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Updated: 02 जून, 2017 06:24 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
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आदरणीय नीतीश कुमार जी,

आप बिहार के मुख्यमंत्री हैं, तो हमारे भी मुख्यमंत्री हैं, इस नाते आपका सम्मान करता हूं, लेकिन मुझे पता है कि बंद चिट्ठियां आपके पते पर पहुंचती नहीं हैं, इसलिए खुला पत्र लिख रहा हूं, ताकि सनद रहे.

इससे पहले एक और खुला पत्र मैंने आपको इनसेफ़लाइटिस से मरते बच्चों को बचाने की खातिर 2012 में लिखा था. तब मुद्दा हमारे बच्चों के जीवन का था. अब मुद्दा हमारे बच्चों के भविष्य का है, जिसे पिछले 12 साल में आपने क्रमशः बर्बाद कर दिया है. आज जिन बच्चों का 12वीं का रिजल्ट आया है, वे उसी साल पहली कक्षा में दाखिल हुए थे, जिस साल आप पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. यानी 2005 में. सोचिए, एक तरफ आप बिहार के मुख्यमंत्री बने, दूसरी तरफ इन बच्चों के मां-बापों की आंखों में इनके भविष्य को लेकर सपने पैदा हुए. जैसे-जैसे आपके मुख्यमंत्रित्व का एक-एक साल बीतता गया, ये बच्चे एक-एक क्लास बढ़ते रहे. आज आपको मुख्यमंत्री बने 12 साल हुए हैं और इन बच्चों ने 12वीं का इम्तिहान दिया है.

nitish kumar, Bihar board

इसीलिए, जब लोग कह रहे हैं कि 12वीं के इम्तिहान में बिहार के दो तिहाई बच्चे फेल हो गए हैं, तो मुझे लगता है कि बच्चे नहीं, बल्कि स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फेल हुए हैं. और फेल होते कैसे नहीं, बिहार की शिक्षा का सत्यानाश करने में तो आप पहले दिन से ही जुट गए थे. देखिए, इन बारह सालों में राज्य की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने में आपका योगदान कितना अहम (या अधम?) रहा है-

1. आपने राज्य भर के स्कूलों में फर्जी मार्क्स-शीट और सर्टिफिकेट वाले हजारों या लाखों अनपढ़ लोगों को शिक्षकों के रूप में नियोजित कर लिया. न कोई जांच, न कोई पड़ताल, न कोई इम्तिहान, न कोई इंटरव्यू! सिर्फ वोट-बैंक की राजनीति और पैसे का खुल्लमखुल्ला खेल. जनवरी फरवरी की स्पेलिंग तक नहीं जानने वाले लोग भी सरकारी स्कूलों में गुरूजी बन गए.

2. अपने राज्य के तमाम स्कूलों को विद्यालय नहीं, भोजनालय बना दिया. और भोजनालय भी ऐसा, जिसमें भोजन के नाम पर मरी हुई छिपकलियां, तिलचट्टे और कीड़े-मकोड़े सर्व किए जाते रहे. राज्य के किसी भी ज़िले में शायद ही कोई स्कूल ऐसा रहा होगा, जहां आपका मिड-डे मील खाकर बच्चे कभी-न-कभी अस्पतालों में भर्ती नहीं हुए होंगे.

3. छपरा के धर्मासती गंडामन गांव के स्कूल में तो दिल दहला देने वाला वह 'कारनामा' हुआ, जो आजाद हिन्दुस्तान के किसी भी स्कूल में नहीं हुआ था. आपका मिड-डे मील खाकर हमारे 23 लाल बहादुर शास्त्री असमय काल के गाल में समा गए. इसे 'हादसा' नहीं, 'कारनामा' कह रहा हूं, क्योंकि राज्य के स्कूलों में मिड-डे मील खाकर बार-बार बच्चों के बीमार होने की घटनाएं घट रही थीं और हम जैसे लोग बार-बार आपको आगाह कर रहे थे कि किसी भी दिन बड़ी घटना हो सकती है. लेकिन आपकी सरकार में गरीबों के बच्चों के एक वक्त के मिड-डे मील के ढाई-तीन रुपये में भी घोटाले चल रहे थे.

4. आपने शिक्षकों को शिक्षक नहीं रहने दिया, बल्कि उन्हें आटे-चावल-दाल का हिसाब रखने वाला रसोइया बना दिया. आपके स्कूलों में गुरुजी खैनी खाकर बच्चों का भविष्य थूकते रहे और आप देश को साइकिल चलाती हुई लड़कियां दिखाकर सुशासन बाबू कहलाते रहे.

5. जिन साइकिलों के सहारे आप सुशासन बाबू बने, उन साइकिलों में भी कम घोटाले नहीं हुए. जो छात्र आपके स्कूलों में नहीं पढ़ते थे, उनके नाम पर भी साइकिलें बांटी गईं. स्कूलों की साइकिलें दुकानों और अन्य लोगों को बेची गईं. बिना साइकिलें खरीदे साइकिल दुकानों से फर्जी पर्चियां बनवाकर भी सरकार से पैसे लिए गए.

