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 |  एक अलग नज़रिया बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 03 फरवरी, 2022 10:32 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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महिला ने अगर बेटे को जन्म दे दिया तो घर के लोग उस बच्चे में ही खो जाते हैं. खुशी के मारे लड्डू बाटे जाते हैं, थाली पीटी जाती है, अब तो फेसबुक पोस्ट किया जाता है लेकिन उस महिला को ही अकेले छोड़ दिया जाता है जो इतना कुछ सहती है. 

Postpartum Depression क्या आपने कभी इस शब्द पर पहले कभी इतना गौर किया था. हम यह तो सुनते हैं कि बच्चे के जन्म के साथ ही महिला का भी दूसरा जन्म होता है, लेकिन कभी गौर नहीं किया कि लोग ऐसा क्यों बोलते हैं? भारत में हर 5 में से 1 महिला पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होती है लेकिन लोगों को दिखता है तो सिर्फ यह कि वह महिला बांझ है. उरे उसकी तो एक ही बेटी है, अरे उसने तो बच्चों की फौज खड़ी कर ली. आज हम आपको सिर्फ यह नहीं बता रहे कि Postpartum Depression होता क्या है बल्कि हम इससे जुड़ी हर परत खोल रहे हैं जिनपर किसी का ध्यान नहीं जाता.

अच्छा आप बताइए, क्या आप किसी ऐसी महिला को जानते हैं जो इस तरह की परेशानी से गुजरी हो? हम यह तो सुनते हैं कि मां बनना बहुत मुश्किल होता है. बच्चे के जन्म के बाद जिंदगी बदल जाती है. बच्चे बाद महिला की सेहत गिर गई. बच्चे के जन्म के बाद फलाने तो बहुत मोटी हो गई, बेबी होने के बाद वो कितनी पतली हो गई... क्या करें बच्चा रात भर सोने नहीं देता, खाना भी ठीक से नहीं खा पाती...क्या बच्चे के जन्म के बाद उसे पालने की जिन्मेदारी अकेली महिला की होती है?

postpartum depression, yediyurappa granddaughter, yediyurappa granddaughter saundrya, psychologist on postpartum depressionक्या वह अच्छी मां बन पाएगी, कहीं वह मोटी तो नहीं हो जाएगी, कहीं वह बदसूरत तो नहीं हो जाएगी, कहीं पति का आकर्षण उसके लिए कम तो नहीं होगा, कहीं वह नौकरी छोड़कर हमेशा के लिए घर न बैठ जाए...

दरअसल, आज दो दिनों से Postpartum Depression पर बात इसलिए हो रही है क्योंकि कर्नाटक के पूर्व सीएम और बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा की नातिन सौंदर्या (yediyurappa granddaughter saundrya) की 28 जनवरी को संदिग्ध हालात में मौत हो गई. सौंदर्या महज 30 साल की थी और पेशे से डॉक्टर थीं. सौंदर्या की शादी हे चुकी थी और उन्होंने 4 महीने पहले ही अपने पहले बच्चे को जन्म दिया था. सौंदर्या की मौत को लेकर फिलहाल बीएस येदियुरप्पा के परिवार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है. हालांकि, कर्नाटक के गृहमंत्री अरगा ज्ञानेंद्र ने बताया कि सौंदर्या ने 4 महीने पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था. वो प्रसव के बाद होने वाले डिप्रेशन (Postpartum Depression) से जूझ रही थीं.

“इसमें कोई शक नहीं है. हम सबको पता था कि वो पोस्ट प्रेग्नेंसी डिप्रेशन से जूझ रही थीं. कुछ समय पहले येदियुरप्पा खुद उन्हें अपने साथ अपने घर लेकर गए थे ताकि वो खुश रहें. इस वक्त वो बेहद दुखी हैं.” इसके बाद से ही लोगों में इस शब्द को लेकर जिज्ञासा बढ़ी है. जिस देश में डिप्रेशन को ही बमारी नहीं माना जाता वहां मां बनने के बाद होने वाली तकलीफ को कोई परेशानी कैसे मान सकता है?

