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Updated: 20 जून, 2020 11:39 PM
संजीव चौहान
संजीव चौहान
 
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Solar Eclipse 2020: 21 जून यानि रविवार को सूरज (Sun) कुछ देर के लिए चंद्रमा (Moon) के साथ मिल कर हम पृथ्वीवासियों के सामने लुका-छिपी खेलेगा. दिखेगा तो बस उसका दहकता किनारा जिसे खगोल शास्त्र (Astronomy) कोरोना (Corona) कहता आया है. अब इत्तेफ़ाक देखिए कि 'कोरोना' एक ऐसा शब्द है जिससे आज पूरी दुनिया वाक़िफ़ है या यूं कहें कि प्रताड़ित है. क्योंकि अचानक इस वायरस रूपी शैतान ने हम पर ऐसा हमला बोला हर कोई अपने भविष्य को अंथकार में डूबता देख रहा है और चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा. क्योंकि उस शैतान ने किसी को कुछ समझने का मौक़ा ही नहीं दिया. जिनके पसीने से शहर गुलज़ार हुए थे उन मज़दूरों का निवाला एक पल में उनसे छिन गया. बदहवासी उन्हें सड़कों पर ले आई और लाखों-लाख का हुजूम चल पड़ा इस उम्मीद में, कि शायद जहां पैदा हुए थे वहीं जान बच जाए. कारख़ाने बंद, काम-काज बंद, बाज़ार बंद, बाज़ार से जुड़े धंधे बंद और जो अभी बंद नहीं हुए वो भी नहीं जानते कि उनकी कितनी सांसे बची हैं.

Solar Eclipse 2020, Sun, Nature, Coronavirus, Astrology  इस कोरोना काल में होने वाले इस सूर्य ग्रहण को

नज़दीकी...जो रिश्तों की जान हुआ करती थी उसकी जगह दूरियों ने ले ली. यानि दूरियां जब नई नज़दीकियां बन गईं तो रिश्तों का तो सारा गणित ही उलट गया. जीते जी महफ़ूज़ रहने की दुआ भी पुरानी बात हो गई क्योंकि अब दुआ ये है कि ऊपरवाले. अगर मारना भी तो इस दौर में मत मारना. क्योंकि इस दौर में मरे तो लाश को एक और मौत से गुज़रना होगा. औऱ कोई भी मौत के बाद की मौत नहीं चाहता.

कोई नहीं भांप पाया कि दुनिया किस अंधे कुएं में गिरने वाली है? काश! किसी भी विद्या का कोई भी विद्वान इस शैतान की आहट सुन पाता? बता पाता दुनिया को कि बचो! कुछ भयंकर होने वाला है. अब, जब हम सबके सिरों पर कोरोना का काला साया मंडरा रहा है, अब जब हम नहीं जानते कि अभी अगर बचे भी हैं तो कब तक बचेंगे? कब हमारी रोज़ी-रोटी हमसे छिन जाएगी? कब सिर की छत, हाथ का निवाला हमसे दूर हो जाएगा?

तो अब, जब हम हर तरफ़ से टूट चुके हैं. बिखर चुके हैं तब, तमाम विद्याओं के जानकार जागे है अपने-अपने अध्ययन और अपने-अपने दावों के साथ. भविष्य को समझने का दावा करने वाले कुछ विद्वानों का नाम लिखना तो उचित नहीं लेकिन अगर अलग-अलग संचार माध्यमों पर ग्रहण को लेकर उनकी घोषणाओं पर नज़र डालें तो कोई कह रहा है कि अरसे बाद पड़ रहा ये ग्रहण ग्रहों का ऐसा दुर्लभ संयोग बना रहा है कि इस ग्रहण के बाद कोरोना से राहत मिल जाएगी. 2019 के ग्रहण के बाद जन्मी ये महामारी 2020 के इस ग्रहण के बाद ख़त्म हो जाएगी.

कोई कह रहा है कि इस ग्रहण के बाद कुछ राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच तना-तनी बढ़ेगी, भारत-पाक, भारत-चीन सीमा पर तनाव हो सकता है, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना होगा, कई इलाक़ों में बारिश की कमी से अकाल जैसे हालात भी पैदा हो सकते हैं. इसके ठीक उलट कुछ का आंकलन ये भी कह रहा है कि इस ग्रहण से आंधी, तूफ़ान, बाढ़ जैसी आपदाएं आ सकती हैं. साथ ही महामारी, किसी बड़े नेता की हानि और आर्थिक मंदी जैसे हालात से भी दो-चार होना पड़ सकता है.

कोई कह रहा है इस ग्रहण में कालसर्प योग लगने जा रहा है. राहू सूर्य का ग्रास करने जा रहा है. राहू-केतु एक सीध में आने वाले हैं, गर्भवती महिलाएं संभल कर रहें आदि आदि इत्यादि. इन सारे विद्वाओं के ज्योतिषीय अध्ययन का पूरा सम्मान करते हुए एक सवाल मन में उपजता है. और वो ये कि ज्योतिष का मूल मक़सद तो देश-काल-पात्र का आंकलन करते हुए मनुष्य का मार्गदर्शन करना होता है. क्योंकि जीवन के दुख-सुख के बीच जो ज्ञान, ज्योति के तरह हमें रास्ता दिखाए, वही ज्योतिष है.

