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Updated: 26 मार्च, 2015 09:02 AM
देवानिक साहा
देवानिक साहा
  @devanik.saha
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निर्भया के साथ हुई शर्मनाक घटना पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म को लेकर नया विवाद शुरु हो गया है. 16 दिसंबर की उस रात को निर्भया के साथ रहे उसके दोस्त अवनींद्र पांडे ने इस फिल्म को झूठा करार दिया है.

पांडे ने लेस्ली पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने फिल्म में पीड़ित के दृष्टिकोण को दरकिनार कर केवल दस्तावेजी काम किया है. डॉक्यूमेंट्री फिल्म में दिखाया गया है कि ट्यूटर सत्येन्द्र को उस फिल्म के बारे मे पता था जो वो लोग देखने गए थे, और जो आगे देखने जाना चाहते थे. जब उन्होंने किसी को ये बताया ही नहीं तो डॉक्यूमेंट्री फिल्म में ये दावा कैसे किया जा सकता है. यह एक बड़ा सवाल है. पांडे के मुताबिक यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म केवल सनसनी फैलाने के लिए बनी है.

जाहिर है, बीबीसी की इस फिल्म के पीछे की सच्चाई कल्पना से ज्यादा गहरी है. अवनींद्र के इस दावे ने फिल्म से जुड़े विवाद को अलग दिशा में मोड़ दिया है. अगर उनके दावे पर विश्वास किया जाए तो साफ तौर पर विश्वसनियता के लिए मशहूर बीबीसी ने अपने फायदे के लिए इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल किया है.

तीन खास बातें हैं जो बीबीसी के लिए इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म के प्रचार में मददगार साबित हुई-

01. भारतीय जनता का असंतोष

रेप की यह शर्मनाक घटना देश भर में भारी आक्रोश और विरोध प्रदर्शनों का सबब बनी. बलात्कार कानूनों में कुछ बदलाव लाने के लिए जस्टिस वर्मा आयोग बनाया गया. दिल्ली की कानून व्यवस्था में ज्यादा कुछ नहीं बदला और न ही पूरे देश में. हाल ही में यूबर टैक्सी बलात्कार कांड की भारी आलोचना हुई. एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा सामने आया. पर सरकार ने अभी तक इस दिशा में ठोस उपाय करने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया है. सरकार ने रेप क्राइसिस सेंटरों की संख्या को 660 से घटाकर केवल 36 कर दिया. जाहिर है इसके लिए निर्धारित बजट भी 244 करोड़ रुपये से घटकर 18 करोड़ हो गया. बीबीसी को पता था कि बढ़ती रेप की घटनाओं और सामाजिक संगठनों के दबाव के बावजूद भारत में महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सरकार का रवैया ढुलमुल है और जनता इस बात से काफी नाराज है.

02. विदेशियों के प्रति जुनून

भारत में हमेशा विदेश और विदेशी नागिरकों को लेकर एक जुनून रहा है. जब ये साफ हो गया कि निर्भया पर बनी इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में कुछ कानूनों का उल्लंघन किया गया है, तो सवाल उठा कि कैसे किसी विदेशी पत्रकार को रेप के इस हाई-प्रोफाइल मामले का इस्तेमाल करने दिया गया. हमारे देश के पत्रकार भी तो यह कर सकते थे? बीबीसी दावा कर रही है कि उन्होंने सभी कुछ भारतीय कानून के तहत किया लेकिन ये साबित हो गया है कि उन्होंने कई कानून तोड़े और जनता को कुछ नहीं बताया. बीबीसी ने एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय मीडिया ब्रांड होने के नाते ये डॉक्यूमेंट्री बनाई इसलिए उसे किसी सामान्य निर्माता की अपेक्षा अधिक से अधिक दर्शक मिले. हालत ये है कि लोगों ने कहा "यार बीबीसी ने बनाया है तो सही होगा". इस तरह की मानसिकता और विदेशियों के प्रति हमारे लगाव को बीबीसी ने भरपूर इस्तेमाल किया.

3. भारतीय पुरुषों की सनसनीखेज मानसिकता

बीबीसी को पता था कि डॉक्यूमेंट्री फिल्म में बलात्कारी की मानसिकता पर ध्यान केंद्रित करना भारतीय समाज में बड़ी बहस और चर्चा का मुद्दा बनेगा. समाचार चैनलों और सोशल मीडिया पर होने वाली बहस डॉक्यूमेंट्री के लिए हलचल पैदा कर देगी. कुछ इस फिल्म का समर्थन करेंगे तो कुछ लोग चीख-चीख कर बीबीसी की आलोचना करेंगे. यही हुआ, यहां तक कि सांसद भी पीछे नहीं रहे. राज्यसभा सदस्य जावेद अख्तर ने कहा कि यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म भारतीय पुरुषों की असली मानसिकता को उजागर करती है.

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लेखक

देवानिक साहा देवानिक साहा @devanik.saha

लेखक एक आकांक्षी पत्रकार, भावुक शिक्षक और योग्य इंजीनियर हैं.

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