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Updated: 19 दिसम्बर, 2020 07:52 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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कोविड (Covid-19) ने पहले से ही पूरी दुनिया को कम दुखी नहीं कर रखा है कि अब इससे जुड़ी एक नई जानकारी ने परेशानी खड़ी कर दी है. ख़बर आई है कि यदि आप कोविड से ठीक हो चुके हैं तो भी निश्चिंत होकर न बैठें. अपना ध्यान रखें क्योंकि कोविड मरीज के लिए नया खतरा बन म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis) नामक बीमारी ने दस्तक दे दी है. हाल ही में कम रोग प्रतिरोधक क्षमता (Weak Immunity) वाले तथा कुछ कोरोना मरीज़ों में इसका संक्रमण (Infection) देखने को मिला है. इस घातक बीमारी के चलते अहमदाबाद में 2 की मौत हो गई तथा 2 अन्य की आंखों की रोशनी चली गई है. मुंबई के कोविड अस्पतालों में भी ऐसे मामले देखने को मिले हैं. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा भी इस ख़बर की पुष्टि की गई है. टीवी चैनलों के माध्यम से उन्होंने बताया कि पिछले दो सप्ताह में ऐसे दर्ज़न भर मरीज़ सामने आये हैं, जिनमें से पचास प्रतिशत अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे हैं.

Mucormycosis, Coronavirus, Disease, Treatment, Hospital, Doctor, Deathकोरोना के बाद अब म्यूकोरमाइकोसिस ने हम भारतीयों की मुसीबत बढ़ा दी है 

क्या होता है श्लेष्मा विकार (म्यूकोरमाइकोसिस)

म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis), कवकीय संक्रमण (Fungal infection) का एक प्रकार है. इसे जाइगोमाइकोसिस या ब्लैक फंगस भी कहा जाता है. यह रेयर बीमारी है. इसमें लोगों की आंखों की पुतलियां बाहर आ जाती हैं. अधिकांश मामलों में मरीजों की आंख की रोशनी भी चली जाती है. यह इसलिए भी विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि यह पूरे शरीर में जल्दी फैलता है. समय पर उपचार नहोने से इसका संक्रमण फेफड़ों या मस्तिष्क तक पहुंच सकता है.

इसके कारण पक्षाघात (Paralysis), न्यूमोनिया और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है. चिकित्सकों के अनुसार इस बीमारी से ग्रस्त मरीज़ों में जीवन-मृत्यु का आंकड़ा 50-50 है. इसमें और कोविड में मुख्य अंतर यह है कि ये कोविड की तरह संक्रामक (Contagious) नहीं है अर्थात् ये एक से दूसरे को नहीं हो सकता.

कैसे फैलती है ये बीमारी?

Mucormyte मोल्ड्स के संपर्क में आने से म्यूकोरमाइकोसिस (Mucormycosis) होता है. ये सूक्ष्मजीव पत्ते, खाद के ढेर (piles of compost), मिट्टी, सड़ रही लकड़ी (Rotting wood) आदि पर पाए जाते हैं. इन स्थानों पर उपस्थित मोल्ड बीजाणु (mold spores) सांस के माध्यम से शरीर में पहुंच सकते हैं. जिसके कारण केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (central nervous system),आंखें, चेहरे, फेफड़ों, साइनस में संक्रमण विकसित हो सकता है.

ये कवक (Fungi) कटी या जली हुई त्वचा के माध्यम से प्रवेश करके भी संक्रमित कर सकता है. ऐसे मामलों में, घाव या जला हिस्सा संक्रमण का क्षेत्र बन जाता है.

किनके लिए हो सकती है, जानलेवा?

इस प्रकार के Molds या कवक (Fungi) सामान्य तौर पर उगते ही रहते हैं पर इसका ये अर्थ नहीं कि हर कोई इस बीमारी से संक्रमित हो जाएगा. इस संक्रमण की आशंका उनमें सबसे अधिक है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) किसी बीमारी के चलते या अन्य किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण अपेक्षाकृत कमजोर हो. इन लोगों को भी विशेष ध्यान रखने की जरूरत है.

कैंसर/एचआईवी/ मधुमेह रोगी

जिनका हाल ही में अंग प्रत्यारोपण (organ transplant) या अन्य कोई शल्य चिकित्सा (surgery) की गई हो.

