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Updated: 25 दिसम्बर, 2015 04:31 PM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
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इन दिनों दिल्ली में एक ही शब्द सुनने में आता है कि प्रदूषण बहुत हो गया है. जहां भी जाओ वहीं प्रदूषण. मेट्रो में प्रदूषण. दफ्तर में प्रदूषण. टीवी पर प्रदूषण. बच्चों के स्कूल होमवर्क में प्रदूषण. अखबारों में प्रदूषण. हमारी जिदंगी में प्रदूषण बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा था. जब दिल्ली में इतना प्रदूषण चल रहा था, और जिंदगी कई तरह की गैसों की मिलावट की शिकार हो चुकी थी, ऐसे में हमारी सरकार ने चीन से प्रेरणा ली.

अक्सर केंद्र और एलजी के हाथों मजबूर रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री को मौका मिल ही गया कि वह अपनी ताकत का एहसास उन लोगों को करा सकें जिन्होंने उन्हें वोट दिया है. उन्होंने गाड़ियों के ऑड-ईवन फॉर्मूले को लागू करने का फैसला लिया. उन्होंने कहा कि दिल्ली में 10,000 नए ऑटो जल्द चलेंगे. ढेरों बसें भी चलेंगी और स्कूल बसों को भी दफ्तर जाने वाले लोगों को ढोने के काम में लगाया जाएगा.

इस चक्कर में स्कूल पखवाड़े भर के लिए 1 से 15 जनवरी के बीच बंद रखे जाएंगे. औरतें गाड़ी चला सकेंगी. पहले से चल रहे ऑटो बदस्तूर चलते रहेंगे. टैक्सियां भी जैसे चल रही हैं, उसी तरह दौड़ती रहेंगी. गड्ढे जैसे खुदे हैं खुदे ही रहेंगे. पुल कछुआ चाल से बनते रहेंगे. थोड़ा सोचा तो पता चला कि दिल्ली सरकार का यह फैसला सिर्फ उन आम पुरुषों के लिए है जिनकी जिंदगी सिर्फ एक गाड़ी के सहारे चल रही थी.

इस पूरे प्रकरण से यही बात साबित होती है कि दिल्ली में सिर्फ पुरुषों की गाड़ियां ही प्रदूषण करती हैं क्योंकि उनके इस फॉर्मूले की जद में सिर्फ प्राइवेट गाड़ी रखने वाले पुरुष ही आते हैं. औरतों की सुरक्षा को ख्याल में रखना सर्वोपरि है लेकिन आम आदमी की बात करने वाली यह सरकार आदमी (पुरुष) के ही खिलाफ क्यों हो गई. क्या दिल्ली में प्रदूषण सिर्फ प्राइवेट गाड़ी रखने वाले पुरुष ही कर रहे हैं? क्या बाकी गाडियों से प्रदूषण नहीं होता? क्या यह जल्दबाजी में लिया गया एक अपरिपक्व फैसला नहीं है?

लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

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