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Updated: 19 फरवरी, 2018 06:41 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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आदरणीय मोदी जी,

आपको प्रधानसेवक कहूं, चौकीदार कहूं, प्रधानमंत्री कहूं या कुछ और लेकिन आप इसमें से किसी भी भूमिका में खरे नहीं उतरे. देश के गरीब और किसानों के लिए तो आपका का कार्यकाल लूट खसोट प्रताड़ना और शोषण का दौर रहा.

आपके बैंक अमीरों के लिए उदार बने रहे लेकिन गरीबों का खून पीते रहे. कहां से शुरू करूं हर जगह से यही कहानी दिखती है. आपने जनधन योजना का झुनझुना पकड़ाया और गरीबों के डेढ़ करोड़ खाते खुलवाए. इनमें से एक करोड़ लोगों ने अपनी जमा पूंजी घर के कनस्तरों से निकालकर आपके खातों में रख दी. उस रकम का आपने क्या किया. आपने अडानी साहब के इस प्रोजेक्ट को 4000 करोड़ रुपये लोन मंजूर कर दिया जिसे पूरी दुनिया ठुकरा चुकी थी. आखिर ऑस्ट्रेलिया का ये पॉवर प्रोजेक्ट मंजूर ही नहीं हुआ वर्ना 4000 करोड़ रुपये इस अत्यधिक जोखिम भरे प्रोजेक्ट को दे ही दिया था. इस प्रोजेक्ट के लिए कोयले के उत्खनन पर आपत्तियां थीं.

नरेंद्र मोदी, खुला खत, पीएनबी स्कैम, अर्थव्यवस्था, गरीब, किसान

आपकी विरोधी कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेंस करके ये मामला उठाया तो आपने जवाब तक नहीं दिया. गरीब लोगों का पैसा पोट पुचकार कर ले लेना और उसे किसी उद्योगपति को ऐसे प्रोजेक्ट के लिए दे देना जो भारत में रोज़गार तक नहीं पैदा करेगा. ये कैसा गरीब प्रेम था.

अब आपका किसानों और अमीरों के लिए रवैया ही देख लें, नीरव मोदी को बिना जमानत मोटा लोन देते रहे वो 13 हज़ार करोड़ लेकर निकल लिया. विजय माल्या को देश का सिस्टम लंदन तक छोड़ आया. आपसे कुछ नहीं हुआ. माल्या को सिर्फ ब्रांड गिरवी रखकर लोगों की मेहनत की कमाई के पैसे आपने सौंप दिए.

जनता से पैसे चूसने की इतनी हवस थी कि आपकी सरकार और बैंकों ने लोगों पर मिनिमम बैलेंस पर जुर्माना बढ़ा दिया. बैंक से पैसे निकालने पर जुर्माना लगने लगा. और तो और एटीएम से पैसे निकालना भी आपने मुश्किल बना दिया. ये पैसे किसलिए चाहिए थे बैंकों को.

अगर सिर्फ पैसे की बात होती तो भी मान लेते लेकिन आपकी सरकार के बैंकों ने तो लोगों की जानें भी लीं. खुद एनसीआरबी का डेटा कहता है कि अकेले 2015 में गरीब और किसानों से कर्ज वसूलने में आप इतने निर्मम हो गए कि 2474 किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी, रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि मौत का कारण बैंकों की सख्ती थी. हालात ये कि सूदखोंरों के लोन से ज्यादा आपके लोन निर्मम हो गए.

गरीबों के खातों को आप अपनी मनमर्जी से चलाते हैं. नोटबंदी के बाद आपने बेशर्मी से जनधन खाते सील कर दिए. जो जमापूंजी गरीबों ने आपके खातों में रखी थी वो आपने अपने पास रख ली. किस हक से?

आपके शासनकाल में गरीबों की गर्दन निचोड़ी जाती रही, मिडिल क्लास का धन नोटबंदी तो कभी किसी और बहाने से बैंकों में समेट लिया गया. ये सारा पैसा कहां गया? ये कालाधन नहीं सफेद धन निचोड़कर अमीरों को दे देने का खेल ज्यादा था.

कालाधन तो आया नहीं. आरबीआई चीटी की रफ्तार से नोट गिनने की बातें करके सच को छिपाने में लगा है. इस बीच घोटाले पर घोटाले हो रहे हैं. खुद आरबीआई कहता है कि हर चार घंटे में देश में एक बैंक फ्रॉड होता रहा. 3 लाख 67 हज़ार 765 रुपये घोटालों की भेट चढ़ गए. नीरव मोदी से 27 गुना पैसा चला गया. सारा पैसा अमीरों की जेब में गया. अमीरों को आप लोन पर लोन देते रहे. गरीबों की जमा पूंजी आपने कब्जा कर ली. कभी लालच देकर तो कभी सख्ती से.

इतना ही नहीं आप जानते थे कि बैंक डूब जाएंगे और बैंक डूबने पर सरकार पर फर्क न पड़े इसलिए आपने एक विधेयक बनाया. ये विधेयक भी जमाकर्ताओं के धन पर ही डाका डालने वाला था. आप फाइनैंशियल रेजॉल्युशन ऐंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल (एफआरडीआई) ले आए. इस बिल का मकसद था कि भविष्य में जब भी घोटाला हो यो कोई बैंक डूबे तो जमाकर्ता मारा जाए. लोगों के खाते से पैसा घाटा पूरा करने के लिए निकालना चाहते थे आप और बदले में दे देते डूबते बैंक के शेयर जिन्हें कोई चवन्नी में नहीं खरीदना चाहता.

माफ कीजिएगा जब आप किसान के लिए आंसू बहाते हुए नज़र आते हैं तो दिल में बहुत गुस्सा होता है. इस गरीब किसान और मज़दूर को लूट लेने वाली बातें जेहन में आती है तो इतने बुरा खयाल आते हैं कि यहां लिखा भी नहीं जा सकता. आप गरीबों को भक्षक जैसे नज़र आते हैं. आप सब्सिडी छीन रहे हैं लेकिन नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोगों के लिए भंडार खोल देते हैं.

माफ कीजिएगा. आप मुझे माफ कर भी देंगे लेकिन मेरा मन आपको माफ करने का बिल्कुल नहीं होता.

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गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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