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Updated: 02 जनवरी, 2021 09:27 PM
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New Year 2021 मुझे शायद 40 साल तो बीत ही चुके हैं नया साल का जश्न मनाते हुए. लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि 2020 जैसा उथल पुथल वाला साल शायद ही कोई हमारी जानकारी में रहा है. घटनाएं या दुर्घटनाएं हर वर्ष ही होती रही हैं और हर वर्ष हम सब यही सोचते रहे हैं कि आने वाले वर्ष में सब अच्छा हो. लेकिन वर्ष 2020 कुछ अलग ही रहा, कुछ ज्यादा ही सालने वाला रहा. इस साल को कोविड-19 महामारी (Coronavirus Pandemic) के लिए ही इतिहास के पन्नो में दर्ज कर लिया जाएगा और हमारी आने वाली पीढ़ियां इसे शायद ही याद रखना चाहेंगी लेकिन इस साल के शुरुआत में ही दो विडंबनाएं देखने को मिलीं. इस वर्ष को यूनाइटेड नेशंस ने इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ प्लांट हेल्थ के रूप में मनाने का फैसला लिया था. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में सन 2019 में लगी भयानक आग, जिसने लगभग 50 करोड़ से ज्यादा जीव जंतुओं की जान ले ली थी, वह 2020 में भी जारी रही और इसने करोड़ो पेड़ पौधों की भी बलि ले ली.

इसके बाद कहीं ज्वालामुखी फूटा. तो कहीं बोको हरम के अतिवादियों ने मासूमों की जान ले ली. और जनवरी बीतते बीतते कोविड-19 महामारी ने अपने पांव पूरी दुनिया में फैला दिए. कोविड का असर न सिर्फ स्वास्थ्य पर बल्कि इकोनॉमी पर भी पड़ा और स्टॉक मार्किट फरवरी में क्रैश कर गया और धीरे धीरे पूरी दुनिया के मार्केट गिरावट का इतिहास दर्ज करने लगे. इसके बाद शुरू हुआ विभिन्न देशों द्वारा अपनी सीमाओं को सील करने का सिलसिला, दुनिया भर में तमाम टूरिस्ट आकर्षण बंद होने लगे, यहां तक कि नेपाल ने माउंट एवेरेस्ट को भी पर्वतारोहियों के लिए बंद कर दिया.

Bye Bye year 2020, New Year 2021, Corona Virus, Lockdown, Disease, Volcano, Jungle गुजरे साल तमाम चीजें हुईं बताती हैं कि 2020 एक मनहूस साल था

इसके बाद हम सब ने एक नए शब्द को सुना और फिर बार बार सुना, यह शब्द था 'लॉकडाउन'. हिन्दुस्तान में अचानक बिना किसी तैयारी के मार्च 24 को लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी और उसके बाद अगले कुछ दिनों में समस्त रोड और रेल यातायात पूरी तरह से ठप्प कर दिया गया. फैक्ट्रियां बंद हो गयीं और व्यवसाय लगभग ठप्प हो गया. साथ ही साथ दुनिया के तमाम देश अपना यहाँ इमरजेंसी लगाने लगे और लोगों के आवागमन पर पाबन्दी भी लगाने लगे.

फिर देश में विभाजन के बाद का सबसे बड़ा पलायन शुरू हुआ और हर राज्य से मजदूर और छोटा मोटा काम करने वाले अपने घर की तरह जाने लगे. यातायात बंद था तो पैदल ही निकल पड़े, भूखे प्यासे परिवार को साथ लिए कई कई दिन लोग चिलचिलाती धुप और गर्मी में चलते रहे. रास्ते में पुलिस ने रोका, खदेड़ा, लाठियां बरसायीं लेकिन लोग अपने घरों की तरफ बढ़ते रहे. न जाने कितने लोगों ने रास्ते में भूख और प्यास से दम तोड़ दिया, कई गर्भवती महिलाओं ने सडकों पर ही बच्चों को जन्म दे दिया और कितने ही लोगों ने रेल की पटरियों पर अपनी जान गंवा दी.

न तो सरकार के पास कोई विजन था और न ही उसमें कोई इच्छाशक्ति दिखाई पड़ी जिससे इन मजबूर लोगों की यात्रा सुगम बन सके. बहुत बाद में सरकारों ने बसों और कुछ रेलगाड़ियां चलाने का फैसला किया लेकिन तब तक बहुत नुक्सान हो चुका था और लोग अपने ही देश में पराये जैसा महसूस कर चुके थे. दुनियां ने शताब्दी का सबसे बड़ा आर्थिक संकट देखा और लगभग हर देश में लोगों को अपनी नौकरियों से और काम धंधों से हाथ धोना पड़ा.

अपने देश में भी जो लोग अपने गांव और शहर लौट कर आये, उनके लिए वहां की सरकार ने कोई इंतजाम नहीं किया. इसका परिणाम यह निकला कि जहां कारखाने थे, वहां काम करने वाले नहीं थे और जहां काम करने वाले थे, वहां कोई रोजगार नहीं था. इसी बीच विशाखापत्तनम में एक कारखाने में गैस लीक हुई और इसमें कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

दुनिया के लगभग हर देश ने बढ़ती कोविड महामारी के बीच आर्थिक पॅकेज निकालना शुरू किया और हमारी सरकार ने भी निकाला. लेकिन जब यह पॅकेज लोगों के सामने आया तो पता चला कि इसमें भी लोगों को सिर्फ ठगा गया है, उन्हें सीधे कोई लाभ नहीं मिला है, बल्कि सरकारी बैंकों के माध्यम से ऋण के रूप में पॅकेज दिया गया है. इसी बीच चीन, जहां से कोविड शुरू हुआ था, वहां इसपर नियंत्रण पा लिया गया, जबकि पूरा विश्व इससे बुरी तरह प्रभावित था.