लोगों के लिए तो यह प्राकृतिक और बेहद सामान्य सी बात लगती है जैसे सड़क पर गिरे उठे कपड़े झाड़े और उठकर चल दिए. इस तकलीफ से कितनी महिलाएं गुजरती हैं यकीन ना तो हो तो Postpartum Depression शब्द को गूगल करके देख लीजिए. महिलाओं के मौत के आंकड़े ही शायद आपकी आंखें खोल सकें. गर्भावस्था के बाद एक तो महिला शारीरिक रूप से कमजोर होती है दूसरी तरफ वह मानसिक रूप से भी जूझ रही होती है लेकिन अफसोस लोगों को सिर्फ यही लगता है कि मां बनी है इसलिए ऐसी है. कुछ दिन में अपने आप ठीक हो जाएगी.

इस परेशानी पर हमने कई महिलाओं और डॉक्टर से बात की. उन्होंने जो बाताया उसे सुनकर हैरान होना लाजिमी है.

ममता की कहानी

6 साल की बेटी और दूसरी बार प्रेग्नेंट ममता बताती हैं कि बच्चे को जन्म देने के बाद चिड़चिड़ाहट होती है, गुस्सा आता है, कभी-कभी खूब रोने का मन करता है. ऐसा लगता है कि अब बस यही जिंदगी है. जैसे सबकुछ खत्म होने वाला है. एक अजीब सा डर लगता है, लगता है जैसे हम एकदम अकेले हैं. ऐसा 2-3 महीने तक होता है. मेरे साथ हुआ था, क्योंकि मेरे ससुराल के लोग मुझे पसंद नहीं करते थे. जब मैं बेबी को जन्म देने के लिए अस्पताल में गई तो मेरे साथ सिर्फ मेरे पति थे, जबकि मैं उस वक्त लोगों से भरेपूरे ससुराल में थी. बच्ची को लेकर अस्पताल से घर आई तो कोई मेरे पास तक नहीं आया. मेरे खून से सने वाले कपड़े मेरे पति धोते थे. जिससे मुझे शर्म आती थी. मुझे अलग कमरे में अकेले छोड़ दिया गया. कभी-कभी तो पूरे दिन मैं किसी से बात नहीं करती थी. किसी ने खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रखा. मैं ठीक भी नहीं हुई कि रसोई और घर का काम करने लगी.

पति सुबह जल्दी जगकर मदद करते तो मेरे ससुराल के लोगों को दिक्कत होती थी. वे हमें ताने मारते. हमेशा हंसने वाली ममता अब शांत हो चुकी थी. ये सब तीन महीने चला मैं फोन पर मेरे घरवालों से भी बात नहीं करती, मन ही नहीं करता था. ऐसा लगता था कि बेटी को जन्म देकर मैंने गलती कर दी. मैं तीन महीने बाद जब मायके गई वहां जाकर ही मैं संभल पाई. ससुराल में कोई मेरी बेटी को देखता भी नहीं था. मुझे हर पल घुटन होती लेकिन जब बेटी का चेहरा देखती तो रोने लगती...इस डर की वजह से मैं दूसरी बार मां नहीं बनना चाहती थी. अब मैं कोशिश कर रही हूं कि चीजें बदलें. अब मैं चुप नहीं रहने वाली हूं.

बच्चे को जन्म देने के बाज किसी महिला के साथ कैसा सलूक होता है

अगर महिला ने बेटी को जन्म दिया तो वही लोग कहते हैं कि अरे बेटी ही तो पैदा हुई है ऐसे में वे महिला पर ध्यान नहीं देते है. उसके शरीर में हार्मोनल बदलाव हो रहे होते हैं, उसके शरीर के उसका एक हिस्सा बच्चे के रूप में अलग होता है जिसे वह 9 महीने अपने से लगाए फिरती है. उसे वह जगह खाली लगती है. उसे समझ नहीं आता कि उसके साथ क्या हो रहा है, उसे डर होता है कि क्या वो सबकुछ संभाल पाएगी, क्या वह अच्छी मां बन पाएगी, कहीं वह मोटी तो नहीं हो जाएगी, कहीं वह बदसूरत तो नहीं हो जाएगी, कहीं पति का आकर्षण उसके लिए कम तो नहीं होगा, कहीं वह नौकरी छोड़कर हमेशा के लिए घर न बैठ जाए...

