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Updated: 11 जनवरी, 2023 06:04 PM
ज्योतिरंजन पाठक
ज्योतिरंजन पाठक
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जापान सरकार ने महानगरों को संतुलित करने के उद्देशय से एक अहम फैसला लिया है. जापान सरकार के निर्णय में यह कहा गया है कि राजधानी टोक्यो सहित अन्य महानगरों को छोड़ने के लिए प्रति बच्चा 6 लाख 36 हजार पैरेंट्स को दिया जाएगा ताकि वे ग्रामीण क्षेत्र में अपना आशियाना बना सके. दरअसल जापान भी चीन और भारत की तरह महानगरों में बढ़ती जनसंख्या से परेशान है. नगरों में इस बढ़ती आबादी को नियंत्रण में लाने के लिए जापान सरकार ने अनोखा व दिलचस्प तरीका अजमाया है. एक रिपोर्ट के अनुसार टोक्यो दुनिया का सबसे बड़ा शहर है जिसकी जनसंख्या 3.8 करोड़ है. इसी तरह भारत के महानगरों व नगरों की जनसंख्या में भी काफी तेजी से इजाफा हो रहा है और नगरों में बढ़ती भीड़ भारत के लिए भी खतरा बनता जा रहा है. हम गंभीर शहरीकरण की समस्या के तरफ बढ़ रहे हैं. अगर समय रहते जापान जैसा नगरों से आबादी संतुलित करने का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया तो आम जीवन के लिए शहरों में रहना मुश्किल हो जाएगा.

पिछले कुछ दशकों में ग्रामीण आबादी शहरों में स्थंतारित हुई है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में दुनिया की आधी आबादी शहरों में रह रही है. और रिपोर्ट में यह भी भी बताया गया कि 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों और शहरों में रहने लगेगी और विश्व की आबादी का 70 फीसदी हिस्सा शहरों में रह रहा होगा. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट को मानें तो भारत शहरीकरण, अघोषित अस्त - व्यस्त है.

Japan, Population, India, China, Children, Problems, City, Villages, Environmentशहरीकरण की समस्या के लिए जो जापान ने किया वो प्रेरणादायक है

प्रदूषित झीलें, तालाब, नदियां, ट्रैफिक जाम, बारिश में उफनती नालें, वायु प्रदूषण, सड़क हादसा, आवारा पशुओं का सड़क पर आवाजाही से होने वाली रोड एक्सीडेंट, बिजली संकट, पानी की समस्या,कूड़ों का ढेर, गंदी बस्तियों का विस्तार व बड़ी –बड़ी मंजिलों से घिरी अंधकारमय छोटी से संकरी गली और उसी में रहने को मजबूर आम लोग जो नगर को असंतुलित होने का उदाहरण पेश कर रहे हैं.

असंतुलित शहरीरण का नाकारत्मक प्रभाव विकास और निर्माण परियोजनाओं को भी सवालों के घेरे में खड़ा करती है. शहरी संस्थाओं में सबसे महत्वपूर्ण इकाई नगर निगम होता है जिसकी जिम्मेवारी होती है कि बिजली,पानी, सड़क, यातायात, संचार, स्वच्छता ,पर्यावरण संरक्षण, जल निकास व्यवस्था को दुरुस्त रखे. परंतु देश में नगरों की नगर निगम उक्त व्यवस्थाओं को सुचारु रूप से चलाने में असमर्थ साबित हो रहा है.

हालांकि कई राज्य बढ़ती नगरीय आबादी को देखते हुए व्यवस्थित तरीके से प्रबंधन करने के उदेश्य से नगर निगम संस्था को विभाजित करने का फैसला लिया गया. परंतु असल समस्या पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि बढ़ती आबादी नगरों को असंतुलित करने में ज़िम्मेवार है. असंतुलित  और अनयोजित शहरी समस्या देश के समझ अनेक चुनौतियां पैदा कर रही है. नगरों में कच्ची बस्तियां बड़ी संख्या में स्थापित हो चुकी हैं ,जहां निवास करने वाले लोग शहरी जनसंख्या से संबन्धित उच्च व माध्यम वर्गीय जरूरतों के भांति अवश्यकताओं को पूरा करते हुए गरीबी के शिकार हो जाते हैं और तीव्र प्रधौगिकी विकास में अनेक परंपरागत धंधा करने वालों के लिए खतरा भी बनते हैं.

शहर में व्यक्तियों का आवास या आवासहीनता को समाप्त करना एक गंभीर समस्या है . सरकार निर्धन वर्ग के व्यक्तियों की अवसीय अवश्यकतों की पूर्ति नहीं कर पाई है. वर्ष 2011 में झुगी –झोपड़ी में निवास करने वाले 1.10 करोड़ से अधिक परिवारों के साथ महाराष्ट्र में झुगी –झोपड़ी में निवास करने वालों की बड़ी संख्या मौजूद थी . जिसके बाद आंध्रा प्रदेश में 1 करोड़ तथा पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश 60 लाख का स्थान था .

दिल्ली में 17 लाख से भी अधिक निवासी झुग्गी –झोपड़ी में निवास करते हैं ( द हिन्दू,1 अक्टूबर 2013) इसका तात्पर्य यह हुआ कि देश की कुल परिवारों में से 17 फीसदी परिवार घरों से वंचित है . राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ ) के मुताबिक ,करीब ग्रामीण परिवारों का 28 प्रतिशत भाग तथा शहरी परिवारों का 6 प्रतिशत भाग आधे –पक्के घरों में निवास करता है और ग्रामीण परिवारों का लगभग 17 प्रतिशत एवं शहरी परिवारों का 2 प्रतिशत भाग कच्चे घरों में निवास करता है.

ऐसे में सवाल है कि क्या सरकार के स्मार्ट शहर की कल्पना धरी की धरी रह जाएगी ? निम्न वर्ग या हाशिये वाले वर्ग का कोई स्थान नहीं होगा ? क्या शहरों में ही निवास करना जरूरी होता है ?क्या शहर में बहुमंजिला इमारतों के इस जंजाल में फंसकर रहना और मोबाइल और कंप्यूटर द्वारा वैचारिक आदान –प्रदान का माध्यम होना ही जीवन है . जब ग्रामीण क्षेत्रों में तमाम सुविधाओं के होने के बावजूद वहां निवास करने में क्या दिक्कत है ?

आज हर गांव में बिजली ,पानी ,सड़क बच्चों का पढ़ाई की व्यवस्था हो चुकी है ,तो गांव  के तरफ बसने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. क्या खेती को उधोग की तरह विकास करके वहां रोजगार को नहीं बढ़ाना चाहिए ? जब गांव गांव  में ही रोजगार होगा, शिक्षा का व्यवस्था होगा, बिजली होगी, यातायात के साधना दुरुस्त होंगे, लोगों के जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी होगी, तब जाकर लोगों के मन से शहर का मोहभंग हो जाएगा और स्मार्ट सिटी बनाने के लिए हम कामयाब हो जाएंगे. साथ ही पर्यावरण के दृष्टिकोण से गांव का जीवन ही सर्वोतम है.

ऐसे में यह बात भी कहा जा सकता है कि स्मार्ट शहर के लिए यह भी आवश्यक है कि नागरिक भी आधुनिक तकनीक के ज्ञान से युक्त स्मार्ट नागरिक भी होना जरूरी है. नगरीय जनसंख्या बढ़ने से उपलब्ध संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रही है जिसके करण भोजन, पानी, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, रोजगार आदि क्षेत्रों में चुनौतियां उत्पन्न हो रही है. ऐसे में जापान सरकार द्वारा अनोखा उपाय बढ़ती शहरीकरण की समस्या को हल कर सकती है.

भारत में कुछ ऐसे तरीके निकालने होंगे जिससे स्वेच्छापूर्वक नागरिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहने को तैयार हो जाएं और स्मार्ट सिटी की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जा सके और बढ़ी नगरीकरण से उत्पन्न चुनौतियों से निबटने में सहायक हो सके, ऐसे में सरकार को गहन चिंतन करने की अवश्यकता है.

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लेखक

ज्योतिरंजन पाठक ज्योतिरंजन पाठक @1374901269660665

मैं उपन्यासकार साथ ही हिन्दी अखबार में सामयिक मुद्दे पर आर्टिकल लिखता हूँ ।

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