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Updated: 30 दिसम्बर, 2016 09:18 PM
कुणाल वर्मा
कुणाल वर्मा
 
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क्रिकेट की दुनिया के कई रोमांच का आप कभी न कभी गवाह जरूर बने होंगे. पर आज जिस रोमांच के बारे में आपको बता रहा हूं, उसे पढ़ने के बाद आपको भी अहसास होगा कि ‘जो तूफानों में पलते जा रहे हैं, वहीं दुनिया बदलते जा रहे हैं’.

रोमांच की यह कहानी है बिहार के मुजफ्फपुर की. लंगट सिंह कॉलेज के मैदान में इंटर कॉलेज क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान की कहानी है यह. इसी 27 दिसंबर को मैदान में फाइनल में पहुंचने के लिए आरडीएस कॉलेज मुजफ्फरपुर और एमएस कॉलेज मोतिहारी के बीच जंग छिड़ी थी. पहले बल्लेबाजी करते हुए एमएस कॉलेज ने आरडीएएस को 110 रन का टारगेट दिया. आसान से लक्ष्य का पीछा करते हुए आरडीएस कॉलेज की पारी मध्यक्रम में लड़खड़ा गई. पर मैदान में आरडीएस कॉलेज की तरफ से मौजूद मुकेश से सभी को उम्मीदें थीं. उम्मीद इसलिए थी क्योंकि मुकेश को लोग उसके असली नाम से कम और पोलॉर्ड के नाम से ज्यादा जानते हैं. जी हां वही जुनूनी क्रिकेटर कीरोन पोलॉर्ड. वेस्डइंडीज का वही पोलॉर्ड, जो कभी अपनी जादूई गेंदबाजी से कहर बरपाता है तो कभी अपनी तूफानी बैटिंग से बॉलर्स को रुला देता है. मुकेश भी कुछ ऐसा ही है.

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 लाल कैप पहने मुकेश उर्फ 'पोलार्ड'

ऑलराउंडर मुकेश के ऊपर सारा दबाव था. पर अचानक मैच के 21वें ओवर में एक दनदनाते हुए बाउंसर ने उसे पिच पर गिरा दिया. सिर पर बॉल लगने के कारण हम एक उभरते क्रिकेटर फिलिप ह्यूज के सदमे को झेल चुके हैं. इसलिए बताने की जरूरत नहीं कि जब एक सामान्य 70-80 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से आती हुई बॉल सीधे आपकी कनपटी में लगती है तो क्या दशा होती है.

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बॉल पोलॉर्ड की कनपटी के किनारे लगी थी. कनपटी पर लगी चोट ने उसे अचेत कर दिया. उसे आनन फानन में मैदान से बाहर लाया गया. फर्स्ट एड दिया गया. स्थिति थोड़ी सामान्य होने के बाद मैच दोबारा शुरू हुआ. पर आरडीएस कॉलेज का पोलॉर्ड मैदान में नहीं जा सका. मैदान के बाहर अपनी टीम के बीच लेटा पोलॉर्ड इस अवस्था में नहीं था कि वह दोबारा बैटिंग के लिए जा सके. अब स्थिति पलट चुकी थी. एक समय ऐसा आ गया जब आरडीएस कॉलेज की टीम हारने की कगार पर पहुंच गई.

टीम के सात विकेट गिर चुके थे. आठवां विकेट भी गिर गया. अब पूरी तरह मैच आरडीएस कॉलेज के हाथ से निकल गया था. पर आठवां विकेट गिरने के बाद पोलॉर्ड ने अपने साथियों को पैड पहनाने को कहा. आरडीएस कॉलेज के कोच सह फीजिकल डायरेक्टर रविशंकर के लाख मना करने के बावजूद पोलॉर्ड मैदान में उतरने की जिद पर अड़ गया. अंत में रविशंकर ने उसे इजाजत दे दी. साथियों ने जोरदार तालियों के साथ उसे मैदान में भेजा. पिच पर जाते ही पोलॉर्ड ने पहले तो एक-दो रन लेना शुरू किया. हर एक दो रन दौड़ने के बाद वह बैठ जाता था. कनपटी पर लगी चोट और असहनीय दर्द एवं थकावट के बावजूद वह खेल रहा था. हर रन के बाद हाथों को भींजते हुए शायद वह अपने अंदर की ऊर्जा को जागृत कर रहा था. फिर दोनों हाथों को कसकर जकड़ते हुए बैट थामता था. पर उसके मन में तो कुछ और ही चल रहा था. वह इंतजार कर रहा था उस बॉलर का जिसकी बॉल ने उसे अचेत कर दिया. यह उस जीवटता की जिंदा मिसाल है जिसे हम और आप सिर्फ फिल्मी परदे पर ही देखते हैं. आमीर खान की सर्वकालिक फिल्मों में से एक ‘लगान’ के क्लाइमेक्स में भी आपने यह सीन देखी होगी. पर वहां सबकुछ स्क्रिीप्टेड था. वह रील लाइफ थी, यहां रीयल लाइफ का ‘भूवन’ मैदान में था. रीयल लाइफ के इस भूवन ने मैच का रुख पलट दिया था. अंतिम ओवर में तक टीम को जीत की कगार पर ले आया. अंतिम छह गेंद पर टीम को पांच रनों की दरकार थी.