इस वक्त वह किसी से बात करना चाहती है, वह किसी के साथ अपने एहसास को बांटना चाहती है लेकिन उसे बीमार समझकर अकेलेपन आराम करने के लिए छोड़ दिया जाता है. ऐसे में वह अकेलेपन का शिकार हो जाती है. कई जगह तो बच्चे के जन्म के 12 दिनों बाद तक महिला को अलग कमरे में सबसे दूर रखा जाता है. बस उसे खाना-पानी दे दिया बात खत्म. कई लोग उसे छुआछूत मानते हैं. पहली बार जब महिला मां बनती है तो उसके दिमाग में कई हलचल होती है जिसे कोई नहीं समझ सकता. एक तो आजकल एकल परिवार का चलन बढ़ गया है ऐसे में अगर पार्टनर का सपोर्ट न मिले तो वह महिला अकेले बच्चे को संभालने और घर की जिम्मेदारी में पिस जाती है. उसे खुद की जिंदगी से चिढ़ होने लगती है. उसे लगता है मानो उसके लिए यह दुनिया खत्म हो गई. एक बड़े राजनेता की नातिन, पति डॉक्टर और खुद भी डॉक्टर होने के बाद भी किस दर्द से सौंदर्या गुजरी होंगी कि अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

क्या कहती हैं परामर्श मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक डॉक्टर अनामिका पापड़ीवाल

हमने महिलाओं की इस स्तिथी को समझने के लिए Postpartum Depression के बारे में मनोचिकित्सक डॉक्टर अनामिका पापड़ीवाल से विस्तृत बात की. कुछ अंश आपके साथ साझा कर रहे हैं.

डॉक्टर अनामिका पापड़ीवाल ने बताया कि Postpartum Depression बच्चे को जन्म देने के बाद होता है. कई महिलाएं इस बात को स्वीकार नहीं कर पातीं कि उनकी जिंदगी में पति-पत्नी के बीच कोई तीसरा व्यक्ति भी आ गया है. इस कारण वे अपनी जिंदगी में बैलेंस नहीं बना पाती हैं. इस केस में तो सौंदर्या वर्किंग भी थीं. ऐसे में महिलाएं इस बात को बड़े रूप में ले लेती हैं. इसकी वजह पास्ट से भी जुड़ा हो सकता है. हो सकता है कि उन्होंने अपने पास्ट में इस तरह का कोई केस देखा हो कि जिसमें बच्चे को जन्म देने के बाद महिला अपनी जॉब को लेकर परेशान हुई हो. डिलवरी के बाद महिलाएं इमोशनली और मेंटली रूप से कमजोर हो जाती हैं. पहले वे बड़ी-बड़ी परेशानियों को हैंडल कर लेती थीं लेकिन बच्चे को जन्म देने के बाद वे छोटी-छोटी बातों से भी परेशान हो जाती हैं. इनके चक्कर में कई सारे बातें उनके दिमाग में आती रहती हैं.

एक केस मैं ऐसी डील कर रही हूं जिसमें महिला की उम्र 40 साल है. वे एक 14 साल की बच्ची की मां हैं. मैं उनका 2 साल से इलाज कर रही हूं. जब वो मेरे पास आईं थीं तो ठीक से चल-फिर भी नहीं पाती थीं. वो बेटी को छोड़कर बार-बार अपने मायके जाकर बैठ जाती थीं. उनके पति ने बताया कि वे हरियाणा से थीं और राजस्थान में उनकी शादी हुई थी. जब बेटी हुई तो उनको एक महीने के लिए अलग रूम में अकेला छोड़ दिया गया. उनके पति को भी उनके पास नहीं जाने दिया जाता था. बेटी होने पर उन्हें ताने दिया गया कि बेटा होता तो कोई और बात होती. उन्होंने इस हालात करने का सामना करने की कोशिश की लेकिन अकेलेपन के कारण वे गहरे डिप्रेशन में चली गई. वे ठीक से बेटी का ख्याल नहीं रख पाती थीं, उनके दिमाग में यही सारी बातें चलती थीं. उनकी देवरानी को भी बेटी हुई फिर वे इतना डर गईं कि दोबारा बेबी ही नहीं किया.

