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Updated: 12 सितम्बर, 2018 12:57 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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देश का कोई भी राज्य हो, वहां रहने वाले बच्चे बड़ी ही हेक्टिक जिंदगी जी रहे हैं. पहले स्कूल, फिर गेम्स उसके बाद कोचिंग क्लास, डांस क्लास, म्यूजिक क्लास, ये क्लास, वो क्लास. कहना गलत नहीं है कि किसी को भी बच्चों की परवाह नहीं है. बाक़ी जगहों का पता नहीं. मगर राजस्थान सरकार बच्चों के लिए जरूर सीरियस हुई है. राजस्थान सरकार बच्चों के बचपन के प्रति कितनी संजीदा है इसका अंदाजा एक खबर से लगाया जा सकता है. खबर के अनुसार राजस्थान सरकार ने हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को विद्यार्थियों के लिए 'आनंददायी शनिवार' पहल की शुरुआत की है.

राजस्थान, स्कूल, बच्चे, स्कूल बैग, रचनात्मकता   राजस्थान सरकार का मानना है कि सैटरडे को बिन बैग के स्कूल आने से बच्चों को खुशी मिलेगी

इस पहल के अंतर्गत सरकारी स्कूलों के बच्चों को इन दो दिनों में कुछ क्रिएटिव और बिल्कुल अलग तरह की पढ़ाई कराई जाएगी. इस योजना की सबसे अच्छी बात ये है कि दूसरे और चौथे शनिवार को बच्चों को खाली हाथ अपने स्कूल आना है. सरकार का मानना है कि अगर बच्चे बिना बैग के आएंगे तो इससे उन्हें बहुत खुशी मिलेगी. इसके अलावा राजस्थान सरकार का यह भी मानना है कि विद्यार्थियों के लिए ज्ञानात्मक, भावनात्मक और क्रियात्मक तीनों पक्षों का विकास जरूरी है. इसमें से किसी एक पक्ष को नजरंदाज करने पर बाकी सब प्रभावित होते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने स्कूलों में हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार को आनन्ददायी शनिवार के रूप में मनाने के फैसला किया है.

इंटरवल के बाद होगी मस्ती

स्कूल में लंच के बाद बच्चों को सरकार की तरफ से कई तरह के रचनात्मक कार्यों की ट्रेनिंग दी जाएगी जिससे उन्हें आंतरिक खुशी महसूस होगी. इस पूरी पहल पर राजस्थान स्कूल एजुकेशन काउंसिल का मानना है कि स्कूल में इस तरह की एक्टिविटीज बच्चों के कम्यूनिकेशन स्किल में सुधार लाती हैं. साथ ही उनके सोचने समझने की क्षमता को भी विकसित करती हैं. काउंसिल ने राजस्थान के सभी जिला एजुकेशन ऑफिसरों और समग्र शिक्षा अभियान के डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेट्रर्स को आनंददायी शनिवार के बारे में बताते हुए सर्कुलर जारी कर दिया है. कहा जा रहा है कि इस पहल से पहली कक्षा से लेकर 12वीं कक्षा तक के बच्चों को लाभ मिलेगा.

क्या क्या शामिल है इस मस्ती में

राजस्थान के शिक्षा विभाग के अनुसार इन दो दिनों में बच्चों को कई तरह की एक्टिविटीज जैसे कविता- कहानी पाठ, वाद-विवाद, पजल सॉल्व करना, साइंटिफिक मैजिक दिखाना आदि कराया जाएगा. इसके अलावा बच्चों को रोड सेफ्टी नियम, चाइल्ड राइट्स, पौधारोपण करने जैसे काम भी सिखाए जाएंगे. इसके अलावा बच्चों को प्रेरणादयाक वीडियोज भी दिखाए जाएंगे ताकि उनमें सृजनात्मक शक्ति का विकास हो सके.

क्यों शुरू की गई ये पहल

सरकार बस इतना चाहती है कि स्कूल के बच्चों में संप्रेषण क्षमता व सहभागिता, एकाग्रचित्तता, चिंतन व तार्किक क्षमताओं का विकास हो सके और बच्चे ग्रुप एक्टिविटी में भाग लेकर नेतृत्व करना सीख सकें. इसके साथ ही बच्चों को फिजिकल डेवलपमेंट की भी ट्रेनिंग दी जाएगी.

क्या फायदा ऐसी रचनात्मकता का जब हमारे पास बच्चों को जज करने के पैमाने हैं

अब इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और हम एक ऐसे देश में रह रहे हैं जहां बच्चा कितना टैलेंटेड है इसकी जांच उसके रचनात्मक कार्यों से नहीं बल्कि इससे होती है कि उसे 17 और 19 का पहाड़ा याद है या नहीं. बच्चा नमक का सूत्र, बल, त्वरण, आवेग जैसी चीजों की परिभाषा सुना सकता है या नहीं.

अब जब बच्चों को जज करने का पैमाना ऐसा हो तब रचनात्मकता की सारी बातें धरी की धरी रह जाती हैं. अंत में हम बस ये कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि राजस्थान सरकार ने काम तो सही किया मगर जिस देश में ये काम हो रहा है वहां जब बात पढ़ाई की आती है तब सारी रचनात्मकता धरी की धरी रह जाती है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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