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Updated: 19 अगस्त, 2017 01:25 PM
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हलाला ने पूरी दुनिया में मुस्लिम औरतों का जीना हराम कर रखा है. एक तरफ जहां इस अमानवीय प्रथा को बंद के लिए अब मुस्लिम औरतें लामबंद हो रही हैं तो वहीं दूसरी ओर धर्म के ठेकेदार भी इसे जारी रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं. हलाला जैसी प्रथा का समर्थन करना औरतों को इंसान नहीं जानवर समझना एक ही बात है.

'हलाला' का जन्म 'हलाल' से हुआ है. अरबी में हलाल का मतलब होता है न्यायसंगत, वैध या शास्त्रानुसार. शादी के संदर्भ में इसका मतलब ये हुआ कि हलाला के बाद कोई भी तलाकशुदा स्त्री हलाल (वैध) हो जाती है. इस्लाम कहता है कि कोई भी पुरुष तलाक देने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन अगर वो उसी स्त्री से दोबारा शादी करना चाहता है तो स्त्री को हलाला का पालन करना होगा.

Halala, Islamहलाला ने कई औरतों को बर्बाद किया

आखिर हलाला में होता क्या है? तो हलाला के तहत अगर किसी महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया है. लेकिन फिर वो उसी महिला के साथ दोबारा शादी करना चाहता है तो उस तलाकशुदा महिला को पहले किसी दूसरे आदमी से शादी करनी होगी. शादी का धर्म निभाना होगा यानी उस आदमी के साथ हमबिस्तर होना होगा. उसके बाद या तो वो पुरुष मर जाए या फिर वो उसे तलाक दे देता है. तब ही वो स्त्री वापस अपने पहले पति से शादी कर सकती है.

भारतीय मुस्लिम विद्वान मौलाना अशरफ अली थानवी (1863-1943) ने बाहिश्ति ज़ेवर नाम के इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं की पुस्तिका में इस प्रथा को विस्तार से सिखाया है. किताब में लिखा है- 'एक आदमी तलाक (राजी) देता है. उसके बाद वो अपनी उसी पत्नी के साथ फिर से वापस रहने लगता है. दो या चार साल बाद किसी उत्तेजना में आकर वो एक फिर अपनी पत्नी को तलाक (राजी) दे देता है. लेकिन जब उसका गुस्सा शांत होता है तो वो फिर से अपनी पत्नी के साथ रहने लगता है. अब उसके दो तलाक पूरे हो गए. इसके बाद वो जब भी तलाक देता है तो वो तीसरा तलाक ही माना जाएगा. तीसरे तलाक का मतलब है कि अब उसकी पत्नी के साथ शादी का उसका रिश्ता खत्म हो चुका है और वो दोनों एक-दुसरे के लिए हराम हो गए हैं. अगर अब वो फिर से उसी स्त्री से शादी करना चाहता है तो हलाला की प्रथा का पालन करना होगा.'

तलाक के मामले में हलाला का ये रिवाज लोगों को तलाक के गलत इस्तेमाल से रोकने के लिए बनाया गया है. ताकि पुरुष तलाक की इस प्रथा को अपनी पत्नी को परेशान करने के इरादे से प्रयोग करने से बचें और उनमें एक डर भी हो. शादी का मजाक ना बन जाए. ऐसा कहा जाता है कि ये प्रथा खुद पैगंबर मोहम्मद ने शुरु की थी. इस्लाम के पहले के दौर में ये रिवाज था कि पत्नी को चाहे जितनी भी बार तलाक दे दो और फिर उसके साथ वापस रहने आ जाओ. इसके जरिए महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव किया जाता था. पैगंबर ने इस कुप्रथा को बंद करने का फैसला किया और तीसरे तलाक बाद वापसी के रास्ते को बंद कर दिया.

