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Updated: 26 सितम्बर, 2017 06:26 PM
खुशदीप सहगल
खुशदीप सहगल
  @khushdeepsehgal
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महात्मा गांधी की 150वीं जयंती, 2 अक्टूबर 2019 तक देश को ‘खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त’ बनाने का लक्ष्य रखा गया था. जैसे-जैसे डेडलाइन निकट आ रही है, वैसे-वैसे कुछ राज्यों में अधिकारी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए किसी भी हथकंडे को अपनाने को तैयार हैं. खुले में शौच करने वालों के साथ ऐसा बर्ताव भी किया जा रहा है, जो मानवीय गरिमा और आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला हैं.

झारखंड की राजधानी रांची के नगर निगम ने शहर को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए इसी साल 30 सितंबर का लक्ष्य रखा है. इसी अभियान के तहत 24 सितंबर को सुबह नगर निगम की टीम निकली और खुले में शौच करने वाले 20 लोगों को पकड़ कर उनकी लुंगी खोल कर छीन ली. निगम ने इस अभियान को ‘हल्ला बोल, लुंगी खोल’ का नाम दिया. इन्हें लुंगी ये कसम लेने के बाद दी कि वे खुले में कभी शौच नहीं करेंगे. रांची नगर निगम के मुताबिक इस अभियान के तहत पानी की बोतल छीनने, उठक-बैठक लगवाने और शहर से दूर छोड़ आने जैसे तरीके भी आजमाएं जाएंगे.

स्वच्छ भारत मिशन, शौचालय, शौचखुले में शौचहाल ही में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में खुले में शौच करने वाले करीब दर्जन भर लोगों को आवारा पशुओं को पकड़ने वाली गाड़ी में बंद कर शहर भर में घुमाया गया था. मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले अलिराजपुर में जिला प्रशासन ने आबकारी विभाग के साथ मिलकर जिले में सरकारी ठेकों पर बिकने वाली शराब की सभी बोतलों पर स्टीकर चिपकवाए. इस स्टिकर की तस्वीर में एक तरफ कुत्ते को और एक तरफ इनसान को शौच करते दिखाया गया. साथ ही स्टिकर पर लिखा था- 'जानवर शौचालय का प्रयोग नहीं कर सकते... लेकिन आप तो कर सकते हैं न... क्या आपने अपना शौचालय बनवाया?' छत्तीसगढ़ में ही एक सरपंच ने आदेश दिया कि जो लोग घर में शौचालय नहीं बनाएंगे वो सरकारी राशन की दुकानों से सामान लेने के हक़दार नहीं रहेंगे.

मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में एक शिक्षक को इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उसकी पत्नी खुले में शौच के लिए गई थी. मध्य प्रदेश के ही बैतूल जिले के रंभाखेड़ी गांव मे पंचायत प्रमुख ने घर में शौचालय नहीं बनवाने वाले 57 परिवारों पर प्रति सदस्य 7500 रुपए हर महीना के हिसाब से जुर्माना लगाया है. एक परिवार में 10 सदस्य हैं तो उसे 75,000 रुपए जुर्माना देना होगा. मध्य प्रदेश में ही ऐसे क़ानून का प्रावधान किया जा रहा है कि घर में शौचालय नहीं होने पर पंचायत चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी.

राजस्थान के प्रतापगढ़ में निगम की टीम के लोगों ने मोहम्मद जफर नाम के सामाजिक कार्यकर्ता की बेतहाशा पिटाई कर दी. क्योंकि उसने शौच करती एक महिला की तस्वीर खींचने का विरोध किया था. जफर की बाद में अस्पताल में मौत हो गई. उत्तर प्रदेश के बिजनौर में खुले में शौच करने वालों पर फ्लैशलाइट डालने जैसा तरीका आजमाया जा रहा है. हरियाणा सरकार ने हाल में घोषणा की है कि लोगों पर निगरानी रखने के लिए ड्रोन्स का इस्तेमाल किया जाएगा.

यानि लोगों को खुले में शौच से रोकने के लिए ‘साम-दाम-दंड-भेद’ सभी तरह के तरीके अपनाए जा रहे हैं. इंदिरा गांधी ने कभी कहा था कि उनके पास जादू की छड़ी नहीं है जो वो घुमाएं और देश से महंगाई दूर हो जाए. यही बात स्वच्छता के इस मिशन के लिए भी कही जा सकती है कि कोई जादू की छड़ी नहीं है जो घुमाई जाए और पूरा देश स्वच्छ हो जाए. ये समस्या देश की करीब आधी आबादी के व्यवहार से जुड़ी है. इसलिए उन्हें प्यार से ही इसके लिए समझाया जा सकता है. डंडे के ज़ोर पर नहीं. डंडा चलाने का नतीजा क्या होता है ये देश सत्तर के दशक में संजय गांधी की ओर से शुरू किए जबरन परिवार नियोजन (नसबंदी) के दौरान देख चुका है. इसी संदर्भ में दूसरा सकारात्मक उदाहरण भी है. वो है देश में पोलियो अभियान की कामयाबी का. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के निर्देशन में ये अभियान चलाया गया. बेशक इसमें लंबा वक्त लगा लेकिन अंतत: वो वांछित परिणाम मिल गए जिनके लिए ये शुरू किया गया था.

