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Updated: 02 अप्रिल, 2019 07:22 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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पाकिस्तान को बने 71 साल हो चुके हैं और इमरान खान अब 'नया पाकिस्तान' बनाने की योजना बना रहे हैं. पर पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं के लिए न ये 71 साल कुछ कर पाए और न आने वाले नए पाकिस्तान से कुछ उम्मीद नजर आती है. पाकिस्तानी हिंदू कभी पाकिस्तान के हो ही नहीं सके.

आजकल हम हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण की आड़ में उनके यौन शोषण की खबरें सुन रहे हैं. लेकिन वहां रहने वाले हिंदू परिवारों के लिए कभी सिर्फ एक समस्या नहीं रही. दिल्ली ने पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों को अपने दिल में जगह दी. यहां बनी दो रिफ्यूजी कालोनियों में पाकिस्तान से आए हर परिवार के पास पाकिस्तान छोड़कर भारत आने की अलग-अलग वजह हैं. आदर्श नगर में 110 पाकिस्तानी हिंदू परिवार रहते हैं, जबकि मजनूं का टीला करीब 500 पाकिस्तानी हिंदुओं का घर है.

pakistani hindu refugeeदिल्ली ने पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों को अपने दिल में जगह दी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में ये लोग भले ही टैंट में रहते हैं, संसाधनों की कमी है, लेकिन तब भी ये कहते हैं कि भारत में ये 'आजाद' हैं. अपना घर छोड़कर यहां आने का फैसला करना आसान नहीं था, लेकिन उनके पास दूसरा कोई चारा भी नहीं था.

40 वर्षीय टेलर धर्मू मास्टर 2017 में भारत आए थे. उनकी पत्नी और तीन बच्चों ने सिंध से थार एक्सप्रेस पकड़ी और दिल्ली आ गए. धर्मू कहते हैं 'हमें हरिद्वार जाने का वीज़ा मिला था. लेकिन घर छोड़ते वक्त हम जानते थे कि हम दोबारा वापस नहीं आएंगे. वहां मेरा एक जमा जमाया काम था लेकिन हमें वो जगह छोड़नी पड़ी क्योंकि हम पड़ोसियों के निशाने पर थे.'

परेशानी तब खड़ी हुई जब धर्मू ने 2016 में एक नई दुकान खोली और बोर्ड पर धार्मिक चिन्ह लगवाए. उसे उन चिन्हों को हटाने के लिए कहा गया. जब उसने ऐसा नहीं किया तो उसे धमकाया गया और उसकी दुकान तोड़ दी गई. हालांकि धर्मू को अपना काम छोड़ना पड़ा और भारत में भी आय का कोई मजबूत सहारा नहीं है फिरभी धर्मू को लगता है कि भारत में उन्हें उनका खोया हुआ आत्मविश्वास और आत्म सम्मान मिला है. धर्मू के तीनों बच्चे स्कूल जाते हैं. सबसे बड़ी बेटी मीना ने हाल ही में सरकारी स्कूल से 6ठी क्लास पास की है. धर्मू कहते हैं कि ये सब पाकिस्तान में संभव नहीं था.

pakistani hindu refugeeभारत में खोया आत्म सम्मान पाया

धर्मू के साथ-साथ यहां रहने वाले सभी परिवारों का कहना है कि पाकिस्तान में वो डर में जी रहे थे, उन्हें धमकियां दी जाती थीं, उन्हें प्रताड़ित किया जाता था और आर्थिक रूप से उनका बहिष्कार कर दिया गया था.

ये लोग तो भारत आ गए लेकिन हर परिवार से जुड़ा कोई न कोई रिश्तेदार वहीं पाकिस्तान में ही छूट गया है. किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी की बेटी. और इन्हें अब उनकी सुरक्षा की चिंता है, खासतौर पर बालाकोट पाकिस्तान में भारत द्वारा की गई एयर स्ट्राइक के बाद.

आशुतोष जोशी एक समाजसेवी हैं जो इन कॉलोनियों में रहने वालों के लिए फंडिंग करते हैं और उन्हें दवाएं और घर के जरूरी सामान उपलब्ध करवाते हैं. हाल ही में पाकिस्तानी हिंदू बच्चियों रीना और रवीना का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि बालाकोट हमले का बदला लेने के लिए पिछले 35 दिनों में करीब 7 हिंदू नाबालिक लड़कियों को अगवा किया गया है.

धर्मवीर 2014 में भारत इसलिए आए क्योंकि पाकिस्तान में वो हिंदू धर्म नहीं निभा पा रहे थे, बच्चे पढ़ाई नहीं कर सकते थे. 'यहां बस्ती में बिजली की परेशानी जरूर है. भारत में हमारी समस्या सिर्फ खाना और पानी है जबकि पाकिस्तान में हमारा सारा ध्यान अपने घर की महिलाओं की सुरक्षा पर ही होता था.'

pakistani hindu refugeeयहां बच्चे पढ़ाई कर पा रहे हैं जो पाकिस्तान में संभव नहीं था

पाकिस्तान से 4 साल पहले भारत आए 60 साल के मेघी का कहना है कि- 'अपनी इच्छा से कोई अपना पुश्तैनी घर नहीं छोड़ना चाहता, हमें पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, क्योंकि हमारे पास कोई चारा नहीं था. अगर कोई हमें सुरक्षा की गारंटी दे तो हम वापस चले जाएंगे. लेकिन फिलहाल भारत ही हमारे देश है.'

तो भारत आए इन लोगों ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे व्यवहार की कलई खोलकर रख दी है. वो पाकिस्तान जो इतने सालों में हिंदू परिवारों को अपना नहीं पाया वो नया हो जाने पर इनका भला कर पाएगा, उसपर भी यकीन नहीं किया जा सकता. ऐसे में फख्र होता है भारत पर, कि भारत न सिर्फ भारतीय अल्पसंख्यकों का अपना है बल्कि वो पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए भी बाहें फैलाए है. इन शरणार्थियों की आपबीती सुनने के बाद भारत के मुसलमान तो खुद को फख्र से भारतीय कहेंगे लेकिन इन शरणार्थियों को फख्र करने के लिए पाकिस्तान ने शायद कुछ भी नहीं दिया.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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