पैगंबर ने तीसरे तलाक के इस नियम के जरिए महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को बंद किया और साफ संदेश दिया कि- 'महिलाओं पर अनंत काल तक इस तरह के अत्याचार बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे. इसलिए पति अगर सच में अपनी पत्नी के साथ रहना चाहता है तो उसे हलाला प्रथा का पालन करना पड़ेगा. अगर इसका पालन नहीं करते तो दो बार वापसी करने के बाद तीसरी बार वापसी का रास्ता बंद कर दिया जाएगा.'

मौलाना अशर्रफ अली थानवी आगे लिखते हैं- 'अगर पति और पत्नी तीसरी बार एक साथ रहने का फैसला करते हैं तो ये सिर्फ एक शर्त पर संभव है. महिला को किसी दूसरे आदमी से शादी करनी होगी और उसके साथ हमबिस्तर होना होगा. और हमबिस्तर होने के बाद अगर दूसरा पति महिला को तलाक दे देता है या फिर उसकी मौत हो जाती है. तब इस इद्दत की अवधि पूरा करके ही अपने पहले पति के पास जा सकती है. लेकिन अगर दूसरा पति हमबिस्तर होने के पहले ही मर जाता है या फिर तलाक दे देता है तो इस शादी का कोई मतलब नहीं होगा और औरत अपने पहले पति के पास वापस नहीं जा सकती.'

Halala, Islam

हालांकि इस कानून को मुस्लिम धर्म का एक छोटा सा समुदाय ही मानता है और इसे निकाह हलाला के नाम से जाना जाता है. कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें तलाक के बाद पति को अफसोस होता है और फिर वो अपनी पत्नी के साथ ही वापस रहना चाहता है. इसके लिए उन्हें निकाह हलाला का पालन करना होगा. तब पति अपनी पत्नी की शादी किसी दूसरे आदमी से करा देता है. इस शादी में ये करार किया जाता है कि वो दूसरा पुरुष शादी के अगले ही दिन उसकी पत्नी को तलाक दे देगा. इस शर्त के साथ किए गए निकाह को मुता कहा जाता है.

लेकिन इस्लाम में मुता को पाप माना जाता है और शरिया कानून इसकी इजाजत नहीं देता है. मतलब मुता के अंतर्गत शादी कराने वाले पुरुष को पापी कहा गया है. रशीदुन खलीफा के द्वितीय खलीफा उमर(579-644 ईस्वी) ने तो यहां तक कहा था कि- 'मैं ऐसे पुरुष को पत्थरों से मार-मारकर मौत के घाट उतार देता.'

आज के समय में निकाह हलाला को लोग अपने हिसाब से प्रयोग कर रहे हैं और धड़ल्ले से इसका दुरुपयोग किया जा रहा है. अक्टूबर 2016 में एक मुस्लिम महिला ने दावा किया था कि उसके पति के दोस्तों ने उसका रेप किया है. महिला का पति उसे जुए में हार गया था और इसलिए उसने उसे तलाक दे दिया. जिसके बाद अपनी बीवी को वापस पाने के लिए उसने अपने दोस्त को कहा कि वो उसकी बीवी के साथ हमबिस्तर हो जाए. आरोपी ने इसे 'निकाह हलाला' का नाम दिया, ताकि इसके बाद वो महिला अपने पति के पास वापस जा सके.

इसी कुप्रथा की बहती गंगा में पूरा नहाने के लिए अब सोशल मीडिया पर कई तरह के बेवसाइट भी बन गए हैं जो लोगों को निकाह हलाला की सर्विस दे रहे हैं. ट्विटर पर हलाल निकाह नाम से एक पेज है. ये कहता है- 'अस्सलाम वालैकुम अलहमदुल्लाह, ये मैरेज सर्विस दुनिया भर के मुस्लिमों के लिए है. आइए इसका फायदा उठाइए.' ये लड़िकयों को शादी के पुरुष मुहैया कराते हैं.

ये प्रथा कितनी अमानवीय है इसके बारे में सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. महिला को आत्मा तक तार-तार कर देने वाले ऐसे कानूनों को बंद कर देना चाहिए.

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