त्वचा जल गई हो (Burns)

किसी चोट के कारण घाव या cut हो लेकिन आमजन को भी सारी सावधानियां अपनाते हुए इससे बचकर रहना है.

नई नहीं है ये बीमारी!

सर गंगाराम अस्पताल के वरिष्ठ ENT सर्जन डॉ मनीष मुंजाल के अनुसार यह बीमारी नई नहीं है. इसे पहले भी कमजोर इम्युनिटी सिस्टम वाले लोगों, वृद्धों तथा डायबिटीज के मरीज़ों में देखा गया है. यदि आप इस श्रेणी में नहीं आते और वे मरीज़ जिन्हें कोविड ट्रीटमेंट में स्टेरॉयड की जरुरत नहीं पड़ी, उन्हें अधिक घबराने की आवश्यकता नहीं है. बस अपना ध्यान रखें.

नेत्र-विशेषज्ञ, डॉ जिगना कैसर का कहना है, ‘कोविड से पहले, हज़ार मरीजों में पांच या सात ऐसेमामले देखने को मिलते थे, लेकिन कोविड के बाद हज़ार में से बीस मरीज़ों में म्यूकोरमाइकोसिस देखा गया है. वहीं अहमदाबाद के रेटीना एंड ऑक्यूलर ट्रॉमा सर्जन, डॉ पार्थ राणा का भी कहना है कि पहले ये बीमारी पन्द्रह से बीस दिनों में फैलती थी लेकिन अब चार-पांच दिनों में ही मरीज़ की स्थिति गंभीर हो रही है यहां तक कि मृत्यु भी.

कैसे पहचानें इस बीमारी को?

मुख्यतः ये बीमारी श्वसन तंत्र (respiratory System) या त्वचा (Skin) के संक्रमण के रूप में विकसित होतीहै. इसमें खांसी, बुखार, सिरदर्द, नाक बंद, साइनस का दर्द देखने को मिलता है. त्वचा (Skin) को संक्रमित करने के साथ ही ये शरीरके किसी भी हिस्से में फ़ैल सकती है. अतः त्वचा के कालेपन, फफोले, सूजन, कोमल हो जाना, अल्सर होने पर जांच करानी चाहिए.

यदि आपको छींक वाला जुकाम नहीं है. आपकी नाक में पपड़ियां निकल रहीं या क्रस्टिंग हो रही है. साथ ही उस साइड के गाल में सूजन है या फिर सुन्न महसूस हो रहा तो तुरंत ही चिकित्सकके पास जाकर जांच कराएं. आंखों का लाल हो जाना, आंखों की रौशनी कम होना, आंखों या गालों में सूजन भी इसके लक्षण हो सकते हैं.

वैसे तो ये बीमारी शरीर के किसी भी भाग में हो सकती है पर सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव नाक एवं आंखों के आगे पीछे डालती है. नाक में यह फंगस बहुत तीव्र गति से वृद्धि करता है और तीन से पांच दिन के अन्दर ही संक्रमण फैलने लगता है. सबसे पहले आंख के पीछे, फिर आसपास और फिर ब्रेन में फ़ैल जाता है. इसका मस्तिष्क तक पहुंचना ही जानलेवा बन जाता है. पर भूलें नहीं कि समय रहते इसका इलाज़ भी संभव है. अतः प्रारम्भिक अवस्था में ही जांच करा लें.

बचाव के लिए ये आसान तरीके अपनाएं 

पूरे शरीर को ढकते हुए कपड़े पहनने चाहिए. ये जमीन में होता है अतः उसमें काम करते समय हमेशा लम्बे शूज पहनकर रहें और त्वचा को मिट्टी के सीधे सम्पर्क में न आने दें. हवा में भी उपस्थित होता है तो मास्क पहनना न भूलें.

सफाई का पूरा ध्यान रखें. अच्छी तरह साबुन से हाथ-पैर धोएं.

किसी भी प्रकार के संदिग्ध संक्रमण के लिए डॉक्टर को दिखाना चाहिए. लैब में टिश्यू सैंपल देखकर म्यूकोरमाइकोसिस का पता लगाया जाता है. इसके उपचार के पहले चरण में Intravenous (IV) एंटिफंगल दवाएं दी जाती हैं और सर्जरी के द्वारा सभी संक्रमित ऊतकों (Infected tissues) को हटा दिया जाता है. अनुकूल प्रतिक्रिया मिलने पर ओरल मेडिकेशन दिए जाते हैं.

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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