ज्योतिष के प्रकांड विद्वान केएन राव कहते हैं कि Astrology is a way to spiritualism. यानि ज्योतिष, आध्यात्मिकता तरफ़ ले जाने का रास्ता है. गंडा-तावीज़-उपाय बताने की विद्या नहीं. सूर्य ग्रहों का राजा माना जाता है और समय की गणना भी सूर्य से की जाती है.

आज अगर सूर्य के ग्रहण से उसके प्रभावों-दुष्प्रभावों पर लिखा-बोला जा रहा है, अगर ये कहा जा रहा है कि कोरोना वायरस की महामारी पिछले सूर्य ग्रहण के बाद उपजी और इस सूर्य ग्रहण से समाप्त हो सकती है तो इस विद्या के विद्वान सूर्य और समय की गणना करते हुए क्यूं पहले इस बात का आंकलन नहीं कर पाए कि हमारी पूरी सभ्यता एक महामारी की ज़द में आने वाली है?

ज्योतिषी भी सौरमंडल के ग्रहों की चाल का व्यवस्थिक अध्ययन कर इकट्ठा हुए आंकड़ों पर फलादेश करते हैं. ज्योतिष के मुताबिक जब कोई बड़ी घटना घटने वाली होती है तो ग्रह-नक्षत्र उसका इशारा दे देते हैं. फिर कोरोना महामारी जैसा महाआपदा आने वाली है इसका इशारा किसी विद्वान को क्यों नहीं मिल पाया? या यूं कहें कि गंडा, तावीज़ उपायों में उलझे कई ज्योतिष मर्मज्ञों को इस ग्रह दशा का अध्ययन करने का मौक़ा ही नहीं मिला?

ज्योतिष को दैवज्ञ माना जाता है. दैव का अर्थ है भाग्य और अज्ञ का अर्थ है जानने वाला. यानि जो भाग्य की गणना कर सके, उसे देख कर लोगों को सचेत कर सके उसे दैवज्ञ कहते हैं। फिर हमारे इन दैवज्ञों से ऐसी बड़ी चूक कैसे हो गई? ऐसे सवाल ही इस विद्या को लेकर बहस छेड़ देते हैं कि कितना भरोसा किया जाए इस पर? पूरी तरह वैज्ञानिक होने पर भी इस विद्या की वैज्ञानिकता पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं. तो ग़लती किसकी है? विद्या की या विद्या से जुड़े लोगों की?

किसने मार्गदर्शन की इस विद्या को उपाय की विद्या बना दिया? उपायों के फेर में जानने और बताने वाले ऐसे उलझे कि वेदों के समकक्ष मानी जाने वाली ये विद्या ओछी बहस में उलझ गई. हमारा सौभाग्य है कि आज भी कई ऐसे विद्वान मौजूद हैं जो ज्योतिष को शोध का विषय मानते हैं. चारों तरफ़ घट रही घटनाओं से ग्रह-दशाओं का मिलान कर ऐसा सूत्र ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं जिससे ज्योतिष वाक़ई वो कर सके जिसके लिए हज़ारों वर्ष पहले ऋषियों-मनीषियों ने इस विद्या को जन्म दिया था.

बहरहाल अब सबकी नज़रें 21 जून को पड़ रहे ग्रहण पर हैं. कई तरह की बातें भी हो रही हैं कि ये करो ये ना करो. मगर ज्योतिष की शोध परंपरा से ताल्लुक रखने वाले विद्वानों का मानना है कि ये ग्रहण भी एक खगोलीय घटना है. जैसे हर साल 3-5 ग्रहण पड़ते हैं वैसा ही ये ग्रहण भी है. और ग्रहण से डरने के बजाए इसे अपनी आध्यात्मिक उन्नति के मौक़े के तौर पर देखना चाहिए.

वैसे भी, जिस परमशक्ति ने इन ग्रहों का रचा उसी ने तो हमारी भी रचना की है. अब उसे परमशक्ति कहें, क़ुदरत कहें या प्रकृति. मगर ये तय है कि वो कभी भी हमारा विनाश नहीं चाहती जब तक हम ख़ुद आत्मघाती ना हो जाएं. इसलिए तमाम भय, आशंकाओं को दरकिनार रखते हुए आप बस ये समझ लीजिए कि ग्रहण एक अवसर है आत्ममंथन का, आत्मविश्लेषण का, आत्म-उन्नति का, प्रार्थना का, दान का और प्रकृति का पूरा सम्मान करते हुए उससे एकाकार होने का.

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लेखक

संजीव चौहान संजीव चौहान

लेखक आजतक चैनल से जुड़े पत्रकार हैं

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