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Updated: 06 जुलाई, 2021 09:34 PM
प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार
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इन दिनों अंतरिक्ष की सैर करने के लिए दो दिग्गज अरबपतियों के बीच इस कदर होड़ लगी हुई है मानो उनके लिए जमीन कम पड़ गई हो. कुछ समय पहले ही अमेजन के संस्थापक जेफ बेजोस ने 20 जुलाई को ब्‍लू ऑरिजिन के न्यू शेपर्ड की पहली स्पेस फ्लाइट में शामिल होने का एलान किया था. अगर ऐसा होता इस साल अंतरिक्ष में जाने वाले बेजोस पहले अरबपति होते, लेकिन अब उन्हें एक दूसरे कारोबारी से चुनौती मिली है.

हाल ही में प्राइवेट स्पेस एजेंसी वर्जिन गैलेक्टिक के संस्थापक सर रिचर्ड ब्रैनसन ने बेजोस से पहले 11 जुलाई को ही स्पेसशिप-2 नामक एक विशेष यान के जरिए अंतरिक्ष की सैर पर जाने की घोषणा की है. अंतरिक्ष विज्ञानियों की मानें तो अगर रिचर्ड ब्रैनसन और जेफ बेजोस की ये उड़ाने सफल हो जाती हैं तो जल्द ही पूरी तस्वीर बदल सकती है. वैसे भी अगले साल तक वर्जिन गैलेक्टिक की अमेरिका में कॉमर्शियल स्‍पेस ट्रैवल की शुरुवात करने की योजना है, जिसके तहत लोगों से पैसे लेकर अंतरिक्ष की सैर कराई जाएगी. जब तक परिभाषा में कोई फेरबदल नहीं होता तब तक प्रत्येक अंतरिक्ष पर्यटक को ‘अंतरिक्ष यात्री’ होने का रुतबा भी हासिल होगा. इस उपलब्धि को पाने के लिए दुनिया भर के रोमांच प्रिय अरबपति लाखों डॉलर खर्च करने में कोई गुरेज नहीं करेंगे. यह तो उन लोगों के लिए एक वैश्विक ‘स्टेटस सिंबल’ हासिल करने जैसा ही होगा.

Space, Tourism, Jeff Bezos, America, Nasa, Lifestyle, Rich, India, Passengerजैसे समीकरण बन रहे हैं अलग अलग कंपनियां भी समझ चुकी हैं कि स्पेस ट्रेवल करोड़ों डॉलर का कारोबार है

ज्यादातर लोगों के लिए अंतरिक्ष की सैर एक ऐसे सपने के जैसा है, जो कभी भी पूरा नहीं हो सकता. 28 अप्रैल 2001 को डेनिस टीटो को पहला अंतरिक्ष पर्यटक होने का गौरव हासिल हुआ. टीटो कोई पेशेवर अंतरिक्ष यात्री नहीं हैं. टीटो रूस के एक धनी व्यवसायी हैं, उन्होने सोयुज अंतरिक्ष यान में एक सीट के लिए रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस और अमेरिकी कंपनी स्पेस एडवेंचर लिमिटेड को 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान किया था. उनकी 10 दिवसीय रोमांचक यात्रा 6 मई 2001 को खत्म हुई और वे सुरक्षित पृथ्वी पर वापस लौट आए.

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा लंबे समय से अंतरिक्ष पर्यटकों की मेजबानी करने में संकोच करता रहा है, इसलिए रूस ने 1990 और 2000 के दशक में शीत युद्ध के बाद धन के स्रोतों की तलाश में कई दौलतमंद शख्सियतों को पैसे के एवज में अंतरिक्ष की सैर कराई. हालांकि पिछले 20 वर्षों में सिर्फ सात लोगों ने ही पैसे देकर अंतरिक्ष पर्यटन का आनंद लिया है, लेकिन यह संभावना जताई जा रही है कि यह संख्या अगले 12 महीनों में दुगुनी हो सकती है! ऐसा लगता है कि निजी स्पेस कंपनियों के उदय से अमीर लोगों को अंतरिक्ष का अनुभव कराना आसान हो जाएगा.

जहां रिचर्ड ब्रैनसन की कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक और जेफ बेज़ोस की स्पेस कंपनी ब्‍लू ऑरिजिन पर्यटकों को अंतरिक्ष के छोर तक का सफर कराना चाहती है, वहीं विलियम ई. बोइंग द्वारा स्थापित कंपनी ‘बोइंग’ और इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स नासा के सहयोग से बनाए गए स्पेस कैप्सूलों में टूरिस्टों को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर ले जाना चाहती है. 2023 तक स्पेसएक्स पैसे लेकर लोगों को चाँद की सैर कराना चाहती है. नासा ने भी पर्यटन के उद्देश्य से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को 2021-22 तक खोलने का निर्णय किया है.

