New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 अप्रिल, 2015 07:59 AM
राजदीप सरदेसाई
राजदीप सरदेसाई
  @rajdeep.sardesai.7
  • Total Shares

मंत्री बनने से पहले मैंने जनरल वीके सिंह का इंटरव्यू किया था. रिटायर होने के ठीक बाद. सेना प्रमुख के पद से विवादास्पद विदाई के बाद उस समय यह अफवाह जोरों पर थी कि वे राजनीति में जाने की तैयारी कर रहे हैं. उनका मुझसे बर्ताव बेहद भद्र था (जैसा कि ज्यादातर सैनिकों का होता है) लेकिन वे गुस्से में भी थे, सोच रहे थे कि पूरी दुनिया ही उनके खिलाफ साजिश कर रही है. वे सरकार, अपने सीनियर साथियों और तब की पॉलिटिकल क्लास के साथ चल रहे टकराव पर कड़वी बातें कर रहे थे. मीडिया से भी उखड़े हुए थे, इंडियन एक्सप्रेस से खासतौर पर नाराज. उन्होंने मुझसे कहा कि "आप पत्रकारों ने केवल मुझे ही निशाना नहीं बनाया है, बल्कि पूरी सेना का अपमान किया है! मैं इस मामले को यू ही नहीं छोडूंगा". मैं साक्षात्कार करके बाहर आया, मुझे जनरल के गुस्से को देखकर अहसास हो गया था कि एक दिन वे अपनी बात को साबित कर सकते हैं: आखिरकार एक सैन्य अधिकारी से संयम और धैर्य की उम्मीद की जाती है, न कि एक विरोधी किरदार की.

अफसोस, जिस बात का मुझे डर था वही हुआ. पाकिस्तान नेशनल डे समारोह में भाग लेने के बाद उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया "डिसगस्ट" लिखकर दी. उनके इस ट्वीट को इस्लामाबाद के खिलाफ मोदी सरकार का प्रतीकात्मक रुख माना गया. उन्हें कथित तौर पर ऊपर तलब कर अपनी टिप्पणी की सफाई यह कहकर देने को कहा गया कि उसकी गलत व्याख्या की गई थी. अब एक ट्वीट के बाद फिर से वे मीडिया की सुर्खियों में हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में मीडिया को "presstitutes" कहा है. उन्होंने इस शब्द का उपयोग पहले भी किया है. ट्विटर पर सक्रीय मोदी समर्थकों का एक समूह भी अकसर इसे इस्तेमाल करता है, जब उसे यह लगता है कि मीडिया पक्षपातपूर्ण है या उसका स्तर गिर रहा है. जनरल सिंह की टिप्पणी टाइम्स नाउ समाचार चैनल के एक ट्वीट पर प्रतिक्रिया के रूप में थी. जिसमें कहा गया था कि जनरल सिंह को यमन में भारतीयों के बचाव का अभियान पाकिस्तान दूतावास में राष्ट्रीय दिवस समारोह में भाग लेने से कम रोमांचक लगा है. जाहिर है चैनल ने जनरल की बात में व्यंग्य नहीं देखा (या उपेक्षा करने के लिए चुना) लेकिन क्या मीडिया को "presstitutes" कहने के लिए केवल यही कारण होना चाहिए था?

बात को समझें: जनरल सिंह को आम ट्विटर हैंडल नहीं है,  जो मीडिया के खिलाफ जहर उगलकर आसानी से चला जाए. वे केन्द्रीय मंत्री मंडल के एक वरिष्ठ सदस्य हैं. जिनसे उम्मीद की जाती है कि ट्विटर जैसे सार्वजनिक मंचों पर सभ्य भाषा का इस्तेमाल करेंगे. उन्हें मीडिया को निष्पक्षता पर सवाल उठाने का पूरा अधिकार है, लेकिन क्या उन्हें मीडिया को "presstitutes" कहना चाहिए? अफसोस की बात है कि फौजी सिंह भी प्रधानमंत्री से प्रेरणा ले रहे हैं. जिन्होंने कई मौकों पर मीडिया को "न्यूज ट्रेडर" कहा है. इसे भी सोशल मीडिया पर मौजूद आक्रामक दक्षिणपंथियों ने खूब पसंद और पॉपुलर किया है. हाँ हम मीडिया वालों को पत्रकारिता के गिरते मानकों पर सोचने करने की जरूरत है. लेकिन क्या वरिष्ठ राजनेताओं को लगातार मीडिया को बदनाम करना चाहिए? क्या यह सब मीडिया के एक वर्ग को जानबूझकर भयभीत करने के लिए बनाई गई रणनीति का हिस्सा है? विरोध किए बिना या आवाज उठाए बिना क्या मीडिया को चुपचाप रहकर इन अनर्गल बयानों को स्वीकार करना चाहिए?

मैं अपने अन्य सहयोगियों के बारे में नहीं जानता. लेकिन इस पेशे में 26 साल बिताने के बाद मुझे लगता है कि आज हालात अत्यंत चिंताजनक हैं. तीन दिन पहले प्रधानमंत्री ने शिथिल कानून प्रणाली को लक्षित करते हुए "फाइव स्टार एक्टिविज्म" जुमले का इस्तेमाल किया था. अब उनका एक मंत्री लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला करने के लिए "presstitutes" शब्द का इस्तेमाल करता है. हैरत नहीं है कि जनरल ट्विटर पर ट्रेंडिंग कर रहे हैं. उन लोगों की बदौलत जिन्हें मीडिया को कोसना पसंद है. ट्विटर पर किसानों की आत्महत्या ट्रेंड नहीं करती लेकिन पत्रकारों को कोसने वाले एक मंत्री उन लोगों के लिए अहम हैं, जो हमेशा मीडिया को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं.

मैं यमन में बचाव अभियान और राहत कार्यों का नेतृत्व करने के लिए जनरल की सराहना करता हूँ. मुझे याद है कि पिछली सरकारों ने भी इस तरह के संकट में ईमानदारी के साथ देश की सेवा की है. हालांकि इसका वास्तविक श्रेय बचाव कार्य में लगी भारतीय सशस्त्र सेना और राजनायिकों को जाना चाहिए. लेकिन जनरल सिंह की सराहना करते हुए मैं उनसे माफी मांगने की उम्मीद भी करता हूँ. आपने मेरे पेशे का अपमान किया है, जनरल साहब. अगर आप एक सैनिक के रूप में आहत महसूस करते थे, जब आपको वर्षों पहले निशाना बनाया जाता था. तो मेरे पास आज नाराजगी महसूस करने के लिए हर कारण है. हिसाब बराबर!

#वीके सिंह, #सोशल मीडिया, #मीडिया, सेना प्रमुख, विवादास्पद, वीके सिंह

लेखक

राजदीप सरदेसाई राजदीप सरदेसाई @rajdeep.sardesai.7

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय