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Updated: 07 जुलाई, 2021 08:39 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी

दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी

चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी

बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी

खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

देश भक्ति और वीरता से लबरेज क्या खूबसूरत पंक्तियां लिखी हैं सुभद्रा कुमारी चौहान ने. आज भी जब कभी इस कविता को पढ़ा जाए तो शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार होता है. इसके अलावा नेता जी सुभाष चंद्र बोस का वो स्टेटमेंट जिसमें उन्होंने खून लेकर आज़ादी देने की बात की थी. आज भी जब ये नजरों के सामने से गुजरता है तो महसूस यही होता है कि अगर आज हमारे बीच अंग्रेजी हुकूमत होती तो हम उसकी ईंट से ईंट बजा डालते. बात क्रांति और अग्रेजी हुकूमत की चली है तो हम गांधी, नेहरू, आज़ाद, राजगुरु, सुखदेव भगत सिंह, बेगम हजरत महल, लाला लाजपत राय और दीगर क्रांतिकारियों को नहीं भूल सकते. ये लोग जेल गए. सजा भी पाई मगर इन्होंने कभी अंग्रेजी हुकूमत से किसी चीज की डिमांड नहीं की. तब भले ही फुटबॉल खेला जाता रहा हो. लेकिन यदि इन लोगों के दौर में टीवी होता तो ये लोग किसी भी सूरत में अंग्रेजी हुकूमत से अपनी बैरक में टीवी लगवाने की मांग न करते. हम भारतीय ही उपरोक्त क्रांतिकारियों को क्रांतिकारियों की संज्ञा देते हैं मगर उस जमाने के अंग्रेजों के लिए ये लोग ऐसे क्रिमिनल्स थे जो सरकार के खिलाफ थे. मुख्तार अंसारी क्रांतिकारी नहीं हैं, क्रिमिनल हैं और उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया है. अब जब उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया है तो फिर जेल में कैसा प्रिविलेज?

Mukhtar Ansari, Bahubali, Jail, Conviction, UEFA EURO 2020, Football, TV, Crimeजेल में टीवी की डिमांड करने वाले मुख्तार अंसारी कहीं खुद को क्रांतिकारी तो नहीं समझने लग गए हैं

असल में हुआ कुछ यूं है कि यूपी की बांदा जेल में बंद बाहुबली बीएसपी विधायक मुख्तार अंसारी ने एक बार फिर पेशी पर जज से टीवी की मांग दोहराई है. मुख्तार टीवी क्यों मांग रहे हैं इसके पीछे का जो तर्क है वो अपने में दिलचस्प है. असल में हुआ कुछ यूं है कि ऐंम्बुलेंस मामले में वर्चुअल पेशी हुई है. पेशी के दौरान मुख्तार अंसारी ने खिलाड़ी बताया है और सीजेएम राकेश से यूरोप में चल रहे यूरो-2020 फुटबॉल चैंपियनशिप (UEFA EURO 2020) देखने के लिए बैरक में टेलीविजन लगावाने का अनुरोध किया है.

फर्जी ऐम्बुलेंस मामले में जेल में सजा काट रहे माफ़िया मुख्तार अंसारी के बचाव पक्ष के वकील रणधीर सुमन ने जो जानकारी दी है उसके अनुसार मुख्तार अंसारी ने कोर्ट से कहा कि पूरे प्रदेश में कैदियों को टेलीविजन की सुविधाएं दिलाई गई हैं, लेकिन मेरी टीवी की सुविधा छीन ली गई है. मैं प्लेयर (खिलाड़ी) आदमी हूं, यूरो 2020 फुटबॉल कप (UEFA EURO 2020) चल रहा है. मुझे टेलीविजन उपलब्ध करा दीजिए. मैं जीवन भर आपका ऋणी रहूंगा.

होने को तो वर्चुअल पेशी में कोर्ट में बहुत कुछ हुआ है तमाम तरह की बातें भी हुईं हैं लेकिन हमारा सारा फोकस उन बातों पर नहीं बल्कि मुख्तार की टीवी डिमांड पर है. अधिकारों का हवाला देकर मुख्तार ने टीवी मांगा है और दलीलें दी है. बात सीधी और साफ है. मुख्तार ने क्या दलील दी है? वो खिलाड़ी हों या न हों सब अलग बातें हैं. मगर उन्हें ख़ुद इस बात को सोचना चाहिए कि वो तफरीह मजाक में जेल में नहीं डाले गए हैं. उन पर गंभीर आरोप हैं और वो सजायाफ्ता हैं.

मुख्तार की जैसी हरकतें हैं या ये कहें कि जिस हिसाब से वो अतरंगी डिमांड कर रहे हैं महसूस यही हो रहा है कि उन्हें अपने किये का कोई पछतावा नहीं है. जेल में टीवी की इस डिमांड के बाद एक बड़ा सवाल ये भी है कि, नियमों की खिल्ली उड़ाते हुए, लगातार कानून की आंख में धूल झोंकने वाले मुख़्तार जैसे लोग आखिर अपने को समझते क्या हैं? आखिर क्यों नहीं इन्हें कानून का खौफ है? क्यों नहीं ले लोग इस बात को समझते कि ये अपराधी हैं? 

कोर्ट उनकी फरियाद मानते हुए उन्हें टीवी मुहैया कराता हैं. या इनकी डिमांड को ख़ारिज कर दिया जाता है. इसका जवाब तो वक़्त की गर्त में छुपा है. लेकिन जो चीज हमारे सामने है वो है मुख़्तार और मुख़्तार जैसे लोगों का खुद को गरीबों का मसीहा या ये कहें कि रोबिन हुड समझना. ये खुद को महान और दूसरों से अलग दर्शाने की सोच ही है जो मुख़्तार जैसों को प्रिविलेज लेने का दिव्य ज्ञान देती है. 

कुलमिलाकर UEFA EURO 2020 के लिए टीवी की डिमांड करने वाले मुख्तार या मुख्तार जैसे लोग होश रहते इस बात को समझ लें कि वो लोग आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के कारण जेल में नहीं हैं. उन्होंने अपराध किया है. मजलूमों के अधिकारों का हनन किया है. बात चूंकि मुख़्तार अंसारी की चली है तो वो चाहे कितने बड़े दबंग क्यों न हों लेकिन हकीकत और कानून दोनों के ही लिहाज से वो अपराधी हैं. इसलिए शर्म का तकाजा भी यही कहता है कि यदि वो जेल में हैं तो अपराधी की तरह रहें. मुख़्तार अपने को क्रांतिकारी या रॉबिन हुड समझने की भूल न करें.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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