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Updated: 04 मई, 2023 05:30 PM
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लेकिन शर्तें लागू हैं. जो हुआ सो हुआ और मंजूर भी है क्योंकि सुप्रीम जो है। परंतु सवाल उठता है मन में संवैधानिक बेंच ने सात साल लगा दिए फैसला लेने के लिए और आठ महीने तो फैसला सुरक्षित रखने के बाद भी ले लिए ! सुप्रीम कोर्ट के सामने कई याचिकाएं लंबित थी जिसमें कहा गया था कि क्या आपसी सहमति से तलाक के लिए भी इंतजार करना जरूरी है? मांग थी कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए जरूरी वेटिंग पीरियड 'से' या 'में' छूट क्यों न दी जाए ? आज जब फैसला आया है तो कई पीड़ित जोड़े पास्ट ट्रेवल कर अफ़सोस अवश्य ही कर रहे होंगे कि बड़ी देर कर दी मेहरबां आते आते... पता नहीं क्यों इतना समय लगा दिया या फिर क्या हिचक थी ? लेकिन आखिरकार अहम फैसला दे ही दिया अगर पति-पत्नी के रिश्ते में सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर कोर्ट तलाक को मंजूरी दे सकता है. पांच न्यायमूर्तियों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि अगर संबंधों को जोड़ना संभव ही न हो, तो कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकारों के जरिए मामले में दखल दे सकता है. साथ ही इस तरह के मामले में तलाक के लिए 6 महीने इंतजार की कानूनी बाध्यता भी जरूरी नहीं है.

Supreme Court, Verdict, Hearing, Divorce, Law, Wife, Husband, Relationshipसुप्रीम कोर्ट ने आखिर लंबे समय बाद तलाक को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर ही दिया

1955 के हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 क्या है ? इसमें उन स्थितियों का जिक्र है जब तलाक लिया जा सकता है. इसके अलावा इसमें आपसी सहमति से तलाक का भी जिक्र है. इस कानून की धारा 13B में आपसी सहमति से तलाक का जिक्र है. हालांकि, इस धारा के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए तभी आवेदन किया जा सकता है जब शादी को कम से कम एक साल हो गए हैं. इसके अलावा, इस धारा में ये भी प्रावधान है कि फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए कम से कम 6 महीने का समय देता है और अगर फिर भी सुलह नहीं होती है तो तलाक हो जाता है.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सवाल यही था कि जब आपसी सहमति से तलाक हो रहा है तो 6 महीने इंतजार करने की जरूरत क्या है? हालांकि, बेंच ने यह भी विचार करने का फैसला किया कि जब शादी में सुलह की गुंजाइश ना बची हो तो क्या विवाह को खत्म किया जा सकता है? दरअसल शीर्ष न्यायालय का धर्मसंकट स्पेशल पब्लिक पॉलिसी के तहत बेसिक सिद्धांतों को लेकर था. फिर न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता दवे का स्पष्ट मत था कि अनुच्छेद 142 एक स्वतंत्र प्रावधान नहीं है.

यह अनुच्छेद 131, 132, 133, 134 A, 136 से जुड़ा है, जो SC को विभिन्न मामलों को सुनने और निर्णय लेने का अधिकार देता है. लेकिन जब कोई कानून (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम) विशेष रूप से किसी विशेष अदालत (पारिवारिक न्यायालय) को किसी मामले की सुनवाई करने की शक्ति प्रदान करता है, तो सर्वोच्च न्यायालय किसी मामले की सुनवाई के लिए निचली अदालत की शक्ति को नहीं ले सकता और ऐसा करना मौजूदा कानून के विपरीत होने की वजह से न्यायसंगत नहीं होगा.

अब इस फैसले के माध्यम से माननीय शीर्ष न्यायालय ने कतिपय परिस्थितियों के तहत, जब पति-पत्नी के बीच रिश्ते इतने बिगड़ जाएं कि उनका पटरी पर आना संभव न हो, वैवाहिक विवादों की सुनवाई के लिए पारिवारिक न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को अपने हाथ में ले लिया है. तदनुसार कोर्ट ने गाइडलाइन्स भी दे दी है जिनमें उन वजहों का जिक्र है जिनके आधार पर पति-पत्नी का रिश्ता कभी पटरी पर ना आने वाला माना जा सकता है.

कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइन में रखरखाव, गुजारा भत्ता और बच्चों के अधिकारों के संबंध में भी बताया गया है. निर्णय से प्रेरणा पाकर 'चट मंगनी पट ब्याह और अब झट तलाक' टाइटल तो दे दिया, लेकिन तय समझिये ये 'भानुमती का पिटारा' खोलने जा रहा है. तलाक की कार्यवाही को पूरा होने में जितना समय लगता है, बड़ी संख्या तलाक चाहने वालों की सुप्रीम कोर्ट का रुख जो करेगी. सच्चे झूठे आधार भी बना लिए जाएंगे IBM ( irretrievable breakdown of marriage) यानी 'शादी का असाध्य रूप से टूटना' क्वालीफाई करवाने के लिए.

ऑन ए लाइटर नोट क्यों ना कहें एक तो सेपरेशन की कॉस्ट ही स्काई हाई हो जाएगी और दूजे वे, जो सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंच पाएंगे, स्वयं को कोसेंगे शादी ही क्यों की ?

लेखक

prakash kumar jain prakash kumar jain @prakash.jain.5688

Once a work alcoholic starting career from a cost accountant turned marketeer finally turned novice writer. Gradually, I gained expertise and now ever ready to express myself about daily happenings be it politics or social or legal or even films/web series for which I do imbibe various  conversations and ideas surfing online or viewing all sorts of contents including live sessions as well .

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