इस फैसले के पीछे की वजह यह माना जा रहा है कि स्पेस स्टेशन का रख-रखाव (संचालन) नासा के लिए बहुत खर्चीला साबित हो रहा है, लिहाजा वह वहाँ पर कॉमर्शियल एक्टिविटीज़ को प्रोत्साहित करना चाहती है. अंतरिक्ष नीति विश्लेषक वेंडी व्हिटमैन कोब्बे के मुताबिक वर्जिन गैलेक्टिक, ब्लू ऑरिजिन और स्पेसएक्स जैसी कंपनियों की हालिया घोषणाएं एक ऐसे युग की शुरुआत हैं जिसमें ज्यादा-ज्यादा लोग अंतरिक्ष पर्यटन का लुत्फ उठा सकते हैं. अंतरिक्ष में मानवता के भविष्य का निर्माण करने की उम्मीद में, ये कंपनियां जनसामान्य के लिए अंतरिक्ष यात्रा की सुरक्षा और विश्वसनीयता दोनों को प्रदर्शित करने को इच्छुक हैं.

इन कंपनियों का दावा है कि धरती की ख़ूबसूरती के आगे जहां और भी हैं. पहले स्पेस टूरिस्ट डेनिस टीटो की तरह अंतरिक्ष की उड़ाने (ऑर्बिटल लॉंचिंग) खासा महंगी हैं, इसकी वजह यह है कि एक रॉकेट को पृथ्वी की कक्षा से बाहर दाखिल होने में काफी ईंधन और रफ्तार की दरकार होती है. इसकी बजाय एक सस्ती संभावना सबऑर्बिटल लॉंचिंग है. मतलब आर्टिफ़िशियल सैटेलाइट्स की कक्षा से नीचे की यात्रा. इसमें यह होगा कि एक रॉकेट अंतरिक्ष के किनारे तक पर्याप्त ऊंचाई हासिल करने के बाद वापस नीचे आ जाएगा.

यह उसी तरह का उड़ान है जिसे वर्जिन गैलेक्टिक और ब्लू ऑरिजिन अब पेश कर रही है. सबऑर्बिटल ट्रिप पर जाने वाले यात्रियों को अंतरिक्ष की भारहीनता और अविश्वसनीय दृश्यों का भी अनुभव होगा, और टूरिस्ट नीचे धीरे-धीरे घूमती हुई नीली-भूरी-सुनहरी पृथ्वी को भी निहार सकेंगे. अंतरिक्ष कार्यक्रमों से जुड़ी अनेक व्यावसायिक कंपनियों को इस क्षेत्र में सिरमौर बनने और अंतरिक्ष पर्यटन पर बेहिचक काम करने के लिए निश्चित रूप से प्रोत्साहित करेगा.

फिर बात चाहे पृथ्वी की निचली कक्षा में जाने की हो या अंतरिक्ष यात्रियों को क्षुद्रग्रह, चांद या फिर मंगल तक पहुंचाने की. प्राइवेट स्पेस एजेंसियां इसके लिए कमर कस रही हैं. लब्बोलुबाब यह है कि अब अंतरिक्ष की यात्रा सरकारों के कब्जे से धीरे-धीरे बाहर हो रही है और निजी कंपनियों के जरिए अंतरिक्ष में लोगों को ले जाने की घड़ी भी नजदीक आ गई है. वैसे भी नासा का स्पेस शटल प्रोग्राम 2012 में ही पूरी तरह से खत्म हो चुका है. यानी उसके सभी स्पेस शटल रिटायर हो गए हैं.

ऐसे में नासा को भी अंतरिक्ष यात्रियों को लाने-ले जाने के लिए निजी कंपनियों के स्पेसक्राफ्ट्स पर निर्भर रहना होगा. अंतरिक्ष की यात्रा हमें बहुत आकर्षित करती है, पर प्रश्न है कि आखिर ऐसी यात्राओं का उद्देश्य क्या है. क्या इसका मकसद अमीरों को अंतरिक्ष के सैर-सपाटे के लिए रिझाकर कमाई करना है, लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए प्रेरित करना है या फिर भारी वित्तीय संकटों से जूझ रही सरकारी स्पेस एजेंसियों को स्पेस एक्स्प्लोरेशन के लिए आर्थिक और वैज्ञानिक संसाधन जुटाने में सहयोग करना है?

