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Updated: 08 अगस्त, 2021 11:38 AM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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टोक्यो ओलंपिक 2021 (Tokyo Olympics 2021) में खेलों की शुरुआत होने के साथ ही मीराबाई चानू ने भारत की 'चांदी' कर दी थी. इस सिल्वर मेडल के साथ ही करोड़ों लोगों का भरोसा बढ़ गया था कि टोक्यो ओलंपिक भारत के लिए अब तक का सर्वश्रेष्ठ ओलंपिक साबित होगा. रवि दहिया के सिल्वर, पीवी सिधु-लवलीना बोरगोहेन-बजरंग पुनिया और भारतीय हॉकी टीम के कांस्य पदक ने भारतीयों का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. एथलेटिक्स के जेवलिन थ्रो में पहला स्वर्ण पदक जीत कर नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक इतिहास में भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद को पूरा कर दिया. इससे इतर भारतीय महिला हॉकी टीम हो या कुश्ती में दीपक पुनिया या गोल्फ में अदिति अशोक ये खिलाड़ी देश के लिए पदक लाने से एक कदम से चूक गए. बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद भी ये खिलाड़ी चौथे स्थान पर रहे.

इन सभी खिलाड़ियों ने अपने शानदार प्रदर्शन से पूरे देश को गर्व करने का मौका दिया. भारत में नेताओं से लेकर हर भारतीय इन खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो भारतीय महिला हॉकी टीम को फोन कर उनका मनोबल बढ़ाया. पीएम मोदी ने भारतीय महिला हॉकी टीम से बातचीत में हार-जीत को जिंदगी का हिस्सा बताते हुए दिल छोटा न करने की बात कही थी. पदक से चूकने वाले हर खिलाड़ी का हौसला बढ़ाने के लिए अगले गेम्स पर फोकस कर और बेहतर प्रदर्शन की बात कही जा रही है. सोशल मीडिया से लेकर टीवी न्यूज चैनल्स तक इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन को दिल जीतने वाला बता रहे हैं. खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने के लिए ये शब्द बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन, क्या केवल दिल जीतने को ही सब कुछ मान लिया जाए.

नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल नही लाते, तो टोक्यो ओलंपिक की मेडल टैली में भारत 66वें स्थान पर था.नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल नही लाते, तो टोक्यो ओलंपिक की मेडल टैली में भारत 66वें स्थान पर था.

काश, दिल जीतने का भी कोई ओलंपिक होता, तो भारत के खिलाड़ी सबसे ज्यादा आगे होते. विश्व का पहला सबसे ज्यादा आबादी वाला देश सोने, चांदी और कांस्य के तमगों के साथ टॉप पर है. तो, दूसरी नंबर की आबादी वाला भारत भी दिल जीतने के ओलंपिक के टॉप पर हो जाता. फिर हम भी चीन के खिलाड़ियों को मुंह चिढ़ा सकते थे कि देखो...तुमने तो केवल एक मेडल जीता है, हमने करोड़ों दिल जीत लिए हैं. ओलंपिक कभी भी दिल जीतने के लिए नही होते हैं. ओलंपिक में देश के लिए मेडल जीते जाते हैं. इन मेडल्स से ही दुनिया के सामने आपके देश की ताकत पता चलती है. दुनिया के नक्शे पर ठीक से दिखाई भी न पड़ने वाले देश भी भारत से पदक संख्या में कहीं आगे हैं. अगर नीरज चोपड़ा जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल नही लाते, तो टोक्यो ओलंपिक की मेडल टैली में भारत 66वें स्थान पर था. जो अब 47वें स्थान पर आ चुका है.

मैं खिलाड़ियों, सरकार या लोगों की निंदा नहीं कर रहा हूं. लेकिन, आप खुद ही सोचिए कि सवा अरब से ज्यादा आबादी वाले देश भारत ने 120 खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में भेजे थे. इनमें 68 पुरूष और 52 महिलाएं शामिल हैं. भारत की ओर से ये ओलंपिक में पदक जीतने की उम्मीद लेकर गए थे या दिल? दिल और पदक के बीच जमीन-आसमान का अंतर है और हमारे देश में इस बात को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, उतना अच्छा है. भारत के अब तक ओलंपिक इतिहास में जीते कुल पदकों में आठ स्वर्ण पदक भारतीय हॉकी टीम ने जीते हैं, वो भी 1980 से पहले. 1980 के बाद 2008 में अभिनव बिंद्रा ने व्यक्तिगत स्पर्धा में पहला स्वर्ण पदक जीता था. उसके बाद 2021 में नीरज ने स्वर्ण पदक दिलाया. क्या भारत का ऐसा प्रदर्शन आसानी से आपके गले उतर जाता है?

सुविधाओं का टोंटा हमेशा से ही भारत में रहा है. देश में इन खिलाड़ियों को करोड़ों लोग दिल देने के लिए तैयार हैं. लेकिन, एक समाज के तौर पर इन खिलाड़ियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए लोग सरकारों पर कितना दबाव बनाते हैं? कहा जा सकता है कि बीते कुछ सालों में भारत में खेल संस्कृति को बढ़ावा मिला है. लेकिन, ये अभी भी उस स्तर तक नहीं पहुंची है कि हर खिलाड़ी से पदक की उम्मीद की जा सके. और, इसकी जिम्मेदार केवल सरकारें नहीं हैं. एक समाज के तौर पर काफी हद तक हम भी हैं. भारत के तमाम धन्नासेठ केवल अपनी जेबें भरने में लगे रहते हैं. ओलंपिक में मेडल जीतने के बाद खिलाड़ियों को बधाई भी देते हैं. लेकिन, इनमें से कितने खिलाड़ियों को स्पॉन्सर करने का मन बनाते हैं?

एशिया में नई महाशक्ति के तौर पर उभर रहे और विश्व गुरू बनने का सपना देख रहे भारत का काम केवल दिल जीतने से तो नहीं ही चलने वाला है. जिस देश में कुश्ती, तीरंदाजी, भाला फेंक, तलवारबाजी जैसे खेलों को विरासत माना जाता हो. उन खेलों में एक भी मेडल देश के खाते से बाहर कैसे जा सकता है? इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस बार मेडल न ला पाने वाले खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई करनी चाहिए. इन खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने से भविष्य में होने वाले इवेंट्स में भारत का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है. लेकिन, दिल जीत लिया जैसी बातें खिलाड़ियों को उसी स्थान पर रोक सकती हैं. आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट टेस्ट चैंपियनशिप 2021 में हारी टीम इंडिया के लिए ये सोचा जा सकता है. लेकिन, बीते चार दशकों से ओलंपिक में भारत के नाम कोई खास उपलब्धि नहीं है, तो 120 लोगों के भारतीय दल में केवल सात मेडलों पर दिल जीतने की बात अखरती है.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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