पति ने साथ दिया उन्हें बीएड कराया. उन्हें एहसास कराया कि उनकी बेटी, बेटे से कम नहीं है. कोविड टाइम में उन्होंने खुद को एक्टिव किया. अब उनके हाथ-पैर में दर्द नहीं होता. अब उन्हें मेंटली रूप से एक्टिव होने की जरूरत है तो मैंने उन्हें कंप्यूटर क्लास लेने के लिए बोला है. इस कहानी से समझा जा सकता है कि Postpartum Depression का कितने सालों तक कितना गहरा असर पड़ सकता है.

महिला को पता ही नहीं होता कि उसका कोई बेबी है

किसी घर में कोई हादसा हो जाए, किसी को धोखा मिल जाए, किसी को बड़ी बीमारी हो जाए तो सब बात करते हैं लेकिन जब एक महिला मां बनती है तो उसे अकेला छोड़ दिया जाता है. उसकी हालत के बारे में नहीं सोचा जाता. मैं तो इस बात से हैरान हूं कि कोई महिला इस हद तक परेशान हो गई कि उसने अपना जीवन खत्म कर लिया. इसलिए आजकल गर्भवती महिलाओं को हीलिंग थेरेपी की सलाह दी जाती है, ताकि वे मां बनने कि लिए तैयार हो पाएं. Postpartum Depression से जूझ रही महिला को पता ही नहीं होता कि उसका कोई बेबी है जिसका उन्हें ध्यान रखना है. वे खुद में खोई रहती हैं. वे बहुत गहराई तक सोचने लगती हैं. अब इस केस की वजह से लोगों का ध्यान इस बात पर जाएगा. वरना यह सब तो लोगों को नॉर्मल लगता है. लोगों को अवेयर करना जरूरी है.

एक ऐसा केस जिसमें मां बच्चे को मारना चाहती है

Postpartum Depression में महिला को कुछ अच्छा नहीं लगता. अब बच्चे को तो अपना अटेंशन चाहिए होता है. मां को लगता है कि यह मुझे खाने नहीं देता, सोने नहीं देता...ऐसे में बच्चा उन्हें अपना दुश्मन लगने लगता है. कई बार तो वे उसे मारने की सोचने लगती हैं. ऐसे में पति को भी बच्चे को समय देना चाहिए. पहले संयुक्त परिवार के बीच में बच्चों की परवरिश हो जाती थी और पता भी नहीं चलता था.

आजकल के लड़के-लड़के पढ़ाई में ही रह जाते हैं, वे देख ही नहीं पाते कि परिवार में कैसे एक-दूसरे को संभाला जाता है. उन्हें कोई रोकता-टोकता नहीं हैं. वे अपने हिसाब से अपनी जिंदगी जीते हैं, उन्हें तो शादी से ही दूर भागना होता है इसलिए वे जल्दी बेबी प्लान नहीं करते.

एक केस जिसमें महिला बच्चे की केयर न कर पाई और सुसाइड कर ली

एक महिला और उनके पति में अनबन चल रही थी. उनकी मां डॉक्टर थीं. वो भी अपने बच्चे को लेकर उत्साहित थीं लेकिन बेबी होने के बाद वे उसे संभाल नहीं पाई. यह कोरोना काल के दूसरी लहर के समय की है. वे अकेले ही बच्चे का पालन-पोषण कर रही थीं. एक दिन कुछ हुआ और उन्होंने सुसाइड कर लिया. सब कुछ सही चल रहा था लेकिन अचानक उनके जाने से सब बदल गया. वे पहली प्रेंगनेंसी के समय में ही Depression की शिकार थीं. वे अपने मायके में रह रही थीं. पति के साथ अनबन थीं. वे अकेलेपन का शिकार थीं. उनके पिता नहीं थे और मां बीमार हो गई थीं.

