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Updated: 08 अगस्त, 2018 07:41 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अगर आप कामकाजी महिला हैं, शादीशुदा हैं, और मां भी हैं, तो आप निश्चित तौर पर उस गिल्ट में जी रही हैं जिसे हर कामकाजी मां जीती है. मैं भी जी रही हूं, और मेरे जैसी सैकड़ों भी.

अमेरिका की स्टार टैनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्‍स भी उसी गिल्ट में जी रही हैं. दुनिया की पूर्व नंबर-1 और 23 बार की ग्रैंडस्लैम चैंपियन फिलहाल टेनिस और पारिवारिक जीवन के बीच सामंजस्य नहीं बना पा रहीं. 35 वर्षीय सेरेना ने पिछले साल 1 सितंबर को फ्लोरिडा में बेटी ओलंपिया को जन्म दिया था. जब तक सेरेना गर्भवती थीं वो डब्ल्यूटीए सत्र से बाहर रही थीं और कुछ समय पहले ही वो सक्रिय टेनिस में वापस लौटी हैं. लेकिन San Jose में वो हार गईं जिसे उनके करियर की सबसे शर्मनाक हार कहा जा रहा है.

serena williamsसेनेना विलियम्स अपनी बेटी ओलंपिया के साथ

सरीना से सोशल मीडिया के माध्यम से अपने दिल की बात लोगों तक पहुंचाई.

उन्होंने लिखा-

'पिछला हफ्ता मेरे लिए आसान नहीं था. मैं निजी परेशानियों से जूझ रही थी बल्कि मैं डर में जी रही थी. मैं ये महसूस कर रही थी कि मैं एक अच्छी मां नहीं हूं.

मैंने बहुत से आर्टिकल पढ़े हैं जिसमें लिखा था कि अगर पोस्टपार्टम इमोशन्स पर काम न किया गया तो वो 3 साल तक चल सकते हैं. मुझे बातचीत करना पसंद है. मैं अपनी मां, बहनों और दोस्तों से बात करती हूं और वो कहते हैं कि मेरे ये अहसास बिलकुल सामान्य हैं.

मैं अपने बच्चे के लिए बहुत कुछ नहीं कर पा रही ये सोचना और महसूस करना बिलकुल नॉर्मल है.

हम सभी इस दौर से गुजरे हैं. मैंने बहुत मेहनत की है, ट्रेनिंग की है, मैं एक बेहतरीन खिलाड़ी बन पाने की पूरी कोशिश कर रही हूं.

हालांकि मैं हर दिन उसके लिए उसके साथ होती हूं, लेकिन वो उतना नहीं है जितना होना चाहिए. आपमें से अधिकतर माएं भी ऐसा महसूस करती हैं. चाहे आप घरेलू हों, या कामकाजी, बच्चों के साथ सामनजस्य बैठाना एक कला है. और सच्ची हीरो हैं.

मुझे बस ये कहना है - अगर आपका दिन या पूरा सप्ताह बुरा है तो ठीक है. मेरा भी है. कल हमेशा आता है.'

पोस्टपार्टम इमोशन अब हर मां के जीवन का हिस्सा

ये अच्छा है कि सरीना जानती हैं कि उनकी समस्या क्या है. जबकि ज्यादातर महिलाएं तो पोस्टपार्टम डिप्रेशन की शिकार होते हुए भी ये समझ नहीं पातीं कि उनकी परेशानी क्या है.

ऐसा नहीं है कि पोस्पार्टम डिप्रेशन सिर्फ कामकाजी महिलाओं को होता है, बल्कि ये तो किसी भी मां को हो सकता है. और इसके कारण भी हर मां के लिए अलग अलग हो सकते हैं. मां बनने के बाद या पहले भी अगर महिला किसी भी तरह का तनाव लेती है तो वो आगे चलकर काफी गंभीर रूप ले लेता है, अगर उसे ठीक नहीं किया गया. ये मां और बच्चा दोनों के लिए काफी खतरनाक भी साबित होता है.

नौ महीने एक नन्ही जान गर्भ में रहती है, तब वो सिर्फ एक अहसास होता है क्योंकि वो हमारी आंखों के सामने नहीं होता. फिरभी हम अपने से ज्यादा उसकी फिक्र करते हैं. पर जब वो नन्ही जान आपकी आंखों के सामने आ जाती है, तो आप उसके लिए क्या नहीं कर डालते. वो समय जब माएं पूरी तरह से बच्चे के लिए समर्पित रहती हैं यानी मातृत्व अवकाश पर, वो दिन माओं के लिए सबसे मुश्किल भी होते हैं और सबसे खुशनुमा भी. लेकिन जब अवकाश खत्म होता है, और माएं अपने काम पर वापस जाती हैं, तो एक गिल्ट या अपराध बोध उनके जेहन में घर कर जाता है कि वो अपने बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहीं. फिर खुद को अच्छी मां न बन पाने के लिए कोसना तनाव का कारण बन जाता है.

