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Updated: 07 मार्च, 2021 09:34 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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जब भी महिला सशक्तिकरण (women empowerment) की बात आती है तो लोगों को महिलाओं का ध्यान आता है. जबकि पुरुष भी महिलाओं का साथ देते हैं, उन्हें सपोर्ट करते हैं. कई पुरुष भी महिलाओं के अधिकार और उनकी परेशानियों को समझते हैं. पुरुष भी चाहते हैं कि महिलाओं को उन्हीं की तरह सामान्य नजरों से देखा जाए. महिला विषय पर महिलाओं को अक्सर बोलते हुए देखा जाता है. अपनी बात रखते हुए देखा जाता है, लेकिन पुरुष इस बारे में क्या सोचते हैं यह भी मायने रखता है.

फेमिनिज्म एक सोच है (what is feminism), ना की किसी लिंग का परिचय. ऐसा नहीं है कि महिला विषय सिर्फ महिलाओं तक सीमित है. कई पुरुष भी फेमिनिस्ट सोच (What is feminist) रखते हैं. फेमिनिस्ट होने का मतलब पुरुषों से नफरत करना तो बिल्कुल नहीं है. फेमिनिस्ट होने का मतलब पुरुषों के खिलाफ नाराजगी जाहिर करने से नहीं है, बल्कि दोनों को समान अवसर देने से हैं. Feminism and pseudo feminism के अंतर को समझने की जरूरत है. कई लोग इन दोनों में कंफ्यूज हो जाते हैं और फेमिनिस्ट शब्द को एक गाली की तरह समझने लगते हैं.

फेमिनिस्ट लड़के चाहते हैं महिलाओं के लिए नॉर्मल लाइफफेमिनिस्ट लड़के चाहते हैं महिलाओं के लिए नॉर्मल लाइफ

ये जो अब महिलाओं को इतने अधिकार (women rights) मिले हैं. जिसमें वोट करने का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, बैंक में खाता खोलने का अधिकार, काम करने का अधिकार आदि शामिल है, ये अधिकार हमेशा से नहीं थे. इसके लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है. हालांकि यह भी सच है कि जब कोई मुहीम चलाई जाती है तो उसमें बहुत से एलिमेंट शामिल होते हैं जिनमें कुछ पूरी सच्चाई से अपना काम करते हैं तो वहीं कुछ अपना फायदा देखते हैं.

लड़कों ने माना कि करिअर बनाने के लिए समय सीमा का दबाव नहीं है

इस महिला दिवस पर (Women's day 2021) हमने पुरुषों से पूछा कि ऐसी कौन सी बातें हैं, जिसका लाभ सिर्फ पुरुष होने की वजह से उनको मिलता है जो आज भी महिलाओं को नहीं मिलता. इस बारे में नोएडा के रहने वाले मनोज का कहना है कि अगर मुझे करियर सेट करने में टाइम लगता है और मैं ऐसा करने में फेल हो जाता हूं तो घरवालों के सामने आसानी से बता सकता हूं. साथ ही अपनी बात रखकर उनसे और समय मांग सकता हूं. जबकि लड़कियों के मामले में ऐसा नहीं है. मेरी फीमेल फ्रेंड्स मुझे बताती हैं कि अगर पढ़ाई के बाद अच्छा करियर सेट हो जाता है तब तो फिर ठीक है. वरना अगर फेल हो गए या सक्सेसफुल करियर नहीं बना पाए तो घरवाले शादी करा देंगे.

लड़की का करिअर बने या ना बने, एक उम्र के बाद शादी का प्रेशर बनेगा ही

आज भी लड़कियों पर एक उम्र के बाद शादी का प्रेशर बनाया जाता है. लड़की अगर ढंग की जॉब कर रही है तब तो कुछ बोल भी सकती है लेकिन अगर वह कॉलेज के बाद एक-दो साल तक कुछ अच्छा नहीं करती तो शादी ही आखिरी ऑप्शन माना जाता है, सबको इसी में उसकी भलाई दिखती है. वह शादी के लिए और ज्यादा समय नहीं मांग सकती. जबकि अगर मैं पढ़ाई के बाद दो क्या तीन साल तक भी कुछ ना कर पाऊं तो भी मुझे और समय मिल सकता है. मेरे ऊपर कोई शादी का प्रेशर नहीं बना सकता.