साल बीतता गया, हम धीरे धीरे कोविड के मरीजों की गिनती में पहले पायदान पर पहुंचने वाले थे लेकिन इसी बीच कोविड के वैक्सीन के लिए तमाम देश आगे आने लगे. अब धीरे धीरे यह सम्भावना बन गयी कि शायद वर्ष के अंत में या अगले वर्ष में इसकी वैक्सीन आ जायेगी और दुनिया इस महामारी से बचने में कामयाब हो जायेगी. आज वर्ष के अंत में अगर देखें तो ब्रिटेन में पैदा हुए नए स्ट्रेन ने जरूर हैरानी में डाला है लेकिन कई कंपनियों की वैक्सीन भी लगभग तैयार हो चुकी है जिससे की वर्ष 2021 में राहत मिलने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं.

अब इस महामारी के दूसरे पहलू पर भी नजर डालते हैं, यह दीगर बात है कि जितना नुक्सान और तकलीफ इस महामारी ने दिया है उसके तुलना में इसका दूसरा अच्छा पहलू कहीं नहीं ठहरता है. लेकिन जब बात कर ही रहे हैं तो इस दूसरे बेहतर पहलू की भी चर्चा कर लेते हैं. इस साल लॉकडाउन के चलते यातायात ठप्प हो गया और सडकों पर सन्नाटा छा गया. तमाम कल कारखाने बंद हो गए और इन सब का मिला जुला असर यह रहा कि प्रदूषण बेहद कम हो गया.

आसमान साफ़, हवा स्वच्छ, ध्वनि प्रदूषण न्यूनतम और घरों के आस पास पेड़ों पर चिड़िया और पक्षी वापस आने लगे जो कई वर्षों से नजर नहीं आ रहे थे. शाम को अपनी छतों से दूर दूर तक नजर आ रहा था और हिमालय कि चोटियां भी लोगों को नजर आने लगीं. यह सब प्रदूषण के कम होने के चलते हुआ था और लोग यह सोचने लगे थे कि क्या हमने पिछले वर्षों में सचमुच विकास किया था या विनाश.

स्कूल और कॉलेज बंद हो गए, ऑफिस भी बंद होकर वर्क फ्रॉम होम का कल्चर हर जगह नजर आने लगा. और इसका नतीजा यह हुआ कि जो बच्चे साल में एकाध सप्ताह के लिए अपने माता पिता के पास आते थे, वे अब महीनों से अपने घर पर पड़े थे. इससे न सिर्फ दो पीढ़ियों में संवाद बढ़ा बल्कि उन मां बाप की खुशियों का पारावार ही नहीं रहा जो अपनी संतान के साथ चंद दिन भी गुजारने के लिए तरस जाते थे. लोगों में अपने अड़ोस पड़ोस से सम्बन्ध रखने की शुरुआत भी हुई और बहुत से लोग दूसरे अनजान लोगों की मदद के लिए भी आगे आये.

मानवता की तमाम कहानियां लिखी गयी और जहाँ सरकार लोगों की मदद करने में बुरी तरह से फ़ैल हुई वहीं एक अकेले इंसान 'सोनू सूद' ने गरीबों और मजबूरों के लिए इतना कर दिया कि लोग उन्हें मसीहा की तरह मानने और पूजने लगे. ऐसे समय में जब देश के तमाम पूंजीपतियों, राजनेताओं और बड़े लोगों से आम जनता की मदद के लिए आगे आने की उम्मीद थी, वहीँ इनमे से अधिकांश ने बेशर्मी से इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

अब जब देश और दुनिया इस महामारी के साथ साथ जीने की अभ्यस्त हो चली है और वैक्सीन भी लगभग तैयार है, अर्थव्यवस्था भी वापस पटरी पर आने लगी है. लेकिन वर्ष के अंत में सरकार ने पूंजीपतियों के दबाव में, खेती से सम्बंधित कुछ ऐसे विवादास्पद और किसानों के अहित करने वाले कानूनों को लाने का फैसला कर लिया है जिसके विरोध में कई राज्यों के किसान आंदोलन में लगे हुए हैं.

इस आंदोलन ने कई किसानों की आहुति भी ले ली है लेकिन अब ऐसा लगता है कि सरकार अपने कदम वापस खींचने के लिए मजबूर हो रही है जो कि एक अच्छा संकेत है. इन तमाम उथल पुथल के बीच वर्ष 2020 अब गुजर चुका है और हम नए वर्ष 2021 में प्रवेश कर चुके हैं. अब ऐसे में यही उम्मीद की जाए कि यह वर्ष इस महामारी से हम सबको निजात दिलाये और लोगों के रोजगार, स्वास्थ्य तथा खुशियों के लिए बेहतर साबित हो.

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