बच्चा होने के बाद अचानक जिंदगी में ब्रेक आता है

महिलाओं ने बहुत सपने देखे होते हैं कि हम इस तरह से आगे बढ़ेगें, ये करेंगे लेकिन बच्चे का आने के बाद उनको लगता है कि उनकी जिंदगी में एक दम से ब्रेक लग गया. ना वे जॉब कर सकती हैं ना अपने हिसाब से जिंदगी जी सकती हैं. उनका सबकुछ बच्चे के हिसाब से तय हो जाता है. शादी, बच्चा होने पर जो ब्रेक मिलता है उससे सकारात्मक रूप से लेने की जरूरत है. परिवार के लोगों की अपेक्षाएं भी होती हैं कि मां बनने के बाद भी महिला पहली की तरह काम संभालती रहें.

पोस्टपार्टम डिप्रेशन से कैसे बचें 

मां तभी बने जब आप और पार्टनर दोनों मेंटली रूप से तैयार हों

इस समय काम से ब्रेक जरूर लें और एंजॉय करें

सेलिब्रिटी की कॉपी न करें, उनकी जिंदगी जो दिखती है वह है नहीं

अकेले रहने से बचें, फोन पर अपनों से बात करें

वैवाहिक संघर्ष को खत्म करने की कोशिश करें

बच्चे पालने में परिवार व पति की मदद लें

प्री प्रेंग्नेंसी काउंसलिंग लें ताकि आने वाली लाइफ के लिए तैयार हो सकें

फॉरेन कल्चर की तरह बच्चों को केयर टेकर के भरोसे न रहें

अपने बात को कहना और सुनना जरूरी है

पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे को समय जरूर दें

पढ़ाई, जॉब शादी की तरह बच्चे का जन्म जिंदगी का हिस्सा है

बच्चा जिंदगी पर ब्रेक नहीं लगाता आप आगे बढ़ सकती हैं

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि बच्चे के आने से एक मां की जिंदगी बदल जाती है. वह बच्चे के हिसाब से जगती-सोती है. मां को कुछ हुआ तो बच्चे को भी हो जाएगा इसलिए वह अपने पसंद के पकवान भी खाना छोड़ देती है. वह बार-बार बच्चे को दूध पिलाती है. उसके कपड़े साफ करती हैं.

मेरी एक दोस्त ने लव मैरिज की. शादी के 3 साल तक तो मां नहीं बनी तो उसे ताने दिए गए. उसने बहुत दवाइयां खाई. ससुराल में प्रेगनेंसी में भी वह काम करती रही. उसने सिजेरियन से बच्ची को जन्म दिया. ससुराल से कई नहीं आया...घर जाने के बाद उसे समझ नहीं आ रहा था कि बच्चे का डॉयपर कैसे बदले, उसके खाने-पीने पर ध्यान नहीं दिया गया. वह अभी बहुत कमजोर हो चुकी है. तंग आकर वह मायके आ गई, यहां उसका इलाज चल रहा है.

एक फ्रेंड ने कुछ सालों पहले Postpartum Depression पर एक फेसबुक पर शेयर किया था. उसने बताया था कि वह मां बनकर खुश नहीं थी इसलिए उसने मां बनने की खबर 1 साल बाद बताई. उसका इलाज चल रहा था. वह रोती रहती थी. उसकी जल्दी शादी हो गई. वह जल्दी मां बन गई. डिप्रेशन के कारण उसका वजन बहुत ज्यादा बढ़ गया था. उसे कोई समझ नहीं पा रहा था. सब डांटते थे कि बच्चे का ध्यान नहीं रखती. उसे तो पता ही नहीं था कि ऐसी भी कोई बामीरी होती है...

असल में ज्यादातर महिलाओं को इस बारे में पता नहीं होता है. वे बस खुद पर ही गुस्सा करती हैं और खुद पर ही रोती हैं. अब समझ आया कि ऐसी क्या तकलीफ होती है कि मर जाओ वाली हालात हो जाती है...इनका दर्द कौन समझेगा?

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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