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Updated: 23 अगस्त, 2019 12:47 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अपने काम पर अपने बच्चे को भी साथ लेकर गई एक मां की तस्वीर जब बाहर आती है तो उसे खूब सराहा जाता है. हमने पिछले साल झांसी की एक महिला कॉन्सटेबल की तस्वीर देखी थी जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी. महिला कॉन्सटेबल अपनी 6 महीने की बच्ची को लेकर ऑफिस में काम कर रही थीं. हाल ही में इंदौर की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रूचि वर्धन मिश्र भी आधी रात को अपनी 2 साल की बेटी को साथ लेकर गश्त पर निकल पड़ी थीं.

ये तस्वीरें नारी शक्ति की मिसाल हैं. ये बताती हैं कि किस तरह महिलाएं घर भी संभाल रही हैं और दफ्तर भी. मां के कर्तव्य कितनी बखूबी निभा रही हैं और घर चलाने में पति के कंधे से कंधा भी मिला रही हैं. लेकिन माफ कीजिए महिलाओं को ये सब करने के लिए किसी की तारीफ नहीं चाहिए.

आज एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है लेकिन ये किसी महिला की नहीं बल्कि एक पुरुष की है. ये एक तस्वीर मां के कर्तव्य निभा रही इन तमाम महिलाओं पर भारी पड़ रही है. तस्वीर भारत की नहीं न्यूजीलैंड की है और किसी सरकारी दफ्तर की नहीं बल्कि एक देश की संसद की है जहां स्पीकर काम के साथ-साथ बच्चे को गोद में थामे उसे बोतल से दूध पिला रहा है.

speaker feeding babyसंसद में स्पीकर का बच्चे को दूध पिलाना क्या कुछ नहीं कहता

न्यूजीलैंड के स्पीकर का नाम Trevor Mallard हैं. सांसद Tamati Coffey पितृत्व अवकाश के बाद पहली बार अपने 1 महीने के बेटे के साथ संसद में पहुंचे थे. Tamati सदन को संबोधित कर रहे थे तो उनका बेटा रोने लगा. ऐेसे में स्‍पीकर ट्रेवर मलार्ड ने बच्‍चे के न सिर्फ संभाला बल्कि उसे बोतल से दूध भी पिलाया.

इस तस्वीर में भले ही कुछ पल कैद हों, लेकिन ये अपने आप में एक बेहद शक्तिशाली तस्वीर है. जिसने कुछ भी न कहते हुए बहुत कुछ कहने की कोशिश की है. ये तस्वीर उन लोगों के लिए एक जवाब है जो ये कहते हैं कि 'बच्चों की परवरिश करना सिर्फ महिलाओं का काम होता है. बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी मां की ही होती है. पिता कहां ये सब कर पाते हैं!'

ये तस्वीर उन लोगों की सोच को भी सलाम करने की कोशिश करती है जिन्होंने काम पर बच्चों को लाने वाली माओं की तस्वीरों पर मां की ममता के कसीदे पढ़े और उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए तारीफ के चंद लफ्ज कह दिए. और ऐसा करके उन्होंने महिलाओं के दिमाग में फिर से उसी बात को और भी अच्छी तरह से ठूंसने की कोशिश की कि- चाहे जो भी कर लो, कितनी ही बड़ी पुलिस अफसर बन जाओ लेकिन बच्चे तो तुम्हें ही संभालने हैं. किसी ने इन महिलाओं का पक्ष लेते हुए ये नहीं कहा कि ये जिम्मेदारी पति की भी उतनी ही है.

लेकिन इस तस्वीर ने ये सारी बातें साफ कर दीं. हम gender equality पर कितनी ही लंबी बहस कर लें, लेकिन इंसान की सोच उसे ये स्वीकार ही नहीं करने देती कि वो भी ये काम कर सकता है. पुरुष बच्चे संभाल सकते हैं और महिलाओं से भी ज्यादा अच्छी तरह से वो उनका ख्याल रख सकते हैं. लेकिन उन्हें ये विश्वास दिलाने वाली महिलाएं खुद ही ये मानती हैं कि बच्चों को संभालना सिर्फ उन्हीं का काम है. अब जब वो पुरुषों को ये पहले ही जता देती हैं तो फिर पुरुष क्यों ये सब करने लगे.

हालांकि आज के समझदार पुरुष बच्चों के काम में भी अपनी पत्नियों का साथ पूरी तरह से देते हैं. वो बच्चों के लिए आधी रात को उठकर दूध भी बनाते हैं और उनकी नैपी भी चेंज करते हैं. मालिश से लेकर नहलाना-धुलाना भी पुरुष कर रहे हैं. लेकिन ऐसे लोग बहुत कम हैं.

संसद से आई इस तस्वीर में एक और बात छिपी है. ये बच्चा स्पीकर का नहीं, बल्कि सांसद का है. और सांसद की मदद करने के लिए स्पीकर ने बच्चे को संभाला. मुझे यकीन है कि भारत में ऐसा कुछ भी नहीं होता. पिछले ही साल एक पुलिसकर्मी ड्यूटी पर अपने बच्चे को साथ ले आई तो उसकी परेशानी समझना तो दूर, उसे सस्पेंड कर दिया गया था. ऐसे में ये तस्वीर इंसानियत की एक मिसाल भी पेश करती है.

ये तस्वीर gender equality के एक सशक्त उदाहरण के रूप में सामने आई है जो ये बताती है कि पुरुष चाहें तो वो भी हर काम कर सकते हैं. बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी उनकी भी बराबरी की है. इस मामले में न्यूजीलैंड से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला है. न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डर्न अपने आप में प्रेरणा हैं. जिनके जीवन से न जाने कितनी ही महिलाओं के अपने जीवन को दिशा दी है. वो देश की प्रधानमंत्री रहते हुए मां बनीं और कुछ ही सप्ताह की छुट्टी के बाद काम पर वापस लौट आईं. जैसिंडा देश संभालती हैं और उनके पार्टनर घर पर बच्चा संभालते हैं. देश की प्रधानमंत्री ही लोगों के सामने सशक्त महिला और gender equality का जीता जागता उदाहरण हैं तो देश के बाकी लोगों पर इसका असर तो होगा ही.

बहरहाल भारत के पुरुषों को समझ लेना चाहिए कि महिलाओं को बच्चे संभालने के लिए थैंक्यू कह देने और तारीफ कर देने से वो केवल उन्हें थोड़ी देर के लिए खुश कर रहे हैं, जबकि सच तो ये है कि ऐसा करके वो सिर्फ अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे होते हैं. आधी रात को गश्त पर जाते हुए अपने बच्चे को साथ लेकर जाने वाली पुलिसकर्मी वास्तव में तारीफ के काबिल है, लेकिन असल वजह तो यही है कि इस जिम्मेदारी में पति उनके साथ नहीं.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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