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आखिर वह बॉलर भी पोलॉर्ड के सामने आ गया. बॉलर था फैजल गनी. विजी ट्रॉफी के स्टार बॉलर रहे फैजल की तेज गेंद ने पोलॉर्ड को अंदर से हिला दिया था. पर जिस कॉन्फिडेंस से पोलॉर्ड ने खुद को स्ट्राइक एंड पर रखा था वह देखने लायक था. तेज रफ्तार से आ रहे फैजल की पहली गेंद पर पोलॉर्ड ने दनदनाते हुए ऐसा पंच मारा कि बॉल बाउंड्री के बाहर चली गई. मैदान के बाहर दर्शक जोश से चिल्ला रहे थे और मैदान में खामोशी पसरी थी. अब जीत एक रन दूर थी. अगली ही गेंद पर पोलॉर्ड ने दोगुनी रफ्तार से बॉल को बाउंड्री पार पहुंचा दिया.

इस बाउंड्री के जरिए पोलॉर्ड ने वह कर दिखाया जिसकी जितनी मिसाल दी जाए कम है. यह उस जीवटता का चौका था जो हमारे अंदर विश्वास जगाती है. यह उस जीवटता का चौका था जिसके जरिए हम अपने भय पर काबू पाते हैं. और यह उस जीवटता का चौका था जिसे आज का युवा भूलने लगा है.  

चोट के बावजूद 29 रनों की नाबाद पारी खेलकर पोलॉर्ड ने आरडीएस के सिर जीत का सेहरा बांध दिया. मैच का विनिंग स्कोर करते हुए पोलॉर्ड वहीं पिच पर लेट गया. शायद पोलॉर्ड को भी नहीं पता नहीं था आज उसने क्या कर दिया है.

मेरे लिए तो यह इतना सुखद पल है जिसे सुनकर मैं मुजफ्फरपुर से बारह सौ किलोमीटर दूर बैठ कर भी रोमांचित हो रहा हूं. आज सुबह मित्र रविशंकर से लंबी बातचीत हुई. उसी ने पोलॉर्ड की पूरी कहानी सुनाई. मुझे लगा मुजफ्फरपुर के इस पोलॉर्ड के जीवटता की कहानी आप सभी को भी सुनाई जाए. इसीलिए लिख डाली. मुजफ्फरपुर शहर में इन दिनों इस रीजन का सबसे बड़ा क्रिकेट लीग हो रहा है. एमपीएल के आयोजकों के पास अगर मेरा यह मैसेज पहुंचे तो मैं निवेदन करना चाहूंगा कि पोलॉर्ड को सार्वजनिक मंच से सम्मानित करके उसकी हौसलाफजाई करें.

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मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मुजफ्फरपुर जैसे बड़े शहर जहां कई बड़े अखबारों की प्रींटिंग यूनिट है वहां कैसे पोलॉर्ड की कहानी लोगों तक नहीं पहुंची. एक अखबार ने जरूर पोलॉर्ड के उस दिन की आजीवन न भूलने वाली पारी को थोड़ी जगह दी. पर दावे के साथ कह सकता हूं यह पारी पोलॉर्ड को ताउम्र हौसला और प्रेरणा देगी. पोलॉर्ड की इस पारी को जिसने भी वहां देखा होगा उन्हें भी यह पारी लंबे समय तक प्रेरणा देगी. उम्मीद करता हूं मुजफ्फरपुर का यह पोलॉर्ड जिसे आप तस्वीर में लाल कैप पहने देख रहे हैं आने वाले समय में अपनी इसी जीवटता के दम पर टीम इंडिया का कैप पहने. रवि ने बताया कि पोलॉर्ड की कनपटी पर चोट के कारण गहरा दाग बन गया है. यह दाग खत्म हो या न हो पर दुआ करनी चाहिए कि पोलॉर्ड अपना यह हौसला कभी न खोए.

कभी मुजफ्फरपुर जाऊंगा तो इस पोलॉर्ड से जरूर मिलूंगा, क्योंकि पता नहीं क्यों मुझे इस पोलॉर्ड में अपना बचपन नजर आ रहा है. अपने क्रिकेट जीवन की कहानी फिर कभी.

लेखक

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