6. पोशाक के पैसों के लिए आपने राज्य भर के बच्चों को भिखमंगा बना दिया. ये पैसे किसी को दिए, किसी को नहीं दिए, जिससे इनके वितरण में भेदभाव को लेकर बड़ी संख्या में बच्चे सड़कों पर उतरकर आगजनी, तोड़-फोड़ और पत्थरबाजी करते हुए देखे गए. आपकी पुलिस लाठियां बरसाकर उन मासूम बच्चों को घर भेजती रही, लेकिन आपने कभी यह नहीं सोचा कि आपकी सरकार बच्चों को कैसी शिक्षा और कैसा संस्कार देने में जुटी है.

7. वोट बैंक और कमाई के चक्कर में एक तो स्कूलों में घटिया शिक्षक नियोजित किये गए, दूसरे उनमें अगर कुछ ठीक-ठाक भी थे, तो लंबे समय तक उन्हें मनरेगा मजदूरों से भी कम मानदेय दिया गया, जिससे बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के सिवा बाकी सारे काम वे करते थे. ज्यादातर समय आपके शिक्षक मानदेय बढ़ाने के लिए आंदोलन करते रहे और आपकी पुलिस लाठियां बरसाकर उनकी कमर, पीठ, छाती, माथा तोड़ती रही.

8. एक तरफ स्कूलों में योग्य शिक्षकों और जरूरी सुविधाओं का अभाव, दूसरी तरफ पढ़ाई नदारद. आपकी सरकार में बैठे लोगों ने इस शर्मनाक स्थिति को भी कमाई का ज़रिया बना लिया. राज्य भर में पेपर आउट, नकल और पैरवी का बोलबाला है. अब तो हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि बच्चों और उनके अभिभावकों को फोन करके नंबर बढ़ाने के लिए घूस मांगी जा रही है.

9. पॉलिटिकल साइंस को खाना बनाने का विज्ञान समझने वाले बच्चे टॉप कर रहे हैं और आईआईटी कम्पीट करने वाले बच्चे फेल हो रहे हैं. अधिकांश बच्चे जनरल मार्किंग और अयोग्य लोगों द्वारा कॉपी जांच के शिकार हो रहे हैं. गलत तरीके से फेल कराए गए बच्चे सड़कों पर उतर आए हैं और आपकी पुलिस उन्हें लाठियों से पीट रही है. कई बच्चों ने तो सुसाइड भी कर लिया है. इन बच्चों के लिए आपका रोआं कभी सिहरता है?

10. एक तरफ आपने सरकारी शिक्षा-व्यवस्था को ध्वस्त किया, दूसरी तरफ प्राइवेट शिक्षा माफिया को लगातार फायदा पहुंचाया. समान स्कूल प्रणाली को लेकर मुचकुंद दुबे कमेटी की महत्वपूर्ण सिफ़ारिशों को आपने कूड़ेदान में डाल दिया. स्पष्ट है कि सरकारी स्कूलों की चिता पर आप प्राइवेट स्कूल कारोबारियों के महल बुलंद करना चाहते हैं. आपकी नाक के नीचे आपके चहेते कई बाहुबलियों ने किसानों की जमीनें कब्जाकर बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूल खोल लिए और सरकारी स्कूल तिल-तिल कर अपनी मौत की तरफ बढ़ रहे हैं.

11. शिक्षा प्राप्त करने के बाद बच्चे नौकरी के लिए निकलते हैं, लेकिन बिहार में एक भी नौकरी ऐसी नहीं बची है, जिसे मेरिट के आधार पर हासिल किया जा सके. आपकी सरकार में एक-एक सीट बिकी हुई है. आज अगर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भी आ जाएं, तो बिना घूस दिए उन्हें बिहार में सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती.

आदरणीय नीतीश कुमार जी, एक समय आप कहते थे कि लालू यादव के जंगलराज की वजह से बिहार पूरे देश में बदनाम हो गया है. यह अलग बात है कि आजकल आप उन्हीं लालू जी की गोदी में बैठकर सेक्युलरिज़्म का सारेगामा गा रहे हैं. लेकिन माफ कीजिए, आज एक बार फिर से हम बिहारियों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है और इस बार वजह लालू यादव नहीं, बल्कि आप हैं. लालू यादव की सरकार में कानून-व्यवस्था और सड़कों की हालत जितनी खराब नहीं थी, उससे अधिक खराब आपके राज में शिक्षा की हालत हो चुकी है.

कानून-व्यवस्था एक महीने में और सड़कें एक साल में दुरुस्त की जा सकती हैं, लेकिन शिक्षा-व्यवस्था ध्वस्त हो जाए, तो पीढ़ियां बर्बाद हो जाती हैं. इसलिए, अगर मैं राजनीति में होता, तो आपके इस्तीफे की मांग करता. लेकिन आपके राज्य का एक मामूली नागरिक, लेखक और पत्रकार हूं, इसलिए केवल इस स्थिति में सुधार की मांग कर रहा हूं.

आदरणीय नीतीश कुमार जी, क्या इतने का भरोसा भी आप दे सकते हैं?

शुक्रिया.

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लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

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