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Updated: 20 मार्च, 2020 04:36 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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16 दिसंबर 2012. निर्भया के गैंग रेप (Nirbhaya Gangrape) का दिन. उसकी हंसती खेलती ज़िन्दगी बर्बाद होने का दिन. वो दिन, जब उसे मरना नहीं था मगर फिर भी वो मार दी गयी. एक ऐसा दिन जब दिल्ली की सड़कों पर इंसानियत को तार तार किया गया. वो दिन जो जब भी याद किया जाएगा सख्त से सख्त रूह पिघल जाएगी. क्या लड़की का दोष बस इतना था कि वो दिसंबर की उस सर्द रात में घूमकर अपने दोस्त के साथ वापस घर आ रही थी? कारण कुछ भी रहा हो लेकिन उस दिन जो हुआ है वो भारत जैसे देश के दामन पर लगा एक बदनुमा दाग़ है. आज 7 साल 3 महीने और 3 दिन बाद आखिरकार वो घड़ी आ गई है जब निर्भया (Nirbhaya Case) को इंसाफ मिला है. दोषियों ने वो पाया जो इस घिनौनी करतूत के बाद उनके मुकद्दर पर लिख दिया गया था. निर्भया मामले में दोषी सभी 4 आरोपियों पवन(Pawan), मुकेश (Mukesh), विनय (Vinay) और अक्षय (Akshay) की फांसी (Nirbhaya Case Accused Capital Punishment) के लिए 20 मार्च 2020 का दिन, अदालत पहले ही मुकर्रर कर चुकी थी और अब जबकी चारों ही दरिंदों को फांसी हो चुकी है. तो क्या निर्भया के घर परिवार वाले और क्या देश की आम जनता. सभी ने राहत की सांस ली है.

Nirbhaya Case, Hanging, Supreme Court, judiciary, Tiharसात साल पुराने मामले में निर्भया के घर वालों को इंसाफ मिल गया है

इस फांसी या ये कहें कि 7 साल पुराने इस मामले के हर एक पहलू पर यदि ग़ौर करें तो कहा यही जाएगा कि आरोपियों के वकील एपी सिंह ने अंत समय तक अपनी तरफ से हर वो जतन किये, जिनसे इन 4 हैवानों को फांसी के फंदे पर लटकने से बचाया जा सके.

कहते हैं कि सत्य ज्यादा दिन तक नहीं छिपता. इस मामले में भी नहीं छुपा. आज करीब 7 साल बाद जब ये चारों ही मुजरिम अपने किये कि सजा पा चुके हैं तो इस फांसी पर तमाम तरह के तर्क दिए जा रहे हैं. तो बता दें कि, ऐसा भी नहीं था कि ये चारों ही दोषी, फांसी पर चढ़े और उतार लिए गए. ये चारों ही अपराधी पिछले 4 महीनों से रोज़ फांसी के करीब आ रहे थे. कल्पना करिए कि इनकी स्थिति कैसी रही होगी.

इसके अलावा जिक्र अगर देश की न्याय व्यवस्था का हो तो ऐसा भी नहीं था कि हमारी न्याय व्यवस्था ने दोषी होने के बावजूद इन्हें रहम की निगाह से नहीं देखा.

चाहे पटियाला हाउस कोर्ट रही हो या फिर दिल्ली हाई कोर्ट, राष्ट्रपति और देश का सर्वोच्च न्यायालय इन अपराधियों को अपने आप को बेगुनाह साबित करने के लिए मौके पूरे दिए गए. एक बार नहीं. दो बार नहीं पूरे चार बार दोषियों का डेथ वारंट निरस्त हुआ है जो खुद ब खुद इस बात की तस्दीख कर देता है कि कोई भी ऐसा पक्ष नहीं था जिसे देखकर ये कहा जाए कि इन दरिंदों के साथ अदालत में धोखा हुआ हो या अदालत द्वारा धोखा किया गया हो.

निर्भया मामले में तिहाड़ जेल में अपनी फांसी का इंतजार करते इन चारों ही दोषियों को अपनी जान कितनी प्यारी थी. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, जिस वक्त सुप्रीम कोर्ट में मामले की आखिरी सुनवाई चल रही थी, ये बार बार ड्यूटी में मौजूद गार्ड्स से अपडेट ले रहे थे. ये जेल में मौजूद पुलिस वालों से पूछ रहे थे कि फांसी टली या नहीं. दोषियों की ये बेचैनी, ये छटपटाहट इस बात की पुष्टि कर देती है कि उन्हें अपनी एक एक सांस की परवाह थी.

भले ही 7 साल पुराने इस मामले में इंसाफ मिलने में थोड़ा वक्त लगा हो लेकिन जो कुछ भी हुआ है उसके लिए हमारी ज्यूडिशरी बधाई की पात्र है. कभी क्यूरेटिव पेटिशन का निरस्त होना. कभी मर्सी पेटिशन का निरस्त होना. अदालत में पुनर्विचार याचिका के खारिज होने से लेकर राष्ट्रपति के दर से मायूस लौटने तक इस मामले में कई मोड़ ऐसे जब फांसी तो टली लेकिन दोषियों के बीच डर गहराता रहा. पता दोषियों को भी था कि उन्हें फांसी होगी और आखिरकार हुई.

बात सीधी और एकदम साफ है किसी को फ़ौरन मौत आ जाए तो उसे दुर्घटना कहा जाएगा मगर जिस तरह इन लोगों को पता था कि इनको मरना है साफ था कि कहीं न कहीं अदालत भी इन चारों दोषियों को बताना चाह रही थी कि अब से ठीक साल साल तीन महीना और तीन दिन पहले इन्होंने किस पाप को अंजाम दिया था.

जिस तरह गुजरे 4 महीनों से दोषियों की फांसी की मांग तेज हुई और जैसे इन्हें बचाने के लिए इनके वकील एपी सिंह द्वारा एक के बाद एक हथकंडे अपनाए गए कहीं न कहीं इन्हें भी इस बात का यकीन था कि वो मुजरिमों को बचा ले जाएंगे मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और दोषियों को उनके गुनाह की सजा मिल गयी.

इस मामले में हमें न्याय व्यवस्था को धन्यवाद देना चाहिए और ये समझना चाहिए कि न्याय की प्रक्रिया एक दिन की नहीं थी इसे अमली जामा 4 महीना पहले से पहनाया जा रहा था.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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