रात के राजा हैं लड़के, लड़कियों के अभी मामला सुरक्षा का ही है

वहीं मार्केटिंग सेक्टर में जॉब करने वाले सुमित का कहना है कि अगर मुझे ऑफिस में रुक कर देर रात तक काम करना पड़ा और रात में ही घर जाना हुआ तो शायद मुझे मेरी सेफ्टी के लिए इतना नहीं सोचना होगा जितना एक लड़की को. तब मुझे लगता कि मुझे लड़का होने का फायदा मिल रहा है. इसे फायदा कहना भी गलत होगा क्योंकि यह किसी भी इंसान का बेसिक राइट है. लड़कियों की सुरक्षा आज भी मुद्दा है.

लड़कियों को आज भी सामान्य नजरों से नहीं देखा जाता. उनको रात में या शाम में ही अकेले सड़क पर जाने में डर लगता है. वजह है उनकी सेफ्टी. यह किसी भी इंसान का बेसिक नीड है ना की महिला या पुरुष की बात. मैं अपना फैसला आजादी के साथ खुद ले सकता हूं. मुझे देर रात रास्ते पर निकलने से पहले यह नहीं सोचना पड़ेगा कि कैसे क्या होगा. जबकि लड़कियों के मामले में ऐसा नहीं है. उनके दिमाग पहले 10 बातें आएंगी कि मुझे देर रात रुकने से पहले क्या-क्या तैयारियां करनी होगी, किसे बताना होगा, किससे पूछना होगा, कैसे घर जाऊंगी, साथ कौन होगा आदि.

गाजियाबाद रहने वाले प्रकाश आईटी सेक्टर में जॉब करते हैं. उनकी नाइट शिफ्ट रहती है. वो बताते हैं कि ऑफिस में एक फीमेल कुलीग को एटीएम जाना था लेकिन उसे वॉक करके अकेले जाने में डर लग रहा था. जबकि हम लड़के आराम से उसी एटीएम में आना-जाना करते थे. एक बार ऑफिस टीम को ट्रिप पर जाना था. हमें तो घरवालों को बस बताना था लेकिन हमारे साथ काम करने वाली लड़कियों को अकेले बाहर जाने की इजाजत नहीं थी. वहीं सोलो ट्रेवल पर हमें जाना हो तो भी हमें इतना नहीं सोचना पड़ता जबकि लड़कियों को तो परमिशन ही कम मिलती है.

तो अब आप समझ गए होंगे ये जो बेसिक जरूरतें हैं, इसके लिए भी महिलाओं को सोचना पड़ता है. हालांकि हालात पहले से बेहतर हुए हैं. पुरुषों का एक बड़ा तबका महिलाओं के समर्थन में आगे आया है. इसकी शुरुआत घर से ही हुई है. वो कहते हैं ना कि पुरुष की सफलता के पीछे महिला का हाथ होता है तो महिला की सफलता के पीछे भी एक पुरुष का हाथ हो सकता है.

महिलाएं जब आगे बढ़ना चाहती हैं तो सब इस बात को समझते हैं. कई घरों में अब महिला पुरुष के लिए सामान्य माहौल होता है. अगर एक अपने काम में बिजी है तो दूसरा किचन संभाल लेता है. पति-पत्नी दोनों मिलकर घर का काम करते हैं और पैसे कमाते हैं. कोई किसी को नीचा नहीं दिखाता. भाई, पिता या पति सभी घर की महिलाओं के सपोर्ट लिए आगे आ रहे हैं. पुरुष अब समझने लगे हैं कि घर संभाला बस घर की महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं है. इसलिए वे भी सहयोग कर रहे हैं. हालांकि महिलाओं को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए आज भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन खुशी इस बात की है अब उनके अपने साथ हैं.

कई घरों में तो अगर महिला अच्छी नौकरी कर रही है और अच्छे पैसे कमा रही है तो पति घर रहकर घर संभाल रहे हैं. बच्चों की देख रहे हैं. इसे हाउस हसबैंड नाम दिया गया है. शुरु में लोग ताने मारते हैं, लेकिन जब पति सपोर्टिव नेचर का होता है तो उसे किसी बात का फर्क नहीं पड़ता. यह पति-पत्नी की आपसी समझ पर निर्भर करता है. इसलिए महिलाओं को बिना डरे अपनी बात रखना चाहिए. अगर आप आप अपनी बात बताएंगी नहीं तो किसी को पता कैसे चलेगा और आपका परिवार आपको कैसे समझेगा और जब घरवाले समझेंगे नहीं तो आपको सपोर्ट कैसे करेंगे.

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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