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Updated: 07 जुलाई, 2015 12:29 PM
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दिल्ली विश्वविद्यालय का एक प्रतिष्ठित कॉलेज. नाम है - सेंट स्टीफेंस. 12वीं में 98, 99 या 100 फीसदी अंक लाने वाले विद्यार्थियों के लिए ही इसके दरवाजे खुलते हैं. एक तरह से कहिए तो बौद्धिक आरक्षण के कोटे वाले विद्यार्थी ही इसकी कक्षाओं की शोभा बढ़ाते हैं. पिछले कुछ दिनों से हालांकि इस संस्थान की छवि धूमिल हो रही है. संस्थान के मुखिया यानी प्रिंसिपल की बौद्धिक क्षमता पर लोगों को शक होने लगा है. कारण है यौन शोषण की शिकार एक छात्रा के मामले को दबाना, वो भी किसके लिए? ईंट-पत्थर से बनी संस्थान की प्रतिष्ठा बचाने मात्र के लिए!!!

तकनीक में ढीले प्रिंसिपल थंपू
एक ऑडियो टेप ने सेंट स्टीफेंस के प्रिंसिपल डॉ. वॉल्सन थंपू की पोल खोल दी. कैसे? यहां से पीएचडी कर रहीं एक छात्रा ने कॉलेज के प्रोफेसर सतीश कुमार पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. इसी मामले में डॉ. थंपू का एक कथित ऑडियो सामने आया है. इस टेप में पीड़ित छात्रा अपने प्रिंसिपल से बातचीत कर रही हैं. शिकायत कर रही हैं. प्रिंसिपल शायद तकनीक में ढीले होंगे, उन्होंने फोन पर ही छात्रा को शिकायत वापस लेने के लिए कह दिया. यह भी नहीं सोचा कि मोबाइल पर बातचीत रिकॉर्ड भी की जा सकती है.

धमकी तक दे डाली
डॉ. थंपू यहीं नहीं रुके. उन्होंने पीड़ित छात्रा को धमकी भी दे डाली. धमकी ऐसी कि करियर दांव पर लग जाए. उन्होंने कहा - भगवान पर भरोसा करो, मुझ पर भरोसा करो. अपना आरोप वापस ले लो. आज ही... नहीं तो दिक्कत होगी. हमेशा हंसते रहो, तुम एक जवान लड़की हो, तुम्हें हमेशा खुश रहना चाहिए. तुम्हारा लक्ष्य पीएचडी की थीसिस पूरी करने पर होना चाहिए. अपना आरोप वापस ले लो नहीं तो दिक्कत होगी.

शिक्षा का मंदिर होता है कॉलेज या विद्यालय
ये मैं नहीं कह रहा हूं. मुझे तो मंदिर-मस्जिद में विश्वास भी नहीं है. कुछ शिक्षकों ने ही यह बात कही थी - तब जब मैं शैतानियां करता था. शैतानियां कैसी - स्कूल से बीच में ही भाग कर सिनेमा देखने चले जाना, टीम में सिलेक्ट नहीं हुआ तो फुटबॉल में ही छेद कर देना, नो स्मोकिंग के बोर्ड के ठीक नीचे धुआं उड़ाना... ऐसी शैतानियां करता था. जब पकड़ा जाता, शिक्षा का मंदिर वाला फेमस डायलॉग सुना दिया जाता, पिटाई होती सो अलग. इसी बात पर मैं अटक गया हूं - अगर शैतानियां करना मंदिर को भ्रष्ट करना है तो आप क्या कर रहे हैं प्रिंसिपल डॉ. थंपू!!! इतने बड़े पद पर बैठे हैं आप. आपको तो आरोप को आरोप मानना चाहिए था. कानून और प्रशासन इस मामले पर अपना काम करते. जब फैसला आता तब आप प्रोफेसर या पीड़ित छात्रा दोनों में से एक को बाहर निकाल फेंकते. लेकिन नहीं. आपको अपने हाथ और जुबान गंदी करनी थी. ईंट-पत्थर से बने संस्थान की 'प्रतिष्ठा' बचानी थी.

घोंट डाला शिक्षा के मंदिर का गला
साल का एक दिन आप जैसे लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण होता है. कॉलेज का पहला दिन -ओरिएंटेशन डे. इस दिन आप मतलब प्रिंसिपल को बच्चे बड़े ध्यान से सुनते हैं. सुनना पड़ता है - नैतिकता, ईमानदारी, सच्चाई, कर्तव्यनिष्ठा, पढ़ाई, करियर... ब्ला-ब्ला-ब्ला... बहुत लंबी हांकते हैं उस दिन आप लोग. बाकि के 364 दिन आपकी बातों को कैंपस में फूंक मार दी जाती है. देवांश मेहता का नाम तो याद होगा आपको. उन्होंने तो न सिर्फ आपकी बातों को फूंक मारी बल्कि हाई कोर्ट से फटकार भी लगवाई. वक्त है, सुधर जाइए. इस यौन उत्पीड़न मामले में कई छात्र देवांश बनने को तैयार हैं... हर दिन आपके दफ्तर के सामने विरोध बुलंद हो रहा है. विद्या का मंदिर विद्यार्थियों के लिए है. आपके सहयोगी स्टाफ या प्रतिष्ठित इमारत के लिए नहीं. ओह! शायद आप भी मेरी तरह उसे विद्या का मंदिर नहीं मानते हैं...

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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