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Updated: 09 अक्टूबर, 2021 10:32 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत में सड़क पर गड्डों को लेकर नियम-कानून है कि अगर कोई एजेंसी सड़क पर गड्डे खुदवाती है और डायवर्जन नहीं लगाती है, तो ही उसे दोषी माना जा सकता है. वरना सड़क पर आमतौर पर किसी अन्य कारणों से गड्डों की वजह से हुई मौत का दोषी वाहन चालक को ही माना जाएगा. हाल ही में इंदौर में रिंगरोड पर एक गड्डे के चलते स्कूटी स्लिप होने की वजह से हुई एक छात्रा की मौत पर उसके मुंहबोले भाई पर ही 304ए के तहत मामला दर्ज कर दिया गया. सड़क पर गड्डों की वजह से हुए इस हादसे को बताने की वजह केवल इतनी सी है कि भारत में सड़कों के गड्डों को खत्म करने के लिए बहुत प्रयास नही होते हैं. लेकिन, जल्द ही देश के वाहनों के हॉर्न और सायरन को बदलने के लिए कानून आने वाला है. अपने अनोखे प्रयोगों और आइडिया को लेकर मशहूर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Union Transport Minister Nitin Gadkari) ने एक कार्यक्रम के दौरान बताया कि सरकार एक ऐसा कानून बनाने की सोच रही है, जिसमें गाड़ियों के हॉर्न में शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों यानी तबला, हारमोनियम, सितार, बांसुरी की आवाज का इस्तेमाल किया जाएगा. ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिहाज से नितिन गडकरी का ये आइडिया बहुत ही अच्छा लगता है. लेकिन, क्या इस फैसले से भारत में सड़कों की स्थिति सुधर जाएगी?

ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का ये फैसला गलत नहीं लगता है. पूरी दुनिया में जितने वाहन हैं, भारत में उसका मात्र एक फीसदी ही हैं. लेकिन, ध्वनि प्रदूषण की बात की जाए, तो भारत में हर वाहन चालक अपनी गाड़ी को हॉर्न के सहारे हवाई जहाज बनाकर सबसे आगे निकलने की होड़ में लगा रहता है. कहना गलत नहीं होगा कि भारत जैसे देश में नागरिक शिष्टाचार के नाम पर बहुतायत लोगों में इस जिम्मेदारी का रत्तीभर भी अहसास नही है. वहां, शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों को हॉर्न के रूप में इस्तेमाल करने से क्या ही स्थिति बदलेगी. ध्वनि प्रदूषण लोगों को नुकसान पहुंचाता है. मरीजों, बच्चों, जानवरों और जाम जैसी स्थिति में फंसे आम लोगों को ध्वनि प्रदूषण का शिकार होना पड़ता है. लेकिन, ये सभी समस्याएं हैं, तो भारत की खराब परिवहन व्यवस्था और सड़कों की हालत के ही चलते.

सरकारों के लिए मुआवजा देना आसान है, सड़क सुधार में पूरे देश की जीडीपी खर्च हो जाएगी.सरकारों के लिए मुआवजा देना आसान है, सड़क सुधार में पूरे देश की जीडीपी खर्च हो जाएगी.

भारत की खस्ताहाल सड़कों को अमेरिका की सड़कों की तरह बनाने के नेताओं के वादों के बीच झूलती देश की जनता गड्डों में गिरकर दम तोड़ देती है. और, अगर इन गड्डों को लेकर कोई शख्स कार्यवाही के लिए आगे बढ़ता है, तो नियम-कानूनों के अनुसार, उस व्यक्ति पर मुदमा दर्ज कर दिया जाता है. क्योंकि, नियम-कानून कहते हैं कि सड़क पर चलने और गड्डों से बचने के लिए वाहन चालक ही जिम्मेदार है. बेतुका सा तर्क ये है कि गाड़ी में क्लच और ब्रेक होते ही इसलिए हैं कि चालक गड्डों को देखे और संभलकर गाड़ी चलाए. ये नियम और कानून सुनने में जितना अजीब है, असलियत में भी उतना ही अजीब है.

वैसे, मोदी सरकार में अगर कोई धरातल पर काम करने वाला मंत्री नजर आता है, तो वो केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ही दिखते हैं. ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार के अन्य मंत्री कोई काम ही नहीं कर रहे हैं. लेकिन, कामकाज के मामले में नितिन गडकरी की रफ्तार को छू पाना अभी तक मोदी सरकार के किसी मंत्री के लिए संभव नहीं हो पाया है. राष्ट्रीय राजमार्गों से लेकर अपने मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली सड़क के लिए नितिन गडकरी भरपूर मेहनत करते हैं. लेकिन, भारत में हालिया स्थितियों को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि गडकरी को शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों को हॉर्न की जगह अभी भी सड़कों की स्थिति पर ही अपनी नजर गड़ाए रखनी चाहिए. हॉर्न के लिए कड़े नियम बने हुए हैं और इन्हें और कड़ा कर इन पर रोक लगाई जा सकती है. लेकिन, सड़कों की खस्ता हालत पर भी केंद्रीय परिवहन मंत्री होने के नाते नितिन गडकरी को कुछ सोचना होगा.