आज आलम यह है कि तमाम परेशानियों से पार जाकर, प्रोजेक्ट की देरी को पीछे छोड़कर, कुछ कंपनियां अंतरिक्ष की सैर का सपना दिखा रही हैं. यहां तक कि स्पेस टूर के पैकेज बेच रही हैं. अंतरिक्ष यात्राओं के मामले में पिछली सदी के उत्तरार्ध में शुरू हुआ हम इंसानों का सफर फिलहाल अपनी पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह- चंद्रमा तक ही ठहरा हुआ है. मौजूदा स्पेसक्राफ्ट्स में इतनी क्षमता ही नहीं है कि वे अपने साथ इंसान को चंद्रमा से पार ले जाकर सकुशल पृथ्वी पर वापस लौट सकें.

वास्तव में अंतरिक्ष यात्राओं और अंतरिक्ष अन्वेषण पर बढ़ रहे भारी खर्च के कारण सरकारें इस काम से हाथ खींचने लगी हैं क्योंकि अंतरिक्ष से कुछ ऐसी उपलब्धियों की संभावनाएं लगभग खत्म गई हैं जिनसे अरबों-खरबों डॉलर की कमाई का कोई रास्ता खुलता हो. खगोलीय पिंडों से खनिजों और मूल्यवान धातुओं की खुदाई की बात हम आए दिन सुनते रहते हैं, मगर वह काम इतना खर्चीला और झंझट भरा है कि कोई सरकार इसकी शुरुआत करने को राजी नहीं है.

अपोलो मिशन के तहत अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच चांद की ओर कुल नौ अंतरिक्ष यान भेजे और 6 बार इंसान को चांद पर उतारा. दरअसल अपोलो मिशन कोई वैज्ञानिक मिशन नहीं था, इसका मुख्य उद्देश्य राजनैतिक था, और वो था- सोवियत संघ को अंतरिक्ष कार्यक्रमो में पछाड़ना. गौरतलब है कि अपोलो मिशन के अंतर्गत गए लगभग सभी चंद्रयात्री सैनिक थे न कि वैज्ञानिक, सिर्फ एक वैज्ञानिक हैरिसन श्मिट को अपोलो-17 द्वारा चांद पर जाने का मौका मिला था और वे चांद पर गए पहले और आखिरी वैज्ञानिक हैं.

शीतयुद्ध के समय में अंतरिक्ष अनुसंधान के बहाने मिसाइलों के विकास का जो काम किया जाता था, अब वे सारे उद्देश्य भी हासिल किए जा चुके हैं. ऐसे में सरकारें स्पेस टूरिज्म से लेकर सुदूर अंतरिक्ष की खोजबीन तक के लिए सरकारी खजाने के इस्तेमाल से बचना चाहती हैं. इसलिए सरकारें प्राइवेट एजेंसियों को मौका देकर खर्चे में कटौती कर सकती हैं. रिचर्ड ब्रैनसन का भी यह कहना है है कि ‘हम एक नए अंतरिक्ष युग में प्रवेश कर रहे हैं और मुझे विश्वास है कि हमें एक नई वैश्विक एकता बनाने में मदद मिलेगी.’

स्पेसएक्स के संस्थापक इलॉन मस्क का दावा है कि अगर सब कुछ ठीक ठाक रहा तो 2025 तक स्पेसएक्स इस स्थिति में आ जाएगा कि वह एक ही साल में हजारों अमीर पर्यटकों को अंतरिक्ष की सैर करा सके और इसके बदले भारी-भरकम कमाई कर सके. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि रिचर्ड ब्रैनसन की वर्जिन गैलेक्टिक और जेफ बेजोस की ब्‍लू ऑरिजिन टूरिस्टों को अंतरिक्ष के छोर पर ले जाने की योजना पर गंभीरतापूर्वक काम कर रही हैं.

अंतरिक्ष पर्यटन की असीम संभावनाओं को देखते हुए कुछ कंपनियों ने अंतरिक्ष में होटल बनाने की योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है. ओरायन स्पान नामक कंपनी 2022 तक अपना स्पेस होटल लॉन्च करना चाहती है और 2023 तक उसमें मेहमानों की मेजमानी का इरादा रखती है. गेटवे फाउंडेशन नामक कंपनी चांद पर 2025 तक होटल लॉन्च करना चाहती है. बहरहाल, हम यह कह सकते हैं कि अंतरिक्ष एक बार फिर इंसान के सपनों की नई मंजिल बन गया है. और निजी कंपनियों के कारण मंजिल तक दौड़ तेज होने जा रही है. अब वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब धरती पर एक से बढ़ कर एक मनोरम स्थलों के सैर-सपाटे की बातें पुरानी हो जाएंगी और लोग अंतरिक्ष भ्रमण का आनंद उठा सकेंगे.

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लेखक

प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार @2175488646036357

लेखक साइंस ब्लॉगर हैं और विज्ञान से ही जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं.

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