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Updated: 03 अप्रिल, 2022 01:14 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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हिजाब विवाद को लेकर चर्चा में आए कर्नाटक में अब हलाल मीट (Halal Meat) के बायकॉट की मांग उठने लगी है. कर्नाटक में उगाडी पर्व, जो हिंदू नववर्ष का त्योहार है, से ठीक पहले हलाल मीट के खिलाफ कैंपेन चल रहा है. दरअसल, उगाडी के एक दिन बाद हिंदुओं के एक वर्ग द्वारा भगवान को मांस चढ़ाने की परंपरा रही है. और, भाजपा नेता सीटी रवि ने इसी हलाल मीट पर हल्ला बोल दिया है. उन्होंने इसे आर्थिक जिहाद करार दिया है. सीटी रवि का कहना है कि 'हलाल मांस 'उनके भगवान' को चढ़ाया जाता है, जो उन्हें (मुस्लिमों) प्रिय है. लेकिन, हिंदुओं के लिए यह किसी छोड़े हुए खाने की तरह है.' वैसे, हलाल मीट पर शुरू हुए इस विवाद में हिमालया ड्रग कंपनी भी सोशल मीडिया पर अपनी हलाल पॉलिसी वायरल होने के बाद से लोगों के निशाने पर आ गई है.

दरअसल, सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हिमालया कंपनी की हलाल पॉलिसी में लिखा गया है कि 'हम हिमालय कंपनी के सदस्य ईमानदारी के साथ मुसलमानों के हलाल उत्पादों का इस्तेमाल करने की बाध्यता को पूरा करने के लिए अपने उत्पादों (हर्बल, केमिकल, फूड कलर) को पूरी तरह से हलाल रखते हैं. हमारे उत्पाद इस्लामी कानून/शरिया का पालन करते हैं और इस्लामी कानून के तहत किसी भी वर्जित सामग्री से मुक्त हैं. हमने हलाल प्रमाणन से जुड़े सभी मामलों पर जिम्मेदारी से काम करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों (मुस्लिम सहित) की एक मैनेजमेंट टीम बनाई है.' वैसे, हलाल मीट को लेकर विवाद केवल भारत में नहीं होता है. बल्कि, दुनिया के कई देशों में तो हलाल मीट पर बैन है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि केवल मीट ही नहीं वेज चीजों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेशन क्यों जरूरी है?

क्या आर्थिक जिहाद है हलाल मीट?

भाजपा नेता सीटी रवि ने कहा है कि 'हलाल एक आर्थिक जिहाद है. इसको योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है ताकि इस उत्पाद को सिर्फ मुसलमानों से ही खरीदा जा सके न कि हिंदुओं से. जब मुस्लिम हिंदुओं से मांस खरीदने से इनकार करते हैं, तो आप हिंदुओ से क्यों कह रहे हैं कि वे उनसे (मुसलमानों से) खरीदें.' दरअसल, भारत इकलौता देश नहीं है, जहां हलाल मीट के व्यापार पर ज्यादातर मुस्लिम समुदाय का दबदबा है. और, अन्य समुदाय इस व्यापार से दूर हो गए हैं. क्योंकि, हलाल मीट के लिए जानवरों के गले को रेता जाता है. जबकि, झटका मीट में एक झटके से जानवरों की गर्दन अलग कर दी जाती है. 2020 से पहले भारत में भी मांस निर्यात के लिए हलाल मीट सर्टिफिकेशन की जरूरत पड़ती थी. लेकिन, भारत सरकार ने निर्यात होने वाले मीट के लिए 'हलाल' शब्द को हटाकर उसकी जगह आयातित देश के नियमों के हिसाब से काटे गए मांस को जोड़ दिया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जिन देशों में निर्यात के लिए हलाल सर्टिफिकेशन जरूरी है, वहां हलाल मीट ही जा रहा है. लेकिन, यह कागजों पर 'हलाल' शब्द के साथ मौजूद नहीं है.

