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Updated: 27 दिसम्बर, 2018 05:43 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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इन दिनों राष्ट्रपति भवन से जुड़ी एक नई बहस ने जन्म ले लिया है. बहस ये कि आखिर प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड की भर्ती सिर्फ तीन जातियों से ही क्यों की जाती है? अभी तक शायद इस बारे में अधिकतर भारतीयों का ध्यान नहीं गया था, लेकिन प्रेसिडेंट्स गार्ड की लिस्ट में जाट, राजपूत और जाट-सिख जातियों के सिपाहियों को ही रखा जाता रहा है. और ये नियम ब्रिटिश वायसरॉय के जमाने से ऐसे ही चला आ रहा है. अब इस बात पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है. दरअसल, हरियाणा के गौरव यादव ने राष्ट्रपति अंगरक्षक भर्ती के लिए आवेदन दिया था और उनका सिलेक्शन सिर्फ इसलिए नहीं हुआ क्योंकि उनकी जाति सही नहीं थी.

मतलब भले ही कोई कितना भी काबिल क्यों न हो अगर वह राष्ट्रपति अंगरक्षक दस्ते में शामिल होने के लिए आरक्षित तीन जातियों का नहीं है, तो उसका चयन नहीं होगा. गौरव यादव ने इस चयन प्रक्रिया को भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 का उलंघन बताते हुए कहा है कि किसी भी भारतीय नागरिक को और उसके समानता के अधिकारों को किसी भी जगह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. फिर President's Bodyguard की टीम के साथ ऐसा क्यों? इसके जवाब के लिए इस टीम के इतिहास की ओर जाना होगा.

प्रेसिडेंट्स गार्ड की सेना का इतिहास 250 साल पुराना है.प्रेसिडेंट्स गार्ड की सेना का इतिहास 250 साल पुराना है.

प्रेसिडेंट्स बॉडी गार्ड (PBG) की शुरुआत-

प्रेसिडेंट्स बॉडी गार्ड (PBG) का इतिहास बहुत पुराना है. PBG का मौजूदा स्वरूप 1773 में गवर्नर वॉरेन हेस्टिंग्स ने बनाया था. हेस्टिंग्स ने 50 सिपाहियों को चुना था जो पहले से मौजूद एक टुकड़ी का हिस्सा थे. उन्हें 'मुगल हॉर्स' कहा जाता था. मुगल हॉर्स का गठन 1760 में सरदार मिर्जा शाहबाज़ खान और सरदार खान तार बेग ने किया था.

उसी साल बनारस के राजा चैत सिंह ने 50 अन्य सिपाहियों को भेजा, जिससे राष्ट्रपति अंगरक्षक की टुकड़ी 100 का आंकड़ा छू गई. 1773-1780 तक इन्हें ट्रूप्स ऑफ मुगल (The Governor’s* Troops of Moghals) कहा जाता था. 1784 से 1859 तक उन्हें गवर्नर जनरल बॉडी गार्ड (GGBG) कहा जाता था, 1859 से 1944 में उनका टाइटल बदलकर 44th डिविजनल रिकॉनेसां स्क्वाड्रन (44th Divisional Reconnaissance Squadron, GGBG) हो गया था. इसके दो साल बाद 1946 में ये वापस से गवर्नर जनरल बॉडी गार्ड कहलाने लगे. 1947 में आजादी के बाद ये टुकड़ी दो भागों में विभाजित हो गई. एक पाकिस्तान गई और एक भारत में रही. 1950 में इन्हें मौजूदा नाम मिला जो President's Bodyguard कहलाता है. इस टुकड़ी का इतिहास 250 साल पुराना है.

आखिर क्या है खासियत इस टुकड़ी में-

राष्ट्रपति अंगरक्षक दुनिया की आखिरी बची cavalry (घुड़सवारों की फौज) है. साथ ही ये दुनिया की कुछ सबसे पुरानी रेजिमेंट्स का हिस्सा भी है. उसका काम वैसे तो राष्ट्रपति की रक्षा करना है, लेकिन अधिकतर इन्हें परेड और कई तरह की सेरिमनी में देखा जाता है. परेड के दौरान इनके आने पर म्यूजिक भी अलग तरह का ही होता है जो इसे किसी रॉयल सेना की तरह दिखाता है. लोग इनका इंतजार करते हैं और उन्हें शान से देखा जाता है.

प्रेसिडेंट्स बॉडी गार्ड्स को ही राष्ट्रपति की सिल्वर ट्रम्पेट और झंडा फैराने का मौका मिलता हैप्रेसिडेंट्स बॉडी गार्ड्स को ही राष्ट्रपति की सिल्वर ट्रम्पेट और झंडा फैराने का मौका मिलता है.

कितने लोग होते हैं इस टीम में-

मौजूदा समय में President's Bodyguard की टुकड़ी में 222 (4 अधिकारी, 20 जेसीओ और 198 सिपाही) लोग हैं. पर कहीं भी इसके निर्धारित नंबर के बारे में जानकारी नहीं दी गई है. इतिहास में ये 50 लोगों की सेना थी. पर अधिकतम कितनी रही है इसके बारे में जानकारी नहीं है.

कुछ इतिहासकारों की मानें तो ये पहली सिख वॉर से पहले इस टुकड़ी में 469 लोग थे. पर प्रेसिडेंट्स वेबसाइट का कहना है कि इसमें प्री सिख वॉर के समय 1929 सैनिक थे. एक किताब “Historical Records of the Governor General’s Body Guards” जो 1910 में पब्लिश हुई थी वो कहती है कि अधिकतम इस सेना का हिस्सा 529 लोग रहे हैं. इसलिए ये कह पाना कि अधिकतम कितने लोग रहे हैं अभी भी असमंजस का विषय है.