कॉलेज में पढ़ाई के दौरान एक अध्यापक ने क्लास में बताया था कि भारत में मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर सैकड़ों हादसे होते थी. छिट-पुट हादसों को छोड़ दिया जाए, तो किसी बड़े हादसे की स्थिति में केंद्र सरकार मुआवजा देकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेती थी. लिखी सी बात है कि इन मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर अगर इन्फ्रास्ट्रकचर खड़ा कर किसी शख्स की तैनाती की जाएगी, तो यह केंद्र सरकार के लिए हर साल लोगों के मारे जाने पर बांटे जाने वाले मुआवजे कई गुना अधिक होगा. इस स्थिति में केंद्र सरकार इस पर शांति बनाए रखती है और कभी कोई दुर्घटना होने पर मुआवजा देकर काम चला लेती है. हालांकि, बीते कुछ सालों में इस स्थिति से निपटने के लिए भारतीय रेलवे ने कई प्रयास किये हैं. रेल लाइनों के नीचे अंडरपास बनाकर, डायवर्जन रोड बनाकर अन्य क्रॉसिंग से जोड़ने जैसे उपायों के सहारे अब इन हादसों में कमी लाई जा चुकी है. नितिन गडकरी जैसे इनोवेटिव मंत्री से आम लोगों की यही आशा रहती है कि वो सड़क पर पड़ने वाले गड्डों को लेकर भी कुछ ऐसे ही प्रयास करें. लेकिन, किसी बड़े सड़क हादसे में ही सरकारों को मुआवजे की घोषणा करनी पड़ती है, जो इन सड़कों की स्थिति में व्यापक सुधार के हिसाब से बहुत ही कम खर्च है. तो, मानकर चला जाना चाहिए कि भारत में सरकारों को आम जनता की कोई खास फिक्र नहीं है.

हालांकि, नितिन गडकरी के मंत्रालय ने 2025 से पहले सड़क हादसों में 50 फीसदी की कमी लाने की ओर प्रयास करने शुरू कर दिए हैं. और, तमिलनाडु में उन्होंने अपने इन प्रयासों से सड़क हादसों में 53 फीसदी तक कमी लाई भी है. दरअसल, भारत में सुरक्षा नियमों को दरकिनार कर बनाई गई सड़कों की वजह से 50 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. कॉस्ट सेविंग के चक्कर में ठेकेदार सड़क बनाने के दौरान बहुत से ब्लैक स्पॉट छोड़ देते हैं. जो आगे चलकर सड़क दुर्घटना का कारण बनते हैं. गडकरी का मंत्रालय ऐसे ही ब्लैक स्पॉट्स को चिन्हित कर सुधारने के काम में लगा हुआ है. लेकिन, इंदौर जैसी घटना आमतौर पर हर शहर में ही होती रहती है. लोगों को ड्राइविंग सेंस नाम की चीज छूकर भी नहीं गुजरती है. तो, मंत्रालय को ऐसे फैसलों से पहले सड़कों की स्थिति सुधारने और लोगों में ड्राइविंग सेंस लाने की दिशा में कोशिश करनी चाहिए. हॉर्न का बेजा प्रयोग नहीं होगा, तो ध्वनि प्रदूषण अपनेआप ही कम हो जाएगा.

सड़कों पर ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों को हॉर्न की जगह इस्तेमाल करना एक अच्छा प्रयास कहा जा सकता है. लेकिन, जिस भारत में पूरी दुनिया के केवल एक फीसदी वाहन हों, वहां सड़कों पर वाहन दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में उसकी हिस्सेदारी 11 प्रतिशत हो. ये आंकड़े केवल चौंकाते नही हैं, बल्कि अंदर से झकझोर देते हैं. वर्ल्डबैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल होने वाली करीब साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख लोगों की मौत होती है. आसान शब्दों में कहें, तो रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर घंटे 53 सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और हर चार मिनट में एक व्यक्ति की मौत होती है. कहना गलत नहीं होगा कि जब तक सड़कों की हालत नहीं सुधरेगी, तब तक ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्याएं बनी ही रहेंगी. सोचने वाली बात है कि भारत में कोरोना जैसी महामारी की वजह से अब तक साढ़े चार लाख लोगों की मौत हुई है और ये संख्या अब बहुत ज्यादा बढ़ने की उम्मीद नहीं की जा रही है. लेकिन, सड़क दुर्घटनाओं में हर साल डेढ़ लाख लोग अपनी जान गंवा रहे हैं और सरकारें सड़क के गड्डों को सुधारने के बजाय भारतीय जनता पर ही संभलकर चलने का नियम लाद देती है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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