सिखों में हलाल मीट नहीं 'झटका' का प्रचलन

सिख समुदाय में हलाल मीट खाने की मनाही है. और, वे झटका मीट खाते हैं. वहीं, हिंदुओं में भी गैर-शाकाहारी वर्ग के लोगों को हलाल मीट ही खाना पड़ता है. हलाल मीट का विरोध करने वालों की ओर से तर्क दिया जाता है कि गैर-मुस्लिम वर्ग के लोगों को जबरन हलाल मीट खिलाया जाता है. जबकि, उनके यहां हलाल मीट जैसी कोई अवधारणा ही नहीं है. इसके बावजूद बहुसंख्यक लोगों को हलाल मीट खाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. क्योंकि, इस व्यापार पर मुस्लिम समुदाय का कब्जा है. भारत में पिछले कुछ सालों में ये विरोध काफी बढ़ा है. कहा जा सकता है कि भारत सरकार ने देश की बहुसंख्यक हिंदू आबादी को ध्यान में रखते हुए ही निर्यात किए जाने वाले मीट से हलाल शब्द को हटाया था. बीते साल उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने एक प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए तय किया था कि मीट शॉप्स और रेस्टोरेंट को बताना होगा कि वो हलाल या झटका मीट में से क्या बेच और परोस रहे हैं?

Halal certification for veg foodभारत में भी उत्पादों की बिक्री के लिए भी हलाल सर्टिफिकेशन बहुत जरूरी है.

केवल मीट तक ही सीमित नही है 'हलाल'

अगर कोई ये सोच रहा है कि हलाल शब्द केवल मीट तक ही सीमित है, तो ये पूरी तरह से गलत है. हलाल सर्टिफिकेशन केवल मीट के लिए ही नहीं बल्कि निर्यात होने वाली खाने की चीजों दवाईयों तक के लिए भी जरूरी है. इतना ही नहीं, भारत में भी उत्पादों की बिक्री के लिए हलाल सर्टिफिकेशन बहुत जरूरी है. इसके लिए हलाल इंडिया नाम की सर्टिफिकेशन संस्था है, जो तमाम शाकाहारी उत्पादों को हलाल सर्टिफाइड का टैग देती है. दरअसल, हलाल इंडिया ये देखती है कि किसी भी खाने की चीज में कुछ ऐसा शामिल न हो, जो इस्लाम में हराम की कैटेगरी में आती हो. आमतौर पर हलाल सर्टिफिकेशन में सुअर के मांस और अल्कोहल से जुड़ी चीजों पर ध्यान दिया जाता है.

मुस्लिमों का विरोध धार्मिक मामला, लेकिन हिंदुओं का विरोध सांप्रदायिक क्यों?

मुस्लिमों में हलाल मीट को ही खाया जाता है. क्योंकि, यह मुस्लिमों की मान्यता है कि किसी जानवर को हलाल करने के लिए उसके गले को धीरे-धीरे रेतते समय विशेष आयतें पढ़ी जाती हैं. जिससे जानवर का मांस पवित्र हो जाता है. इसी के चलते दुनिया भर के मुस्लिम केवल हलाल मीट ही खाते हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो मुस्लिम समुदाय की ओर से झटका मीट का किए जाने का विरोध निजी धार्मिक मामला हो जाता है. लेकिन, भारत में अगर हिंदू हलाल का विरोध करता है, तो उसे सांप्रदायिक साबित करने में थोड़ा सा भी वक्त नहीं लगाया जाता है. सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हिंदुओं को मुस्लिम समुदाय की मान्यताओं के हिसाब से चलने को मजबूर क्यों किया जाता है?

#BycottHimalaya ट्रेंड पर कंपनी ने दिया जवाब

वहीं, हिमालया कंपनी के वायरल हो रही हलाल पॉलिसी के मामले की बात करें, तो अभिनेता परेश रावल द्वारा सोशल मीडिया पर #BycottHimalaya का पोस्ट करने के बाद इस ट्रेंड ने और जोर पकड़ लिया. हालांकि, सोशल मीडिया पर भारी विरोध के अब हिमालया कंपनी ने इस बारे में बयान जारी किया है. कंपनी ने लिखा है कि 'हिमालया वेलनेस कंपनी 100 से ज्यादा देशों में अपने प्रोडक्ट निर्यात करती है. कुछ देशों में निर्यात के लिए हलाल सर्टिफिकेशन जरूरी है. जिसके लिए हलाल सर्टिफिकेशन लिया जाता है. हम साफ करना चाहते हैं कि जैसा कुछ सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया जा रहा है, हिमालया के किसी भी प्रोडक्ट में मीट नही है. हलाल सर्टिफिकेशन का मतलब जानवरों से निकाली गई सामग्री से नहीं है.' लेकिन, अहम सवाल यही है कि भारत में मैदा या नमक जैसी शाकाहारी चीजों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेशन की जरूरत क्यों पड़ती है? 

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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