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Updated: 23 अक्टूबर, 2017 07:53 PM
अपूर्वा प्रताप सिंह
अपूर्वा प्रताप सिंह
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7 दिसंबर 1941 को जापान का अमेरिकन पर्ल हार्बर पर हमला, द्वितीय विश्व युद्ध का आगाज था, समूचा अमेरिका उबल पड़ता है, अगले दिन 8 दिसंबर को प्रेसिडेंट रूज़वेल्ट अमेरिकी संसद में जापान पर आक्रमण के निर्णय लेने के लिए वोटिंग कराते हैं. हर जन प्रतिनिधि नाम पुकारे जाने पर खड़ा होता है और जोश मे "हां" कर रहा है, पूरी संसद हां, हां, हां की आवाज़ों से भर गयी हैं. फिर एक नाम पुकारा जाता है 'जैनेट रेंकिन' जो कि संसद की एकमात्र महिला का नाम है, वो 61 वर्षीय महिला खड़ी होती है और एक बहुत ही दृढ़ 'न' सुनाई देता है.

युद्ध, विश्व युद्ध, भारत, पाकिस्तान   भले ही एक लम्बा वक्त बीत गया हो, मगर अब भी जापान युद्ध का दंश सह रहा है

पूरी संसद फुसफुसाहट से भर गयी, हर कोई उनको घूर रहा है. जैनेट का युद्ध को न, कोई नई बात नहीं थी, इससे पहले वो 1917 में, प्रथम विश्व युद्ध के लिए हुई संसदीय वोटिंग में भी न कर चुकी थीं, लेकिन इस बार माजरा कुछ अलग था, जापान के इस हमले से हर अमेरिकी दुखी था. इसलिए प्रतिक्रिया भयानक होनी ही थी.

खैर, सत्र खत्म होता है, बाहर पूरा मीडिया जैनेट को घेर लेता है. वहां मौजूद हर शख्स अभद्र हो गया उनके लिए, वो भाग कर संसद के अमानत घर में छुपती हैं और वहीं से पुलिस को फोन कर मदद के लिए बुलाती हैं. पुलिस उन्हें उनके घर छोड़ कर आ जाती है.

पर बात खत्म नहीं होती, अगले दिन के न्यूज पेपर उनकी बखिया उधेड़ते हैं. 'पायोनियर' मोटी हेडलाइन्स मे लिखता है कि इस महिला को संसद के फर्श पर लिटा कर स्पैंक करना चाहिए. पर वो अपना 'युद्ध को न' वापस नही लेती और लड़ती रहती हैं. अमेरिका दूसरे विश्व युद्ध मे शामिल हो चुका है. इस दौरान जैनेट निचले स्तर का एक पत्र प्रोग्राम चलाती हैं जिसमें उन माओं के पत्र शामिल किए गए जो अपने बेटों को युद्ध में धकेले जाने के खिलाफ हैं.

यहां यह बताना ज़रूरी है कि, तत्कालीन स्थितियों मे, युद्ध बहुत सामान्य माना जाता था और अमेरिका का दखल प्रथम विश्व युद्ध से ही, विश्व राजनीति में बढ़ चुका था. अमेरिकी सैनिक किसी न किसी यूरोपीय युद्ध में शामिल रहते थे. तब किसी का भी युद्ध को मना करना देशद्रोह जैसा समझा जाने लगा था, और ऐसे हालात मे एक छोटे राज्य मोंटाना की प्रतिनिधि का एक 'नो' लोगों को तमाचे सा लगा.

युद्ध, विश्व युद्ध, भारत, पाकिस्तान   अमेरिका के इतिहास में जो छाप जैनेट ने छोड़ी औ अब शायद ही कोई महिला छोड़ पाएउनका कहना था कि बिना असल हालात जाने, रेडियो कमेंटरी मात्र से, युद्ध घोषित करना, नीतिसंगत नहीं है. जैनेट, के चुनावी प्रचार का नारा था 'keep our men out of europe' इसी नारे के कारण वो 1940 में दुबारा संसद मे आयीं थीं, मुमकिन है कि सारी स्त्रियों ने उन्हें वोट किया हो. इसके बाद इटली, हंगरी पर भी आक्रमण के लिए वोटिंग हुई, वो संसद मे रही पर वोट नहीं दिया. इस फैसले के बाद उनका राज्य ही उनके खिलाफ हो गया, वो जानती थी कि ऐसे माहौल मे उनकी न उनकी राजनैतिक आत्महत्या साबित होने वाली है लेकिन वो पीछे नहीं हटी. उन्होंने कहा कि अगर वो युद्ध को हां करती हैं तो उनके चुनावी नारे का कोई अर्थ नहीं, जिसमे उन्होने युद्द की खिलाफत की थी. अगले चुनाव वो हार भी गयी, लेकिन उन्होने अपना एंटी वार कैम्पेन बंद नहीं किया.

वो महात्मा गांधी से मिलने भारत आती रहीं. वियतनाम पर अमेरिकन हमले की उन्होने मुखालफत की, सारी औरतें उनके सपोर्ट में सड़कों पर उतरीं. उन्होंने बाद मे अपने बायोग्राफर को कहा कि अगर वो उस दिन संसद से नहीं भागती तो, अमेरिकन औरतों के मन की बात कहने वाला संसद में कोई ना बचता. उस समय अमेरिका एक पुरुष प्रधान अक्खड़ समाज हुआ करता था, पर उन्होने उस दौर मे भी हार नहीं मानी और लगातार लड़ती रहीं.

अब सोचती हूं कि, जब आज युद्धोन्माद हर ओर है, युद्ध को न कहना हमें देशद्रोही साबित कर देता है, क्या हमारे पास कोई जैनेट है जो इतनी दृढ़ रहे. मनुष्य हृदय से स्त्री है. जो भी कोमल है वो स्त्री है, जैनेट ने अपने स्त्रीत्व को खोया नहीं, अपने राजनैतिक फायदे के लिए. जो कोई भी मनुष्य जो अपने उसूलों पर टिका रहेगा वो स्त्री ही होगा. स्त्रीत्व किसी लिंग पर निर्भर नहीं करता, वो एक गुण है. उसूलों की सख्ती पर उनके कोमल भावों को जैनेट जैसी स्त्रियां ही जीवित रखती हैं.

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लेखक

अपूर्वा प्रताप सिंह अपूर्वा प्रताप सिंह @apoorva.singh.2611

लेखिका राजनीति विज्ञान की छात्रा है जिन्हें समसामयिक मुद्दों पर लिखना पसंद है.

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