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Updated: 23 अगस्त, 2021 09:12 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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तालिबान बड़ा ही शातिर है, एक तरफ तो वह दुनियां को यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह अब पहले से बदल गया है. दूसरी तरफ वह अजीब फैसले लेकर अपना असली चेहरा भी दिखा रहा है. दिल दुखाने वाली तमाम खबरों के बीच तालिबान ने आदेश दिया है कि अब लड़के और लड़कियां एक साथ एक कक्षा में नहीं बैठ सकते हैं, यानी एक ही क्लास में दोनों साथ बैठकर पढ़ नहीं सकते. सोचिए आखिर यह कैसी आजादी है? तालिबान ने यह आदेश सरकारी और प्राइवेट दोनों विश्वविद्यालयों को दिया है.

मतलब यह कि दुनियां के सामने तो तालिबान कुछ और है और असलियत में कुछ और...यह तालिबान दुनियां के सामने मीठी-मीठी बातें करने का नाटक करता है लेकिन अफगानिस्तान की आवाम के सामने नकाब हटाकर अपना असली चेहरा दिखाकर उनके मन में डर पैदा करता है. वहां के लोग समझ ही नहीं पा रहे कि आखिर वे करें तो क्या करें.

एक तरफ तालिबान बोलता है कि यहां की महिलाओं को आजादी मिलेगी दूसरी तरफ बुर्का ना पहनने पर महिलाओं को गोली मार देता है. तालिबान एक तरफ लड़कियों को उच्च शिक्षा देने की आजादी की बात करता है तो दूसरी तरफ पढ़ने जाती एक लड़की को रोककर गोली भी मार देता है. तालिबान, एक तरफ महिलाओं की नौकरी करने की आजादी की बात करता है दूसरी ओर महिला नेताओं के सवाल पर कैमरा भी बंद करवा देता है, तालिबान महिला हितों की बात करता है और दूसरी और लड़कियों को खींचकर उनके घरों से जबरदस्ती उठा ले जाता है.

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हेरात प्रांत में बैठक करने के बाद तालिबान ने कहा कि स्कूलों में को-एजुकेशन जारी रखने का मतलब नहीं है. इसलिए हम इसे खत्म करने का आदेश दे रहे हैं. इस बैठक में आदेश को जारी करने से पहले तालिबान के अधिकारियों ने विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और निजी संस्थानों के मालिकों के साथ तीन घंटे तक बैठक की थी.

इससे पहले अफगानिस्तान में स्कूली स्तर पर लड़के-लड़कियां एक साथ और अलग-अलग कक्षाओं में भी पढ़ते थे. यहां के सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में को-एजुकेशन प्रणाली लागू है लेकिन अब यह संभव नहीं हो पाएगा. जब 2001 में तालिबान शासन खत्म हुआ तो को-एजुकेशन को शैक्षणिक सुधार का हिस्सा माना गया.

वहीं जिन विषयों में लड़कियों की संख्या कम होगी वहां वे एडमिशन भी नहीं ले पाएंगी, साथ में लड़के-लड़कियां पढ़ते थे तो बात अलग थी. जिस तालिबान में लड़कियों को शिक्षित करने की जरूरत है वहां के यह हाल है. इतना ही नहीं इन्हें पढ़ाने वाले पुरुष भी बुजुर्ग होने चाहिए.

बड़ी हैरानी होती है यह सोचकर कि जिन तालिबानियों को लड़के और लड़कियों को एक क्लास में बैठकर स्कूल में पढ़ने से भी परेशानी हो रही है, वे महिलाओं की आजादी की बात आखिर कैसे कर लेते हैं. मतलब साफ है कि इनकी बड़ी-बड़ी बातें और नया तालिबान का नया नियम मजह एक दिखावा है, एक छलावा है. ये तो बड़ी कोशिश कर रहे हैं कि इनकी बातें कहीं ना पहुंचे लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में कहां तक वहां के हालात को छिपा पाएंगे.

अफगानिस्तान की महिलाओं को पहले पता तो था कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं, लेकिन अब तालिबान कह कुछ और रहा है और कर कुछ और रहा. मतलब यह है कि आपके सामने पकवान रखकर यह कहा जाए कि आप खा लें लेकिन असल में आपको खाना नहीं है. अगर आपने खा लिया तो फिर गए काम से. यही दहशत तालिबान ने मचा रखा है.

इस बैठक में तालिबान का प्रतिनिधित्व कर रहे अफगानिस्तान इस्लामिक अमीरात के उच्च शिक्षा प्रमुख मुल्ला फरीद का कहना है कि को एजुुकेशन को समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि यह समाज में सभी बुराइयों की जड़ है. इसके बारे में अब आप क्या कहेंगे? मतलब साफ है कि तालिबान कभी बदल नहीं सकता और वो जो कर रहा है वह कम से कम इस्लाम तो नहीं है…

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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