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Updated: 15 अक्टूबर, 2019 08:17 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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Abortion और miscarriage लोगों के लिए ये बहुत सामान्य से शब्द हैं. इन शब्दों को बोलने में भले ही इनकी गंभीरता न समझ आती हो, लेकिन इन शब्दों से जीवन और मृत्यु जुड़े हुए हैं. और इसीलिए ये शब्द एक मां के लिए बेहद संवेदनशील हो जाते हैं. किसी अपने को खो देना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल होता है, लेकिन एक अजन्मे को खो देने का दुख एक मां ही बेहतर जानती है.

शायद बहुत से लोगों को ये पता नहीं होगा कि 15 अक्टूबर का दिन National Pregnancy and Infant Loss Remembrance Day के रूप में जाना जाता है. यानी ये वो दिन है जो उन लोगों के लिए बहुत मायने रखता है जिन्होंने अपने अजन्मे बच्चों को abortion, miscarriage में या फिर उनके पैदा होते ही खो दिया. दुनिया में ये दिन उन अजन्मे बच्चों के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है जो जन्मदिन मनाने के लिए कभी जीवित ही नहीं रह सके.  

आप भले ही ये कह दें कि गर्भपात हो गया लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कनें मां की धड़कनों के साथ जुड़ जाती हैं. ऐसे में अगर किसी भी वजह से वो बच्चा नहीं रहे तो मां उसके लिए शोक ही मनाती है. महिलाएं कई दिनों तक उस मनोस्थिति से बाहर नहीं आ पातीं.

abortionगर्भ गिरना या गिराया जाना- महिला के लिए दोनो स्थितियां एक जैसी हैं

ऑस्ट्रैलिया में सीनेटर Kristina Keneally इन्हीं महिलाओं के लिए कंपनियों से पेड लीव की मांग कर रही हैं. उनका कहना है कि मृत बच्चे को जन्म देने वाली माता और पिता शारीरिक और मानसिक रूप से इस हालत में नहीं होते कि वो घटना के बाद शानदार काम कर सकें. इस दुख से उबरने के लिए उन्हें पेड छुट्टियां मिलनी चाहिए.

अच्छी बात है कि Kristina जैसी महिलाएं इस गंभीर विषय पर संघर्ष कर रही हैं. वरना भारत में तो आज भी इस विषय पर कोई बात नहीं करता जबकि हर साल भारत में 15.6 मिलियन गर्भपात होते हैं.

गर्भपात की वजह जो भी रही हो, चाहे वो अपनी मर्जी से करवाया हुआ abortion हो, या फिर वो एक miscarriage हो. लेकिन एक बच्चा जो जन्म ले सकता था वो जीवित नहीं रह सका. और इस गम का मातम कुछ महिलाएं ता उम्र मनाती हैं.

गर्भ गिरना या गिराया जाना- महिला के लिए दोनो स्थितियां एकसमान

हालांकि आज abortion पर बहुत बहस होती है, कई देशों में आज भी महिलाओं को अपनी मर्जी से abortion कराने की इजाजत नहीं है, जबकि भारत में कोई भी महिला 20 हफ्ते तक abortion करवा सकती है. लेकिन जो महिलाएं किसी भी वजह से गर्भपात करवाती हैं या उनका गर्भपात हो जाता है उनका दुख लोगों को दिखाई नहीं देता.

