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Updated: 04 सितम्बर, 2015 07:58 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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सीरिया के कुछ शरणार्थी ग्रीस के कोस द्वीप जाने के लिए निकले लेकिन उनकी नाव पलट गई और एक परिवार के तीन साल के बच्चे का शव पानी में बहकर तुर्की के द्वीप पर पहुंच गया. उसके बाद उसकी तस्वीरें वायरल हो गईं. इस तस्वीर से सबका दिल पसीज गया. लेकिन हमारे देश में भी कुछ बच्चों की ऐसी ही दर्दभरी कहानी है.

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बह कर आया बच्चा ऐलन

एक तीन साल के बच्चे की तस्वीर ने पूरी दुनिया को हिला डाला, पर ऐसी न जाने कितनी तस्वीरें हर रोज़ हमारी आंखों के सामने आती हैं, एक दो दिन खबर बनती हैं और फिर हमारे ज़हन से निकल जाती हैं. कुछ देर के लिए हम अफसोस करते हैं, बच्चों पर किए गए अत्याचार, शोषण, अपहरण, हत्या जैसे मामलों पर अपराधियों की निंदा करते हैं और फिर शुक्र मनाते हैं कि कम से कम हमारे बच्चे सुरक्षित हैं. आश्चर्य की बात है कि ऐसा कभी-कभी नहीं बल्कि आए दिन होता है.

आज ही की खबर है दिल्ली के आर के पुरम सेक्टर 6 में एक बैग में तीन साल के बच्चे जतिन का शव मिला, ये बच्चा दो दिन से लापता था. दिल्ली का जतिन और सीरिया का ऐलन, दोनों एक ही उम्र और लगभग एक जैसे ही दिखते हैं पर दोनों ही आज इस दुनिया में नहीं हैं.

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तीन साल के जतिन का शव मिला

दोनों तस्वीरों में फर्क सिर्फ इतना है कि ऐलन की तस्वीर से कई देश एकमत हो गए, और जतिन जैसे कितने ही बच्चों की तस्वीरें भारत के अखबारों में हर रोज़ छपती हैं, पर सिवाय उस परिवार के किसी को फर्क नहीं पड़ता. फर्क नहीं पड़ता इसलिए कहा क्योंकि फर्क अगर पड़ता तो आंकड़ों में साफ दिखता.

क्या कहते हैं आंकड़े-

बच्चे चाहे बड़े हों या फिर छोटे, कॉलेज जाते हों या प्ले स्कूल, उनकी सुरक्षा को लेकर माता-पिता हमेशा चिंतित रहते हैं. और उनका फिक्रमंद होना वाजिब भी है, क्योंकि आंकड़े ही कुछ ऐसे हैं. नेश्नल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो(NCRB) के अनुसार दिल्ली में 2013 में बच्चों पर हुए अपराधों के 7199 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2014 में ये संख्या 9350 पहुंच गई. देश भर के 89423 मामलों में से 15085 मामले सिर्फ मध्यप्रदेश में दर्ज हुए. इस साल के शुरुआती पांच महीनों की बात करें तो 1 जनवरी 2015 से 31 मई 2015 तक मुंबई में बच्चों पर हुए अपराधों के 5035 मामले दर्ज किए गए जिनमें अपहरण के मामलें की संख्या 2394 थी. अकेली दिल्ली में ही रोज 18 बच्चे लापता होते हैं, जिनमें से चार कभी नहीं मिलते. सिर्फ दिल्ली ही नहीं, ये आंकड़ा देश के हर छोटे-बड़े शहर में मिलता है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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