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Updated: 24 फरवरी, 2022 04:52 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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इस दुनिया में अगर कोई विषय सबसे आसान है, तो वह है गणित यानी मैथ्स. सामने रखे आंकड़ों के जरिये गणित के सवाल आसानी से हल कर लिए जाते हैं, बस आपको सटीक फॉर्मूला पता हो. यही फॉर्मूला अन्य चीजों पर भी लगे, तो उनके पीछे की गणित भी सामने आ जाती है. एक आंकड़े के अनुसार, भारत में करीब 7 करोड़ लोग मधुमेह यानी शुगर की बीमारी से ग्रस्त हैं. केवल इन 7 करोड़ मरीजों की बात की जाए, तो बाजार में 'शुगर फ्री' चीजों का अंबार लग चुका है. और, इन शुगर फ्री चीजों का इस्तेमाल केवल मधुमेह रोगी ही नहीं अन्य लोग भी करते हैं. वहीं, इस बीमारी के इलाज की दवाएं और जांच किट की कीमतें भी कम नही हैं. दरअसल, इस तमाम गुणा-गणित का आशय दवा कंपनियों के साथ अन्य कंपनियों की पैसे की भूख है. दवा कंपनी, थोक विक्रेता, रिटेलर और डॉक्टरों के बीच होने वाले गठजोड़ से बाजार में एक रुपये की कीमत वाली दवा के भी दाम 100 रुपये पहुंच जाते हैं. दवा कंपनियों की ओर से डॉक्टरों को दिए जाने वाले प्रलोभन किसी से छिपे नही हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत में ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं के नाम पर मुनाफे का यह खेल अरबों में है. और, डॉक्टरों को मिलने वाले गिफ्ट और महंगी दवाइयों के कुचक्र पर ही सुप्रीम कोर्ट ने अपनी हालिया टिप्पणी के जरिये एक तीर से दो निशाने साधे हैं.

Supreme Court on Gifts to Doctorsआज के समय में इलाज कराना उतना महंगा नहीं है. जितना इलाज के पहले और बाद में दवाओं पर होना वाला खर्च है.

दवा कंपनियों को गिफ्ट पर नहीं मिलेगी टैक्स की छूट

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई में डॉक्टरों को प्रोत्साहन देने के नाम पर दिए जाने वाले 'गिफ्ट' पर दवा कंपनी की आयकर में कटौती की मांग को खारिज कर दिया. दवा कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि 'डॉक्टरों को इस तरह के गिफ्ट स्वीकार करना कानून के दायरे में प्रतिबंधित है, लेकिन इसे किसी भी कानून के तहत अपराध नहीं ठहराया गया है, इसलिए कंपनियां इन गिफ्ट पर खर्च की गई रकम के मद में कर लाभ हासिल करने की हकदार हैं.' जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को गिफ्ट देना कानून के दायरे में प्रतिबंधित है. और, ऐसी स्थिति में आयकर अधिनियम की धारा 37(1) के तहत टैक्स का लाभ नहीं लिया जा सकता है. अगर ऐसा किया जाता है, तो यह पूरी तरह से सार्वजनिक नीति को प्रभावित करेगा.' वैसे, यहां ये बताने की जरूरत नहीं है कि डॉक्टरों को गिफ्ट के नाम पर दवा कंपनियों की ओर से सोने के सिक्कों से लेकर अंतरराष्ट्रीय यात्राओं को फाइनेंस किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के जरिये डॉक्टरों को गिफ्ट देने को कानूनी तौर पर निषेध भी बताया है. और, ये भी साफ कर दिया कि दवा कंपनियां को इन गिफ्ट पर खर्च की गई रकम पर आयकर छूट का लाभ नहीं मिल सकता है.

दवा कंपनियों और डॉक्टरों का गठजोड़

आज के समय में इलाज कराना उतना महंगा नहीं है. जितना इलाज के पहले और बाद में दवाओं पर होना वाला खर्च है. क्योंकि, किसी भी बीमारी के इलाज में 70 फीसदी खर्च दवाओं पर ही होती है. आज भी देश की एक बड़ी आबादी केवल दवाईयों का खर्च न उठा पाने की वजह से बीमारियों के इलाज से वंचित है. सैकड़ों-हजारों खबरें सामने आती रही हैं, जहां बीमारियों से जूझते परिवार अपनी पूरी संपत्ति ही दवाओं के खर्च पर खो चुके हैं. वहीं, कई लोगों को दवाओं के खर्च की वजह से ही इलाज भी बीच में छोड़ना पड़ जाता है. हालांकि, अब महंगी दवाईयों के विकल्प के तौर पर जेनरिक दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. बावजूद इसके लीवर, किडनी, हार्ट से जुड़ी बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाईयों की कीमत आसमान छू रही हैं. और, इसकी वजह केवल इतनी है कि सस्ती दवाओं की जगह ब्रांडेड दवाईयों को तरजीह दी जाती है. और, ब्रांडेड दवाओं को ये तरजीह केवल डॉक्टरों के लिखे पर्चे से ही मिलती है. आज भी सस्ती जेनरिक दवाओं के लोकप्रिय न होने की सबसे बड़ी वजह दवा कंपनियों और डॉक्टरों का ये गठजोड़ ही है. दवा कंपनियां मुनाफा बनाने के लिए डॉक्टरों को गिफ्ट के नाम पर प्रलोभन देती हैं. और, ये मकड़जाल अलग-अलग तरीकों से बढ़ता ही जा रहा है.

अहम सवाल- कैसे लगेगी लगाम?

जेनरिक और एथिकल ब्रांडेड दवाओं में कोई अंतर नहीं होता है. दोनों ही दवाओं में मेडिसिन के केमिकल फॉर्मूले से लेकर बनने तक एक ही प्रक्रिया अपनाई जाती है. लेकिन, दवा कंपनियों द्वारा मार्केटिंग और ब्रांडिंग में खर्च किए जाने वाले पैसों की वजह से इन दवाओं की कीमत कई गुना बढ़ जाती है. गंभीर बीमारियों की बात करें, तो ये फर्क हजार गुना तक बढ़ जाता है. क्योंकि, इन दवाओं को प्रिसक्राइब करने के लिए दवा कंपनियां डॉक्टरों को महंगे गिफ्ट से लेकर कमीशन तक देती हैं. नेशनल ड्रग प्राइस कंट्रोल अथॉरिटी इन कीमतों पर लगाम लगाने की कोशिश करती रहती है. लेकिन, दवा कंपनियां अपनी दवाओं को अधिकतम कीमतों पर ही बेचती हैं. जेनरिक यानी सस्ती दवाओं के साथ एक कमी ये भी है कि लोगों के बीच इन दवाओं को लेकर अभी पूरी तरह से जागरुकता नहीं आ पाई है. क्योंकि, कई बार मरीजों के परिजन ही इन जेनरिक दवाओं के सस्ता होने की वजह से इनकी गुणवत्ता पर शक करते हैं. वैसे, सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान टिप्पणी दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच के इस गठजोड़ के लिए एक बड़ा झटका कहा जा सकता है. हालांकि, अब ये संभव है कि दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए जाने वाले गिफ्ट की वजह से दवाओं की कीमत में और इजाफा हो जाए. भारत सरकार को इस गठजोड़ को पूरी तरह से तोड़ने के लिए कुछ कड़े कदम उठाने होंगे. लेकिन, ऐसा कब होगा, ये देखने वाली बात होगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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