कुछ महिलाएं भले ही परेशानी से बचने के लिए अपने इस सही फैसले पर आश्वस्त हो जाती हों, लेकिन बहुत सी महिलाओं के लिए ये घटना नकारात्मकता ले आती है. pregnancy loss किसी भी तरह को हो उससे महिलाओं में हार्मोनल बदलाव होते हैं. यानी गर्भपात चाहे सोच समझकर करवाया गया हो या फिर वो अपने आप गहो गया हो, महिलाओं में नकारात्मक भावनाओं का आना स्वाभाविक होता है. इन नकारात्मक भावनाओं में- अपराध बोध, गुस्सा, शर्म, दुख या अफसोस, आत्म विश्वास का खोना, अकेलापन, नींद न आना, बुरे सपने आना, आत्महत्या के ख्याल आना बहुत कॉमन है.

abortionगर्भपात के बाद महिलाएं अपराध बोध की शिकार हो जाती हैं

दोनों ही तरह के मामलों में अपराध बोध होगा ही. एक मां को हमेशा ये चीज कचोटती रहती है कि उसने एक अजन्मे की हत्या की है, जबकि स्वतः हुए गर्भपात में भी महिला खुद को ही दोषी मानती है कि काश वो अपना ध्यान रखती तो बच्चा बच जाता. महिलाओं के मन में अपराध बोध के लिए धार्मिक मान्यताएं भी बहुत काम करती हैं. कैथोलिक धर्म में जहां गर्भ में पल रहे बच्चे की जान को सबसे ऊपर माना जाता है वहीं भारत में भी अगर गर्भपात करवाया जाता है तो उसे जीव हत्या का नाम दिया जाता है. यानी पाप का भागी माना जाता है. और इसी वजह से महिलाए इस गिल्ट से उम्र भर बाहर नहीं आ पातीं.

बहुत सी महिलाएं खाली वक्त में यही सोचती रहती हैं कि वो बच्चा अगर होता तो क्या वो लड़का होता या लड़की होती. वो आज कितना बड़ा हो गया होता. कई बार तो महिलाएं इन ख्यालों में इतना खो जाती हैं कि सपने में भी उन्हें अपना अजन्मा बच्चा दिखाई देता है, बोलता दिखता है. और तब ये भावनाएं और भी बढ़ जाती हैं.  

हालांकि समय के साथ-साथ ये नकारात्मक भावनाएं खत्म भी हो जाती हैं. खासकर जब और बच्चे हो जाते हैं. और वैसे भी हमारे यहां की महिलाएं तो ऐसा मांओं को संबल देने में बहुत मदद करती हैं, वो अपने एक्सपीरियंस बता बता कर महिला को इस दुख से बाहर ले आती हैं.

abortion हर साल भारत में करीब 15.6 मिलियन गर्भपात होते हैं

लेकिन गर्भपात के बाद का समय वास्तव में काफी महत्वपूर्ण होता है. इसमें महिलाएं डिप्रेशन तक में जा सकती हैं. और जिन महिलाओं को डिप्रेशन होता है वो दुखी रहती हैं, सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है, ध्यान नहीं लगा पातीं, चिड़चिड़ी हो जाती हैं, ऊर्जा की कमी, बहुत नींद आना या फिर नींद नहीं आना, सेक्स में रुचि न लेना, पहले जो काम अच्छे लगते थे उसमें रुचि नही होना जैसे लक्षण बहुत कॉमन होते हैं. इसे Post Abortion Stress Syndrome (PASS) भी कहा जाता है. और किसी भी महिला में अगर इस तरह के लक्षण हैं तो समझ जाइए कि उसे परिवार, अपनों और दोस्तों के सपोर्ट की बहुत जरूरत है. ये साथ दुख को कम करता है जिससे ये दुख डिप्रेशन का रूप नहीं लेता.

किसी महिला के साथ अगर ये सब होता है तो उसे सांत्वना देने के लिए यही कहा जाता है कि जो हो गया उसे भूल जाओ और आने वाले के बारे में सोचो, लेकिन अपने रक्त से बना अपना ही एक हिस्सा अगर अलग हो जाए तो उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. 15 अक्टूबर का दिन ऐसी महिलाओं को हिम्मत बंधाने के लिए ही सही, ऐसे पेरेंट्स के दुख को बांटने के लिए ही सही, उन अजन्मों को याद करने के लिए ही सही, प्रेगनेंसी को लेकर सचेत करने के लिए ही सही, लेकिन है तो. 

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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