हर जाति के लोग थे पहले इस टुकड़ी का हिस्सा-

राष्ट्रपति अंगरक्षक की टुकड़ी का हिस्सा कभी सिर्फ कोई एक जाति नहीं रही है. पहले इस टुकड़ी की शुरुआत मुगल (मुसलमानों) से हुई थी. ये अवध के मुसलमान थे और इतिहास कहता है कि कुछ समय तक ये सेना अवध के नवाब के अधीन भी रही है.

सन 1800 के लगभग हिंदुओं को इस सेना का हिस्सा बनने के लिए तैयार किया गया. इसमें राजपूत और ब्राह्मण अधिक थे. उस समय तक सेना की भर्ती बंगाल प्रेसिडेंसी से बदलकर मद्रास प्रेसिडेंसी कर दी गई थी और इसलिए अलगे 60 सालों तक इस फौज का हिस्सा कई दक्षिण भारतीय रहे.

1857 में विद्रोह शुरू होने के बाद अवध और दक्षिण भारत की जगह उत्तर भारत से सेना की भर्तियां शुरू हुईं और 1883 अगस्त में पहली बार सिख समुदाय के लोग इस फौज का हिस्सा बने. 1887 में पंजाबी मुसलमान President's Bodyguard की सेना के साथ जुड़े.

1895 में ब्राह्मण और राजपूतों की भर्ती इस सेना के लिए रोक दी गई थी. उसके बाद 50% सिख और 50% मुस्लिम इस फौज का हिस्सा बनना शुरू हुए. फिर धीरे-धीरे कर जाति का समीकरण बदलता रहा और ये अब जाट, सिख और राजपूतों पर आकर रुक गया है.

क्यों तीन जातियों तक सिमट गई प्रेसिडेंट्स गार्ड्स की भर्ती-

राष्ट्रपति अंगरक्षकों की भर्ती जाति आधारित होने का एक तर्क ये दिया जा सकता है कि हिंदुस्तान में कुछ खास जाति के लोगों की शारीरिक संरचना बाकियों के मुकाबले ज्यादा बलिष्ठ होती है. प्रेसिडेंट्स गार्ड्स के लिए 6 फीट से ऊंची हाइट होना जरूरी है (आज़ादी के पहले ये 6 फिट 3 इंच थी). ये अधिकतर इन तीन जातियों में पाई जाती है, जो मौजूदा समय में इस सेना का हिस्सा हैं.

क्यों ये फौज इतनी खास होती है-

भले ही इन्हें अक्सर परेड आदि में देखा जाता है, लेकिन President's Bodyguard की फौज का हर एक सदस्य ट्रेन्ड लड़ाका, टैंक चलाने वाला फौजी होता है. ये अपनी हर ड्यूटी बेहद सधे हुए तरीके से निभाते हैं. इन्हें प्रेसिडेंट या वाइस प्रेसिडेंट के शपथ ग्रहण के समय, गणतंत्र दिवस की परेड, बीटिंग रिट्रीट, स्टेट हेड या किसी अन्य देश के नेता के आने पर या गार्ड चेंजिंग सेरेमनी में देखा जा सकता है. इस सेना का कमांडिंग ऑफिसर हमेशा ब्रिगेडियर या कर्नल रैंक का होता है. उसके नीचे मेजर, कैप्टन, रिसाल्दार और दाफादार होते हैं. सिपाहियों की रैंक 'नायक' या 'सवार' होती है.

सभी राष्ट्रपति अंगरक्षकों को एक तय यूनिफॉर्म में रहना होता है. सभी सिपाहियों के घोड़े एक ही रंग के होते हैं और कमांडिंग अफसर का घोड़ा अलग रंग का होगा. रेजिमेंट की यूनिफॉर्म 1900 के बाद से ज्यादा बदली नहीं है. अलग-अलग सेरेमनी के लिए अलग यूनिफॉर्म होती है, इसलिए कभी ये लाल रंग में दिखते हैं और कभी सफेद. अन्य बॉडी गार्ड यूनिट में Governor's Body Guard, Madras, Governor's Body Guard, Bombay, Governor's Body Guard, Bengal शामिल है.

एक डॉक्‍यूमेंट्री, जिसमें राष्‍ट्रपति अंगरक्षकों के अतीत का वर्णन अमिताभ बच्‍चन ने किया है:

पर क्या वाकई जाति के आधार पर होना चाहिए सिलेक्शन?

इतिहास को अगर अलग रखकर देखा जाए तो मौजूदा समय में President's Bodyguard का अहम काम सुरक्षा से परे हो गया है. उन्हें सम्मान के लिए रखा जाता है. VVIP सुरक्षा को SPG, और दिल्ली पुलिस की जिम्मेदारी होती है. President's Bodyguard को बहुत सम्मान दिया जाता है और लोग हर साल उनके शो का इंतजार करते हैं. ऐसे समय में जहां कई भारतीय इस सेना का हिस्सा बन सकते हैं वहीं सिर्फ जाति के आधार पर भर्ती करना सही नहीं है. ये सिस्‍टम तब और भी अजीब लगता है कि जब जातियों और समुदाय के नाम पर बनी सेना की अलग-अलग टुकडि़यों में सभी जातियों और समुदायों को भर्ती किया जा रहा है. यहां तक कि मौजूदा थल सेनाध्‍यक्ष बिपिन रावत उत्‍तराखंड के मूल निवासी है, लेकिन सेना में उनका कमिशन गोरखा राइफल्‍स में हुआ था.

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लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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