motherकामकाजी महिलाओं को हमेशा ही ये लगता है कि वो बच्चे को समय नहीं दे पातीं

मां का काम-

महिलाओं का कामकाजी होना बुरा नहीं है, और उनका ये सोचना भी बुरा नहीं कि वो कर नहीं पा रहीं क्योंकि ये तो सत्य है. मां बच्चा पैदा करती है, दूध पिलाने से लेकर उसके लालन पालन में एक मां की ही भूमिका सबसे अहम होती है. और इसीलिए हमारा समाज मां को ही बच्चे के हर अच्छे और बुरे के लिए जिम्मेदार मानता है. पिता को बिलकुल भी नहीं. क्योंकि पिता का काम घर चलाना है और मां का काम बच्चा पैदा करना और पालना. पालने का मतलब- बच्चे को दूध पिलाना, उसे सुलाना, रोता है तो चुपाना, उसके साथ खेलना, उसका खाना बनाना, फिर उसे खिलाना, उसकी पॉटी धोना, उसे नहलाना, कपड़े पहनाना, और उसके गंदे कपड़े धोना. बीमार है तो उसका ध्यान रखनास, डॉक्टर के चक्कर लगाना, बच्चा बड़ा है तो उसे पढ़ाना भी और सबसे अहम घर के सारे काम भी करना.

कामकाजी मां का काम-

अगर धोखे से ये मां काम काजी है तो उसे कोई रियायत नहीं है, उसे तब भी ये सारे काम करने होते हैं, और साथ में ऑफिस की 9 घंटे की ड्यूटी भी. घर, परिवार और ऑफिस, ये तीनों की जिम्मेदारी एक कामकाजी महिला रोज अपने सिर पर लिए घूमती है. तनाव भी होगा, गुस्सा भी आएगा. और फिर घर में टेंशन भी होगी.

आश्चर्य होता है कि पढ़े-लिखे लोग जिन्हें महिलाओं के नौकरी करने से कोई ऐतराज नहीं है, वो भी ये मानते हैं कि बच्चों का ध्यान रखना सिर्फ औरत का काम है. वो बाहर कुछ भी हो, कितनी ही बड़ी पोस्ट पर हो लेकिन घर आकर वो सिर्फ एक हारी हुई मां ही होती है. सैरीना दुनिया की नंबर 1 खिलाड़ी होने के बावजूद भी खुद को हारा हुआ ही महसूस कर रही हैं.

क्योंकि हमारा समाज ही महिलाओं के दिमागों को सदियों से सींचता आ रहा है कि ये उसी के काम हैं, वो यही काम सबसे बेहतर कर सकती है. और अफसोस ये भी कि इसी सोच के चलते महिलाओं को न तो अपने कामकाजी पति से कोई मदद मिलती है और न ही परिवार से.

ध्यान दीजिए कामकाजी पति कितने काम के होते हैं ये आप उनके कामों को उंगलियों पर गिनकर समझ सकते हैं.

समाज अगर महिलाओं को बढ़ावा दे रहा है कि वो पढ़ें, वो आगे बढ़ें, नौकरी करें घर चलाने में बराबर का योगदान दें, तो वो इन महिलाओं के जीवन के इस दौर में उनका साथ क्यों नहीं देता, जब उन्हें परिवार और उनके साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. बच्चे की जिम्मेदारी सिर्फ मां की ही क्यों पिता की भी हो, उसके दादा-दादी की भी हो. बच्चा अगर हंसता है तो पूरा परिवार हंसता है, लेकिन बच्चा अगर रोता है तो सिर्फ मां की ही गोद क्यों, गोद पिता की भी तो हो सकती है. अगर घर-परिवार और बाहर की जिम्मेदारी एक महिला उठाती है, तो बच्चे की जिम्मेदारी पूरे परिवार को बांटनी चाहिए. 

लेकिन अब भी वो बातें कहने वाले बहुत सारे लोग आ जाएंगे कि 'किसने कहा है नौकरी करने को', 'किसने कहा है पढ़ लिखकर करियर बनाने को'. तो ऐसे लोगों के लिए सिर्फ 'ShutUp'. सेरेना विलियम हों या फिर दुनिया की कोई भी मां उनके लिए सिर्फ इतना ही कहुंगी कि तुम जितना भी समय अपने बच्चे के लिए दोगी वो उसके लिए कम ही होगा क्योंकि तुम 'मां' हो. वो मां जिसके लिए कहा जाता है कि चूंकि भगवान हर जगह नहीं होता इसलिए उसने मां बनाई. इसलिए वक्त भले ही कम हो लेकिन जितना भी हो वो ऐसा हो जिसे बच्चे जीवन भर भूल न पाएं. और मैं जानती हूं कि हर मां ये कर सकती है, क्योंकि वे मां है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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