीना ने अपने पिता से मोहम्मद अली के बारे में पूछा. पिता ने लवलीना को मोहम्मद अली के जिंदगी की पूरी कहानी सुनाई.

Lovlina borgohain, Lovlina borgohain ranking, tokyo olympics, Medal, Medal in tokyo olympics, Lovlina borgohain tokyo matchभारत के लिए ओलंपिक्स मेडल जीतने वाली तीसरी बॉक्सर लवलीना

मोहम्मद अली ने अपने करारे मुक्कों के कारण दो दशक तक मुक्केबाजी में अपनी बादशाहत बनाए रखी. मोहम्मद अली के बारे में जानने का बाद यही वो मोड़ था जब लवलीना की पूरी जिंदगी बदल गई. इसके बाद ही लवलीना ने किकबॉक्सिंग छोड़ बॉक्सर (मुक्केबाज) बनने का सफर शुरु किया.

अपनी मेहनत की बदौलत लवलीना आज टोक्यो ओलंपिक में वेल्टरवेट कैटेगरी (64-69 किग्रा) के सेमीफाइनल में पहुंच गई हैं. यानी अब उनका कम से  कांस्य पदक (Bronze Medal) तो मिलना ही है. इस हिसाब से टोक्यो ओलंपिक में भारत का एक और मेडल तो पक्का हो ही गया है. एमसी मैरीकॉम (MC Mary Kom) के बाद लवलीना ओलंपिक मेडल जीतने वाली देश की दूसरी महिला मुक्केबाज होंगी. मैरीकॉम ने 2012 के लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था.

आसान नहीं था आसाम से टोक्यो तक पहुंचना

पिछले साल कोरोना संक्रमण की शिकार हुई लवलीना यूरोप में अभ्यास दौरे पर नहीं जा सकी थीं. लवलीना ने भी छोटे शहरों और गांवों से आने वाले खिलाड़ियों की तरह आर्थिक तंगी का सामना किया है. सामाजिक बंधनों को तोड़ा है फिर यहां तक पहुंची हैं. इस समय लड़कियों का बॉक्सिंग में जाना मुश्किल होता था. लोग बेटियों को इतने फिजिकल गेम में नहीं भेजना चाहते थे. आज की बात अलग है.

लवलीना, असम के गोलाघाट की रहने वाली हैं. इनके पिता टिकेन छोटे से व्यापारी थे. उन्हें अपनी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए संघर्षों का सामना करना पड़ा. अपनी दोनों बड़ी बहनों को किकबॉक्सिंग खेलते देख ही लवलीना को प्रेरणा मिली और खेलना शुरु किया. दोनों बहनें तो किकबॉक्सिंग की नेशनल चैम्पियन बनीं लेकिन लवलीना को तो कुछ और ही पसंद था जैसे की मुक्केबाजी.

लवलीना इस मामले में भाग्यशाली थीं कि इनकी मुक्केबाजी पर सबसे पहले राष्ट्रीय कोच पोडम बोरो की नजर पड़ी. इसके बाद 2012 में, लवलीना बॉक्सिंग एकेडमी में शामिल हो गईं और पोडम बोरो की निगरानी में ट्रेनिंग करले लगीं. पांच साल बाद ही लवलीना ने एशियन चैम्पियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता. इसके बाद लवलीना ने कई मेडल अपने नाम किए और यहीं से इनका सफर शुरु हो गया. लवलीना का मानना है कि मेडल तो एक ही होता है, ‘गोल्ड’ उसी की तैयारी है.’

टोक्यो से पहले का सफर

असल में टोक्यो ओलंपिक से पहले कुछ महीने लवलीना के लिए आसान नहीं थे. जहां एक तरफ सभी खिलाड़ी अपनी ट्रेनिंग में जुटे थे वहीं लवलीना की मां का किडनी ट्रांसप्लांट होना था और वे अपने मां के साथ थीं. इस कारण लवलीना को काफी समय तक बॉक्सिंग से दूर रहना पड़ा. जब मां की सर्जरी हो गई उसके बाद वे रिंग में लौटीं, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण उनकी ट्रेनिंग पर काफी प्रभाव पड़ा.

दरअसल, कोचिंग स्टाफ के सदस्यों के संक्रमित होने के कारण लवलीना ने अकेले ही अभ्यास किया. लवलीना ने वीडियो कॉल पर ट्रेनिंग ली लेकिन हिम्मत नहीं हारी. सारी बाधाओं को पीछे छोड़ते हुए लवलीना ने टोक्यो की उड़ान भरी और अब उनकी मेहनत का फल आप सभी के सामने है.

देश का मान बढ़ाकर इस बेटी ने बता दिया है कि अगर कुछ करने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल हमें रोक नहीं सकती है. मैरी कॉम को प्यार करने वाले लोग अब लवलीना पर अपना दुलार लुटा रहे हैं. लवलीना के गांव में दो हजार लोग और पूरे भारत के वासी खुशी मना रहे हैं. सच में लवलीना, हम सभी को आप पर नाज है. कई लोग तो नवलीना को देश की दूसरी मैरीकॉम ही बोल रहे हैं...

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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