ये दो उदाहरण स्वच्छता मिशन को लेकर भी ये हमारे लिए सीख और प्रेरणा दोनों हो सकते हैं. रास्ता हमें चुनना है. शार्ट कट ये है कि हमने एक तारीख तय कर दी है और उस दिन तक हर हाल में भारत को ‘खुले में शौच’ से मुक्त कराना है. अब भले ही इसके लिए कुछ भी किया जाए. इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले ये सोचना भी ज़रूरी है कि हमारे देश में साक्षरता दर कितनी है. स्वच्छ भारत की दिशा में अगर सबसे अधिक कुछ कारगर हो सकता है तो वो है- सामुदायिक नेतृत्व में पूर्ण सेनिटेशन (Community Led Total Sanitation-CLTS).

सामुदायिक और सहकार की भावना कितना क्रांतिकारी बदलाव कर सकती है, ये हमने वर्गीज़ कुरियन जैसे प्रणेता के नेतृत्व में आणंद में अमूल दुग्ध क्रांति के दौरान देखा. दूध की मार्केटिंग तो सरकारी स्तर पर कई और राज्यों में भी होती है, लेकिन वो अमूल की तरह एक राष्ट्रीय मिशन का रूप क्यों नहीं ले पाई. फर्क कुरियन की ईमानदारी के साथ भ्रष्टाचार रहित उस सामूहिक भावना का है, जहां हर घरेलू दुग्ध उत्पादक ने अमूल मिशन को सफल बनाना अपनी खुद की ज़िम्मेदारी समझा. ऐसा ही कुछ देश में स्वच्छता अभियान के साथ भी होना चाहिए. यहां ये भी समझना चाहिए कि गांवों में खुले में शौच जाने वाले लोगों को ये आदत सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत में मिली है. ये आधारभूत विकास से ज्यादा व्यावहारिक और सामाजिक परिवेश से जुड़ी समस्या है. करोड़ों लोगों को इसके लिए दिल से तैयार करने के वास्ते जोर जबरदस्ती नहीं बल्कि अभिनव तरीकों का प्रयोग ही श्रेयस्कर रहेगा.

Community Led Total Sanitation- CLTS भी ऐसा ही कदम है. इसके तहत किसी समुदाय (ग्राम सभा, पंचायत, गांव के लोग) को एकत्र किया जाता है. फिर किसी फील्ड को-ऑर्डिनेटर के जरिए उन्हें खुले में शौच से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी तमाम पहलुओं के बारे में समझाया जाता है. उन्हें आसान भाषा में समझाया जा सकता है कि खुले में शौच नहीं जाने से कितनी बीमारियों से खुद को और बच्चों को बचाया जा सकता है. साथ ही अस्पताल और दवाइयों पर होने वाले खर्च को बचाकर कितना आर्थिक लाभ भी हो सकता है.

यहां लगातार समुदाय के साथ संवाद की जरूरत है. उन्हें सेलेब्रिटीज का सहयोग लेकर इस दिशा में एजुकेशन फिल्में प्रोजेक्टर पर दिखाई जा सकती है. कैसे ये मुद्दा महिलाओं के सम्मान से भी जुड़ा है. कैसे हर साल स्वच्छता की कमी से डायरिया जैसी बीमारियों से लाखों शिशुओं को मौत के मुंह में जाने से रोका जा सकता है? कोशिश रहे कि ऐसा संदेश हर जगह हवा में तैरने लगे कि घर में शौचालय होना सामाजिक प्रतिष्ठा का सवाल है. और जब इसके लिए सरकार भी सब्सिडी दे रही है तो फिर इसे बनाने में हर्ज भी क्या है.

CLTS में लगातार संवाद से पूरा समुदाय सामूहिक रूप से फैसला करता है कि खुले में शौच करने को रोकना उसकी अपनी ज़िम्मेदारी है. फिर समुदाय खुद ही देखता है कि गांव के हर सदस्य को अच्छी तरह समझ आ जाए कि शौचालय का इस्तेमाल कितना लाभकारी है. जहां तक सरकार का सवाल है वो अपने स्तर पर समुदाय को इस काम में अपनी तरफ से पूरा प्रोत्साहन दे. साथ ही ये भी देखे कि उस गांव में पानी जैसे बुनियादी चीज़ की कमी है तो उसे दूर करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए जाए. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट को कैसे गांव के ही आर्थिक लाभ में तब्दील किया जाए, इस पर भी काम किया जाना चाहिए. जो समुदाय इस दिशा में त्वरित और अच्छा काम करके दिखाए, उसे जिला, राज्य, देश स्तर पर सम्मानित भी किया जाए. जिससे दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरणा मिले.

CLTS के तहत जो भी बदलाव होगा वो टिकाऊ और दीर्घकालिक होगा. इसमें समुदाय खुद ही निगरानी समितियां बना सकता है. जो लोग बहुत समझाने पर भी नहीं मानते उन्हें फूल देना या माला पहनाने जैसे गांधीगीरी के रास्तों को भी अपनाया जा सकता है. खुले में शौच जाने वालों के नामों को नोटिस बोर्ड पर लिखना या लाउड स्पीकर पर उनके नामों का एलान करना. ये सभी अहिंसावादी तरीके हैं लेकिन इनमें ‘नेमिंग एंड शेमिंग’ का भी पुट है. ये खुद समुदाय की ओर से ही किया जाता है और अंतिम निर्णय व्यक्ति पर ही छोड़ दिया जाता है.

जिस तरह कभी बापू ने ‘सत्याग्रह’ का मंत्र देकर देश के लिए आजादी की जमीन तैयार की. उसी तरह अब देश को गंदगी से आजादी दिलाने के लिए ‘स्वच्छताग्रह’ की आवश्यकता है और इसके लिए गांधीगीरी से अच्छा रास्ता और कोई नहीं हो सकता.

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खुशदीप सहगल खुशदीप सहगल @khushdeepsehgal

लेखक आजतक में न्यूज़ एडिटर हैं

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